डॉ सूर्या राव की कहानी ‘अनजाना सच’
डॉ सूर्या राव मूलत नजीबाबाद, उत्तर प्रदेश की रहने वाली हैं.शिक्षा : एमए, बीएड, पीएचडी. लेखन-प्रकाशन : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानियां, आलेख, व्यंग्य आदि प्रकाशित. आकाशवाणी जमशेदपुर से नियमित रूप से कहानियां, वार्ताएं प्रसारित. संप्रति : स्वतंत्र लेखन एवं जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज में अतिथि व्याख्याता. संपर्क : 59 बी, एयर बेस कॉलोनी, कदमा, जमशेदपुर, झारखंड, […]
डॉ सूर्या राव मूलत नजीबाबाद, उत्तर प्रदेश की रहने वाली हैं.शिक्षा : एमए, बीएड, पीएचडी. लेखन-प्रकाशन : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानियां, आलेख, व्यंग्य आदि प्रकाशित. आकाशवाणी जमशेदपुर से नियमित रूप से कहानियां, वार्ताएं प्रसारित. संप्रति : स्वतंत्र लेखन एवं जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज में अतिथि व्याख्याता. संपर्क : 59 बी, एयर बेस कॉलोनी, कदमा, जमशेदपुर, झारखंड, पिन – 831005, फोन : 0657-2306720
-डॉ सूर्या राव-
बड़े-से घर में क्षमा अकेली रहती है. एक ही बेटा है, जो विदेश में बस गया है. बेटे के बार-बार आग्रह करने के बावजूद अपना घर, अपनी जमीन छोड़कर वह जाना नहीं चाहती. अकेलेपन से उबरने के लिए उसने मकान की ऊपरी मंजिल किराये पर चढ़ा दी है. कितने किरायेदार आये और गये इसकी कोई गिनती नहीं है. अपने स्नेहिल स्वभाव के कारण, परायों को भी उसने अपना बना लिया था. क्षमा को याद नहीं कि कोई एक भी किरायेदार ऐसा रहा हो, जो जाते वक्त दु:खी मन से न गया हो. उनके जाने के बाद उसका अकेलापन और बढ़ जाता और वह अवसाद से घिर जाती. इस स्थिति से बाहर निकलना तभी होता, जब कोई नया किरायेदार आ जाता. शुरू में उसे बहुत सावधानी रखनी पड़ती कि आने वाला किरायेदार न जाने किस मिजाज का हो. किन्तु समय बीतने के साथ सब कुछ सामान्य हो जाता. उसके शुभचिंतक प्राय: उसे सावधान भी करते, कि वह अकेली रहती है और समय बदल गया है.
उसे किरायेदार से एक दूरी बनाये रखनी चाहिए. उसका विश्वास था कि मृत्यु का एक दिन निश्चित है और जिस प्रकार उसकी मृत्यु होनी है, उसी प्रकार होगी तो फिर भय और चिंता कैसी? उसके परिचित भी पूछा करते कि इतने बड़े-से घर में अकेली रहते उसे भय नहीं लगता? उत्तर में वह हंस कर टाल जाती. हां कुछ बातों का ध्यान उसने हमेशा रखा, जैसे किरायेदार का परिवार छोटा हो, पति-पत्नी के अलावा एक या दो बच्चे हों, जिनकी उम्र दस वर्ष से अधिक न हो, साथ ही उसकी नौकरी तबादले वाली हो. कई बार कंपनियों के उच्चाधिकारी आते और अपनी कंपनी का दफ्तर खोलने के एवज में चौगुना किराया देने की पेशकश करते. व्यवसायी वर्ग भी आता किंतु निर्विकार भाव से वह एक उत्तर देती-मैंने मकान किराये पर देना बंद कर दिया है. मेरा बेटा लौटकर आ रहा है.
वह जानती है कि वह झूठ बोल रही है. कई बार अपने झूठ को सच मानने की कल्पना करके वह रोमांचित भी हुई है. वह जानती है कि ऐसा कभी होगा नहीं. ढेर सारी सुख-सुविधाओं का त्याग कर, उसका बेटा नहीं आनेवाला. इस बार कई महीनों तक मकान खाली रहा. एक सप्ताह पहले ही एक नया किरायेदार आया है. पति-पत्नी के अलावा चार वर्ष की एक बेटी है. किरायेदार सोम किसी प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर है. पत्नी सुमति एमएससी बीएल है. सुमति कहीं नौकरी नहीं करती, यह जानकर उसे आश्चर्य हुआ था. क्षमा का आश्चर्य तब और भी बढ़ गया, जब सोम ने उसे बताया कि सुमति इसलिए नौकरी नहीं करती क्योंकि एक मां के रूप में वह अपना भरपूर समय और प्यार अपनी बेटी को नहीं दे पायेगी. सुमति ने चौका-बर्तन करने वाली कोई महरी नहीं रखी थी. वह पति का बोझ नहीं बढ़ाना चाहती थी. क्षमा को लगा, सुमति एक सुलझी हुई और समझदार पत्नी है, अपने नाम को सही मायने में सार्थक करने वाली. देखते-देखते छह महीने कैसे गुजर गये, क्षमा को पता भी नहीं चला. उसके वात्सल्य ने जल्दी ही तीनों को अपना बना लिया.
प्रिया उसे दादी कहती और प्राय: उसके पास खेलने, कहानियां सुनने आती. सुमति भी फुर्सत के समय आ जाया करती थी. इधर सोम की मां और छोटा भाई रवि आये हुए थे. रवि भीषण अवसाद से ग्रस्त था. आइएएस की तैयारी करते वक्त न जाने ऐसा क्या हुआ था कि अचानक ही बहुत चुप-चुप रहने लगा था. घंटों एक जगह पर बैठा सोचता रहता. न खाने की सुध रहती न सोने की. बहुत पूछे जाने पर भी कोई उत्तर नहीं देता. बस शून्य में ताकता रहता. रवि के दोस्त ने सोम को पत्र लिखकर सारी जानकारी देते बुलाया था. पत्र का उत्तर देने के स्थान पर अगली ट्रेन से वह दिल्ली चला गया था. फोन पर मां को केवल इतना बताया था कि आफिस के काम से वह दिल्ली जा रहा है. उसने बहुत कोशिश की थी, कि रवि उसके सामने खुले, किंतु उसके सारे प्रयास विफल हो गए थे. अधिक छुट्टी न मिलने के कारण रवि को अपने साथ लेकर वह सीधा मां के पास गांव पहुंचा था. दोनों को अचानक आया देखकर मां चकित रह गयी थी. बहुत संक्षेप में उसने मां को रवि के विषय में बताया था. सुनकर मां रोने लगी थी. उसने अपनी ओर से मां को धीरज बंधाने की पूरी कोशिश की थी कि रवि ठीक हो जायेगा. दो-तीन दिन पहले ही वह मां और भाई को लेकर पहुंचा था. सोम की मां गांव की एक सीधी-सादी औरत, हिंदी तक नहीं जानती थी. उसके चेहरे पर एक अजीब-सी बेचारगी थी, जो मन को कहीं छूती थी.
आज पहली बार क्षमा ने सुमति और सोम को ऊंची आवाज में बातें करते सुना था. वह समझ नहीं पाई थी कि पति-पत्नी में किस बात को लेकर वाग्युद्ध हो रहा है. इतना स्पष्ट था कि दोनों उत्तेजित थे. दोनों का वाग्युद्ध काफी लंबा खिंचा था और सोम अपनी बाइक लेकर कहीं चला गया था. शाम के समय प्रिया उसके पास आयी थी. उसका सूखा और उदास चेहरा देखकर क्षमा को अच्छा नहीं लगा था. प्रिया ललचाई नजर से प्लेट में रखे नमकीन और बिस्कुटों की ओर देखे जा रही थी. उसने पूरी प्लेट प्रिया की ओर बढ़ा दी. प्रिया जिस तेजी से खा रही थी, उसे समझते देर नहीं लगी कि वह भूखी है. पूरी प्लेट खत्म करके प्रिया ने कहा- ”दादी हम और खाएंगे.”
क्षमा उठी और उसके लिए ब्रेड और मक्खन ले आई. प्रिया की ओर प्लेट बढ़ाते हुए उसने पूछ लिया – ”बेटे तुमने आज देापहर को क्या खाया?""कुछ नहीं दादी. मम्मी ने सारा खाना डस्टबिन में फेंक दिया और जाकर सो गयी." ब्रेड खाकर प्रिया थोड़ी देर खेलती रही और फिर सुमति के आवाज देने पर चली गई. क्षमा को पहली बार सुमति पर गुस्सा आया था और प्रिया पर दया. आये दिन सोम और सुमति में झड़पें होने लगीं. चीख-चिल्लाहट, बर्तनों के फेंके जाने की आवाजें और उसके बाद मरघट का सन्नाटा. सास और देवर के आने के बाद सुमति का आना बिल्कुल बंद था. उसका देवर बढ़ी हुई शेव और भावशून्य चेहरा लिया बालकनी में बैठा रहता. मां भी वहीं पास बैठी होती, किन्तु मां-बेटे के बीच किसी प्रकार का संवाद होते उसने नहीं देखा.
मां और रवि को आये एक डेढ़ महीना गुजर चुका था. इस बीच मां का दयनीय चेहरा और दयनीय हो उठा था. उचित इलाज के कारण रवि के चेहरे पर कभी-कभी सहजता का भाव दिखने लगा था. पहले की अपेक्षा दोनों के बीच का कोहराम कम हुआ, किन्तु बिल्कुल बंद भी नहीं हुआ था. अंतर केवल इतना पड़ा था कि अब सोम का हाथ भी उठने लगा था. ऐसी स्थिति में सुमति रोती हुई आती और उसे बुलाकर ले जाती और अपने मन की भड़ास क्षमा के सामने निकालती. ऐसी ही किसी परिस्थिति में सोम ने तल्खी से कहा था- "मां जी, यह रोज केवल एक ही बात को लेकर लड़ती रहती है कि मां और भाई को वापस गांव भेज दो. आप ही बताइए, गांव में उसका इलाज हो सकता है? अपने भाई की जिंदगी बर्बाद होते हुए मैं देख सकता हूं क्या? जब से मां आयी है, एक छोटा-सा काम भी यह नहीं करती है. क्या उनका दुख देखकर मैं चुप बैठा रह सकता हूं?"
क्या उत्तर देती क्षमा? किसे और क्या कहकर समझाती? बच्चे नहीं थे दोनों. सुमति में एक बुरी आदत थी कि वह चुप नहीं रह सकती थी. बराबरी के साथ लड़ती. उसकी बातें सोम के क्रोध को भड़कातीं. एक अंतर दोनों में था कि क्रोध शांत होने पर सोम सहज हो जाता, किंतु सुमति तनी रहती. प्रिया को लेकर भी कम झगड़ा उन दोनों के बीच नहीं होता. सुमति का प्रिया को डांटना और पीटना सोम को बिल्कुल सहन नहीं था. सोम के इस अत्यधिक लाड़ पर क्षमा को खीझ होती. रोज-रोज के झगड़ों और तनावों का बहुत बुरा असर सोम की सेहत पर पड़ रहा था.
एक दिन तंग आकर उसने मां और भाई को गांव पहुंचा दिया. जिस दिन वह मां को पहुंचाने जा रहा था, प्रिया चीख-चीख कर रो रही थी. किसी भी हालत में वह दादी को छोड़ नहीं रही थी. वह भी प्रिया को सीने से लगाए लगातार रोए जा रही थी. बड़ी कठिनाई से सोम ने मां से अलग कर उसे सुमति को सौंपा था. उन लोगों के जाने के बाद भी प्रिया जमीन पर लोट-लोट कर रोती रही थी. सोम लौट आया था. लौटकर आने के बाद उनके बीच का तनाव और बढ़ गया था. उनके झगड़े आक्रामक हो उठे थे. पिछली रात उन दोनों के बीच महाभारत छिड़ा था. आधी रात का समय रहा होगा. अचानक उसकी नींद खुली तो वह समझ पायी कि सुमति के दरवाजा पीटने की आवाज से उसकी नींद टूटी थी. लेकिन आज उसने उठने का कोई उपक्रम नहीं किया. उसने करवट बदली और अपने कान पर तकिया रख लिया.
थोड़ी देर बाद आवाज आनी बंद हो गई, पर उसकी नींद उचट चुकी थी. भोर के समय उसकी आंख लग गयी. नींद खुली तो सात बज चुके थे. सामान्यत: वह इतनी देर तक नहीं सोती. सुबह के जरूरी काम निपटाकर वह अखबार लेकर बैठी. उसका मन नहीं लगा और अखबार एक ओर रखकर रात की घटना के विषय में सोचने लगी. उनके झगड़े से वह तंग आ चुकी थी. वह दृढ़ता से उठी और निश्चय किया कि आज वह उन्हें साफ-साफ कह देगी कि वे लोग मकान खाली कर दें. सीढ़ियां चढ़कर सीधे ऊपर पहुंची. दरवाजा बंद था. कई बार बेल बजाने पर प्रिया ने दरवाजा खोला. उसके गालों पर आंसुओं की लकीर थी. प्रिया कुछ नहीं बोली. क्षमा ने भी कुछ नहीं पूछा. यह ड्राइंगरूम से होती हुई बेडरूम में पहुंची तो वहां का नजारा देखकर उसकी आंखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गई.
सोम बिस्तर पर पड़ा कराह रहा था. बार-बार उसका हाथ पैंट की जिप पर चला जाता और वह चिहुंक उठता. उसके चेहरे पर नाखूनों के गहरे निशान थे और उन पर खून जमा हुआ था. सुमति उसे कहीं दिखाई नहीं दी. नीचे आकर उसने अपने फैमिली डॉक्टर को फोन करके बुलाया. डॉक्टर ने आकर सोम की जांच की और बताया कि घबराने की कोई बात नहीं है. जरूरी दवाइयां लिख कर वह चला गया. क्षमा ने गर्म पानी में डेटॉल डालकर सोम का चेहरा साफ किया और उसे चाय बना कर दी. चाय का प्याला थामते हुए उसकी आंखों से आंसू बह निकले. क्षमा ने स्नेह से उसके बाल सहलाए और कंधे थपथपा कर उसे सांत्वना दी. प्रिया को फल और ब्रेड देकर वह घर के बाहर आयी कि कोई परिचित नजर आये तो वह उससे दवा मंगा सके. उसे कोई नजर नहीं आया. ताला लगा कर वह स्वयं दवा लाने निकली. उसने रिक्शा किया और मुख्य सड़क पर पहुंची ही थी कि उसे रूकना पड़ा. सामने से महिलाओं का एक बड़ा-सा जुलूस चला आ रहा था. महिलाओं के हाथों में तख्तियां थी जिन पर पुरूष अत्याचार के खिलाफ नारे लिखे थे. बीच-बीच में गगनभेदी नारे भी लग रहे थे- "अत्याचार बंद करो, बंद करो. जो हमसे ठकराएगा, चूर-चूर हो जाएगा." क्षमा के मन में एक जोर का उबाल आया. ये महिलाएं सिक्के का केवल एक पहलू ही देखती हैं. उसने एक नजर जुलूस पर और फिर हाथ में पकड़ी दवा की पर्ची पर डाली, जिस पर नाखूनों से नुचा सोम का चेहरा उभर आया था.