कोझायिन पादालगाल (कायर के गीत) लेकर आ रहे हैं मुरुगन

अपने उपन्यास के खिलाफ दक्षिणपंथी समूहों के हो-हल्ले और विरोध के बाद 2015 में अपनी मौत और लेखन कर्म छोड़ने का ऐलान करने और मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले के बाद लेखन कर्म शुरु करने वाले तमिल लेखक-बुद्धिजीवी पेरुमल मुरुगन कहते हैं कि उन्हें सबसे ज्यादा अफसोस यह है कि वह बेवकूफ थे जिसे माहौल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 11, 2017 5:24 PM

अपने उपन्यास के खिलाफ दक्षिणपंथी समूहों के हो-हल्ले और विरोध के बाद 2015 में अपनी मौत और लेखन कर्म छोड़ने का ऐलान करने और मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले के बाद लेखन कर्म शुरु करने वाले तमिल लेखक-बुद्धिजीवी पेरुमल मुरुगन कहते हैं कि उन्हें सबसे ज्यादा अफसोस यह है कि वह बेवकूफ थे जिसे माहौल का जरा भी भान नहीं हुआ. मुरुगन अब तमिल में एक नयी किताब कोझायिन पादालगाल (कायर के गीत) ला रहे हैं ,जो उन्होंने अपने बनवास के दौरान लिखी थी.

इन कविताओं में उनकी चुप्पी मुखर होती है. यह वह काल था जब वह अपने अंदर जंग लड़ रहे थे. तब, बाहरी ताकतों के साथ भी उनका संघर्ष जारी था. कुछ कविताओं में उदासी और विषाद पसरा है, कुछ में आक्रोश और विक्षोभ है. ज्यादातर कविताओं में प्रकृति के कर्कश बिंब हैं. इसमें प्रकृति रुपकों के बतौर है जो कवि की वेदना एवं मनोव्यथा को स्वर देती है.

एक साक्षात्कार में मुरुगन ने बताया कि इस संकलन की कविताएं उनकी स्वाभाविक अभिव्यक्ति हैं और उन्हें कागज पर उतारना कोई चुनौती नहीं थी. मुरुगन कहते हैं, इस संकलन में कायर का गीत शीर्षक से एक कविता है. एक साथ देखे जाने पर हर कविता खुद भी एक तरह से किसी कायर का गीत प्रतीत होती है. उन्होंने कायर शब्द का इस्तेमाल क्यों किया? इसपर वह कहते हैं, आप मानें या न मानें, हर इंसान की जिंदगी में एक लम्हा आता जब वह खुद को कायर महसूस करता है या फिर वक्त और हालात उसे कायर बताते हैं.

सांग्स ऑफ ए कावर्ड का प्रकाशन पेंगुइन बुक्स ने किया है. मूल से इसका अनुवाद अनिरुद्धन वासुदेवन ने किया है और इसमें 210 कविताएं हैं. मुरुगन कहते हैं कि उन्हें सबसे ज्यादा अफसोस इस बात का है कि मैं बेवकूफ था जिसे माहौल का जरा भी भान नहीं हुआ. बहरहाल, साहित्यिक वनवास कभी यातनादाई नहीं रहा.

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