जेपी की जयंती पर पढ़ें, धर्मवीर भारती की कालजयी रचना ‘मुनादी’

आज ‘संपूर्ण क्रांति’ के जनक जयप्रकाश नारायण की 115वीं जयंती है. उन्होंनेसंपूर्ण क्रांति का आह्वान इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए किया था.देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़ी थी और आपातकाल के दौरान पूरे देश में क्रांति ला दी थी. जेपी ने पटना में भ्रष्टाचार के खिलाफ रैली बुलायी थी, इस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 11, 2017 12:09 PM
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आज ‘संपूर्ण क्रांति’ के जनक जयप्रकाश नारायण की 115वीं जयंती है. उन्होंनेसंपूर्ण क्रांति का आह्वान इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए किया था.देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़ी थी और आपातकाल के दौरान पूरे देश में क्रांति ला दी थी. जेपी ने पटना में भ्रष्टाचार के खिलाफ रैली बुलायी थी, इस रैली में लोगों पर लाठी चार्ज कर दिया गया था, जेपी बुरी तरह घायल हुए थे, उस वक्त दिग्गज साहित्यकार धर्मवीर भारती ने एक कविता लिखी थी, ‘मुनादी’. आज जेपी की जयंती पर एक बार फिर पढ़ें उनकी यह कालजयी रचना-

मुनादी
-धर्मवीर भारती-
खलक खुदा का, मुलुक बाश्शा का
हुकुम शहर कोतवाल का…
हर खासो-आम को आगह किया जाता है
कि खबरदार रहें
और अपने-अपने किवाड़ों को अंदर से
कुंडी चढ़ाकर बंद कर लें
गिरा लें खिड़कियों के परदे
और बच्चों को बाहर सड़क पर न भेजें
क्योंकि
एक बहत्तर बरस का बूढ़ा आदमी अपनी कांपती कमजोर आवाज में
सड़कों पर सच बोलता हुआ निकल पड़ा है !
शहर का हर बशर वाकिफ है
कि पच्चीस साल से मुजिर है यह
कि हालात को हालात की तरह बयान किया जाये
कि चोर को चोर और हत्यारे को हत्यारा कहा जाये
कि मार खाते भले आदमी को
और असमत लुटती औरत को
और भूख से पेट दबाये ढांचे को
और जीप के नीचे कुचलते बच्चे को
बचाने की बेअदबी की जाय !
जीप अगर बाश्शा की है तो
उसे बच्चे के पेट पर से गुजरने का हक क्यों नहीं ?
आखिर सड़क भी तो बाश्शा ने बनवायी है !
बुड्ढे के पीछे दौड़ पड़ने वाले
अहसान फरामोशों ! क्या तुम भूल गये कि बाश्शा ने
एक खूबसूरत माहौल दिया है जहां
भूख से ही सही, दिन में तुम्हें तारे नजर आते हैं
और फुटपाथों पर फरिश्तों के पंख रात भर
तुम पर छांह किये रहते हैं
और हूरें हर लैम्पपोस्ट के नीचे खड़ी
मोटर वालों की ओर लपकती हैं
कि जन्नत तारी हो गयी है जमीं पर;
तुम्हें इस बुड्ढे के पीछे दौड़कर
भला और क्या हासिल होने वाला है ?
आखिर क्या दुश्मनी है तुम्हारी उन लोगों से
जो भलेमानुसों की तरह अपनी कुरसी पर चुपचाप
बैठे-बैठे मुल्क की भलाई के लिए
रात-रात जागते हैं;
और गांव की नाली की मरम्मत के लिए
मास्को, न्यूयार्क, टोकियो, लंदन की खाक
छानते फकीरों की तरह भटकते रहते हैं…
तोड़ दिये जायेंगे पैर
और फोड़ दी जायेंगी आंखें
अगर तुमने अपने पांव चल कर
महल-सरा की चहारदीवारी फलांग कर
अन्दर झांकने की कोशिश की !
क्या तुमने नहीं देखी वह लाठी
जिससे हमारे एक कद्दावर जवान ने इस निहत्थे
कांपते बुड्ढे को ढेर कर दिया ?
वह लाठी हमने समय मंजूषा के साथ
गहराइयों में गाड़ दी है
कि आने वाली नस्लें उसे देखें और
हमारी जवांमर्दी की दाद दें
अब पूछो कहां है वह सच जो
इस बुड्ढे ने सड़कों पर बकना शुरू किया था ?
हमने अपने रेडियो के स्वर ऊंचे करा दिये हैं
और कहा है कि जोर-जोर से फिल्मी गीत बजायें
ताकि थिरकती धुनों की दिलकश बुलंदी में
इस बुड्ढे की बकवास दब जाये !
नासमझ बच्चों ने पटक दिये पोथियां और बस्ते
फेंक दी है खड़िया और स्लेट
इस नामाकूल जादूगर के पीछे चूहों की तरह
फदर-फदर भागते चले आ रहे हैं
और जिसका बच्चा परसों मारा गया
वह औरत आंचल परचम की तरह लहराती हुई
सड़क पर निकल आयी है.
ख़बरदार यह सारा मुल्क तुम्हारा है
पर जहां हो वहीं रहो
यह बगावत नहीं बर्दाश्त की जाएगी कि
तुम फासले तय करो और
मंजिल तक पहुंचो
इस बार रेलों के चक्के हम खुद जाम कर देंगे
नावें मंझधार में रोक दी जायेंगी
बैलगाड़ियां सड़क-किनारे नीमतले खड़ी कर दी जायेंगी
ट्रकों को नुक्कड़ से लौटा दिया जाएगा
सब अपनी-अपनी जगह ठप !
क्योंकि याद रखो कि मुल्क को आगे बढ़ना है
और उसके लिए जरूरी है कि जो जहां है
वहीं ठप कर दिया जाए !
बेताब मत हो
तुम्हें जलसा-जुलूस, हल्ला-गुल्ला, भीड़-भड़क्के का शौक है
बाश्शा को हमदर्दी है अपनी रियाया से
तुम्हारे इस शौक को पूरा करने के लिए
बाश्शा के खास हुक्म से
उसका अपना दरबार जुलूस की शक्ल में निकलेगा
दर्शन करो !
वही रेलगाड़ियां तुम्हें मुफ्त लाद कर लायेंगी
बैलगाड़ी वालों को दोहरी बख्शीश मिलेगी
ट्रकों को झंडियों से सजाया जाएगा
नुक्कड़ नुक्कड़ पर प्याऊ बैठाया जाएगा
और जो पानी मांगेगा उसे इत्र-बसा शर्बत पेश किया जाएगा
लाखों की तादाद में शामिल हो उस जुलूस में
और सड़क पर पैर घिसते हुए चलो
ताकि वह खून जो इस बुड्ढे की वजह से
बहा, वह पुंछ जाये !
बाश्शा सलामत को खूनखराबा पसन्द नहीं !
(तानाशाही का असली रूप सामने आते देर नहीं लगी। नवम्बर की शुरूआत में ही हुआ वह भयानक हादसा. जेपी ने पटना में भ्रष्टाचार के खिलाफ रैली बुलायी. हर उपाय पर भी लाखों लोग सरकारी शिकंजा तोड़ कर आये. उन निहत्थों पर निर्मम लाठी-चार्ज का आदेश दिया गया. अखबारों में धक्का खा कर नीचे गिरे हुए बूढ़े जेपी उन पर तनी पुलिस की लाठी, बेहोश जेपी और फिर घायल सिर पर तौलिया डाले लड़खड़ा कर चलते हुए जेपी. दो-तीन दिन भयंकर बेचैनी रही, बेहद गुस्सा और दुख…9 नवंबर रात 10 बजे यह कविता अनायास फूट पड़ी.
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