रेणु मेरे प्रिय लेखक और ‘मैला आंचल’ से अपनेपन का रिश्ता है : हृषीकेश सुलभ

मशहूर रंगकर्मी सफदर हाशमी की एक कविता है, ‘किताबें करती हैं बातें/बीते जमानों की/ दुनिया की/ इंसानों की/आज की कल की/एक-एक पल की.’ कहते हैं, किताबें जीवन और दुनिया को जानने का बेहतरीन माध्यम हैं. आज पढ़िए हिंदी के महत्वपूर्ण रचनाकार हृषीकेश सुलभ से प्रीति सिंह परिहार की एक छोटी-सी बातचीत किताबों से उनके रिश्ते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 6, 2017 1:12 PM
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मशहूर रंगकर्मी सफदर हाशमी की एक कविता है, ‘किताबें करती हैं बातें/बीते जमानों की/ दुनिया की/ इंसानों की/आज की कल की/एक-एक पल की.’ कहते हैं, किताबें जीवन और दुनिया को जानने का बेहतरीन माध्यम हैं. आज पढ़िए हिंदी के महत्वपूर्ण रचनाकार हृषीकेश सुलभ से प्रीति सिंह परिहार की एक छोटी-सी बातचीत किताबों से उनके रिश्ते के बारे में.

आपकी जिंदगी में किताबें न होतीं, तो क्या होता?

मैं सोच नहीं पा रहा कि मेरी जिंदगी में अगर किताबें न होतीं, तो मैं क्या होता? …यह सोचना बेहद भयावह है मेरे लिए. किताबों ने ही मेरी वर्तमान दुनिया को बनाया है. यह दुनिया, जिसमें किताबें शामिल हैं, मुझे बेहद प्रिय है. ‘’

किताबों की दुनिया से आपका रिश्ता कैसे बना?

ठीक-ठीक तो याद नहीं, मैं लगभग तेरह साल की उम्र तक गांव में रहा. अक्षरारंभ से लेकर 9वीं तक की स्कूली शिक्षा गांव में ही हुई. मेरे गांव में उन दिनों पुस्तकालय था -नवयुग पुस्तकालय, जिसकी देख-रेख मेरे प्रथम गुरु पंडित बब्बन मिश्र जी करते थे. इसी पुस्कालय में मेरा साहित्य की पुस्तकों से पहला परिचय हुआ. पुस्तकों में मेरी रुचि देखकर पंडित जी ने पुस्तकों की झाड़-पोंछ का जिम्मा मुझे दिया था. आज यह बात अजीब लगेगी, पर उस समय मेरे लिए यह बड़ा प्रतिष्ठापूर्ण दायित्व था. तेरह साल की उम्र में, पटना आने से पहले मैं गबन, निर्मला, मैला आंचल, पाथेर पंचाली का हिंदी अनुवाद आदि पढ़ चुका था. कितना समझ सका था, यह नहीं कह सकता, पर पढ़ चुका था. फिर पटना आने के बाद स्कूली जीवन में नियमित रूप से रामकृष्ण मिशन आश्रम के पुस्तकालय से किताबें लाकर पढ़ने का सिलसिला जारी रहा.

स्कूल के दिनों में किस किताब या कहानी का आपके जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव रहा?

किसी खास किताब के प्रभाव को याद नहीं कर पा रहा, पर स्कूली जीवन में सबसे ज्यादा रोचक किताब मेरे लिए महाभारत थी. पिता ने लाकर दी थी. मेरी अम्मा ने महाभारत पढ़ने का घोर विरोध किया था. उनका मानना था कि जिस घर में महाभारत पढ़ा जाता, वहां की सुख-शांति नष्ट हो जाती है. पिता अम्मा की इन बातों पर हंसते. महाभारत की कथाओं ने… इस महाआख्यान ने मुझे पढ़ने का विलक्षण सुख दिया. इसके अलावा मैट्रिक की परीक्षा से ठीक पहले मैंने ‘गुनाहों का देवता’ और ‘शेखर: एक जीवनी’ पढ़ लिया. फिर तो दुनिया ही बदल गयी. दिन-दिन भर उदास फिरा करता. शेखर की तरह जीने की चाह में बहुत भटका हूं. पर पढ़ने का एक और पक्ष रहा. मैंने स्कूली जीवन में ही गुलशन नंदा, कुशवाहा कांत के रोमांटिक उपन्यास और इब्ने सफी तथा कर्नल रंजीत के जासूसी उपन्यास खूब पढ़े. ये उस समय के सबसे लोकप्रिय लेखक थे. इनको पढ़ने के चक्कर में अम्मा से बहुत पिटा भी हूं मैं.

सबसे प्रिय लेखक और सबसे पसंदीदा किताब, जिसका जिक्र खासतौर पर करना चाहेंगे?

मेरे सबसे प्रिय लेखक रेणु हैं और मेरी प्रिय पुस्तक है- मैला आंचल. पुस्तकें तो बहुत सारी हिंदी या अंग्रेजी की प्रिय हैं, पर जो हृदय के करीब है या जिससे अपनेपन का रिश्ता बनता है, वह मैला आंचल ही है. यह भारतीय समाज का महाकाव्यात्मक आख्यान है. मनुष्य और माटी, दोनों की संवेदनाओं का नैसर्गिक स्रोत है यह मेरे लिए. मैं जानता हूं कि इसे महान रचना नहीं कह सकता और मैं चाहूं, तो अपनी पढ़ी हुई असंख्य महान पुस्तकों के नाम गिना सकता हूं, पर मैला आंचल से ही अपने को नाभिनालबद्ध पाता हूं.

क्या ऐसी भी किताबें हैं, जिन्हें आप पढ़ना चाहते हैं, पर अब तक पढ़ नहीं सके?

अरेबियन नाइट्स पढ़ना चाहता हूं. रिल्के का पूरा साहित्य पढ़ना चाहता हूं. मैं कविताएं ज्यादा पढ़ता हूं. कवियों की सूची बहुत लंबी है, जिन्हें पढ़ना चाहता हूं.

आपके अनुसार ऐसी चुनिंदा किताबें कौन सी हैं, जो हर पाठक को जरूर पढ़नी चाहिए?

इस दुनिया में पुस्तकों का विपुल भंडार है और सबकी अपनी-अपनी समझ. फिर भी, अगर आपने कालिदास को नहीं पढ़ा, तो भारतीय साहित्य के वैभव से अपरिचित रह जायेंगे. साहित्य की सांकेतिकता की शक्ति से अपरिचित रह जायेंगे. एक श्लोक के साथ महीनों गुजार सकते हैं आप. कथासरित्सागर अद्भुत पुस्तक है. कबीर, तुलसीदास की विनय पत्रिका, गालिब और मीर और निराला और फिराक… ये सब आपके जीवन में शामिल नहीं, तो आपने भारतीय साहित्य बिल्कुल नहीं पढ़ा. मैंने अंग्रेजी या दूसरी विदेशी भाषाओं का साहित्य कम पढ़ा है, पर टॉल्सटॉय, चेखव, मोपासां, दोस्तोयेव्स्की, हेमिंग्वे… एक लंबी शृंखला है ऐसे लेखकों की और ढेर सारे कवियों की पुस्तकों की, जो आपकी दुनिया और आपके जीवन को बेहतर बनाती हैं.

युवा लेखकों में किसका लेखन पसंद आ रहा है?

मैं नहीं जानता, आपकी नजर में युवा की क्या परिभाषा है! हिंदी में लिखनेवाले कथाकारों-कवियों की कई पीढ़ियां एक साथ सक्रिय हैं. नयी पीढ़ी के कई रचनाकार बहुत अच्छा लिख रहे हैं. वे कथ्य और भाषा और शिल्प हर स्तर पर नया रचने के सार्थक प्रयास कर रहे हैं. वंदना राग, कैलाश वानखेड़े, चंदन पांडेय, हरे प्रकाश उपाध्याय, प्रत्यक्षा, गीताश्री, राकेश मिश्र, मनोज पांडेय, कविता, विमलचंद्र पांडेय, शषिभूषण द्विवेदी, तरुण भटनागर, उपासना, इंदिरा दांगी, योगिता यादव, आदि कई कथाकार और कुमार अनुपम, अविनाश मिश्र, बाबुषा कोहली, मनोज झा, लवली गोस्वामी, अरुणाभ सौरभ, वीरू सोनकर, अंचित, उपांशु आदि कई कवि नवाचार के साथ सामने आ रहे हैं. मैं और कई नाम गिना सकता हूं. इनमें से कौन लंबी दूरी तय करेगा, अभी यह कहना मेरे लिए मुश्किल है.

हाल के समय में पढ़ी गयी किसी किताब का जिक्र करना चाहेंगे?

क्लैरीसा पिंकोला की पुस्तक ‘वूमन हू रन्स विद वूल्व्स’ का जिक्र करना चाहूंगा. यह किताब स्त्री-जीवन को देखने के लिए नयी दृष्टि देती है. यह एक विचारोत्तेजक पुस्तक है. इसे जरूर पढ़ा जाना चाहिए. खास तौर स्त्री-विमर्शकारों और नारीवादियों को तो जरूर पढ़ना चाहिए. इसके अलावा अभी जेडी मैकक्लैची द्वारा संपादित कविताओं की एक किताब ‘द विंटेज बुक आॅफ कंटेंपररी पोएट्री’ पढ़ रहा हूं. इसमें यूरोप, मिडल इस्ट, अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और करेबियाई देशों के कवियों की कविताएं संकलित हैं. यह इस दृष्टि से एक अच्छी पुस्तक है कि आपको विभिन्न आस्वाद की कविताएं एक जगह मिल जाती हैं.

आपकी नजर में हिंदी की ऐसी महत्वपूर्ण किताब, जिसकी ज्यादा चर्चा नहीं हुई?

हिंदी में किताबों की चर्चा की वैसी परंपरा नहीं है, जैसी अंग्रेजी में. हिंदी के अधिकतर प्रकाशकों को किताबों के व्यवसाय का संस्कार नहीं. वे किताबें छाप कर सरकारी खरीद के लिए चक्कर काटते रहते हैं. अखबारों के पन्नों से भी किताबें बेदखल हो चुकी हैं. अगर कहीं जगह है भी, तो सही समीक्षक नहीं हैं. कुछ समीक्षक तो किताबों के ब्लर्ब की ही हूबहू नकल कर लेते हैं. आजकल सोशल मीडिया के आने के बाद थोड़ा परिदृश्य बदला है और अब पाठकों की राय से किताबों के बारे में वातावरण बनना आरंभ हुआ है.

इन दिनों क्या नया लिख रहे हैं?

इन दिनों कुछ अधूरी और स्थगित रचनाओं में लगा हुआ हूं. कुछ कह पाना मुश्किल है कि क्या कर सकूंगा! सबकुछ अनिश्चित है. वैसे भी मैं बहुत कम लिख सका हूं.

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