लोकगायिका चंदन तिवारी की कलम से एम्स्टर्डम डायरी

चंदन तिवारी मूलत: बिहार की लोकगायिका हैं. लेकिन इनका निवास झारखंड के बोकारो में है. उन्होंने भोजपुरी लोकगीतों को अलग पहचान दी है और दिन-प्रतिदिन इनकी लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है. वे इन दिनों एम्स्टर्डम की यात्रा पर हैं, वे यहां 15 अक्तूबर को आयोजित एक प्रोग्राम ‘भूजल भात’ में भाग लेने के लिए […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 14, 2017 12:35 PM
an image

चंदन तिवारी मूलत: बिहार की लोकगायिका हैं. लेकिन इनका निवास झारखंड के बोकारो में है. उन्होंने भोजपुरी लोकगीतों को अलग पहचान दी है और दिन-प्रतिदिन इनकी लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है. वे इन दिनों एम्स्टर्डम की यात्रा पर हैं, वे यहां 15 अक्तूबर को आयोजित एक प्रोग्राम ‘भूजल भात’ में भाग लेने के लिए वहां गयीं हैं. वे पिछले कुछ दिनों से यहां हैं, उन्होंने अपने अनुभव को यात्रा वृतांत का रूप देते हुए लिखा है. यात्रा वृतांत का शीर्षक है एम्स्टर्डम डायरी. इस डायरी के कुछ रोचक अंश आपके लिए प्रस्तुत हैं:-

एम्स्टर्डम डायरी
अभी- अभी रिहर्सल से लौटी हूं . यहां के समय के अनुसार सुबह आठ बजे पहुंची. तुरंत रिहर्सल को निकल गयी. साथी इंतजार में थे. आज बस आते जाते ही शहर को देखी. बहुत खूबसूरत शहर है. करीने से,कलात्मक तरीके से बसा-बसाया हुआ.लोग बहुत अच्छे, मिलनसार. भाषा की समस्या है लेकिन जब से एयरपोर्ट पर उतरी तब से राज भइया साथ हैं. भइया को अपने देश के संगीत रसिया अच्छे से जानते हैं.बताने की ज़रूरत नहीं. खांटी ज़मीनी आदमी और उम्दा कलाकार. दस दिनों तक उनके साथ ही हूं. यही एक सबसे बड़ी बात है जो परदेस जैसा नहीं लगने दे रहा. रिहर्सल में गयी तो पहले से कुछ साथी परिचित थे. कुछ से आज परिचय हुआ.सब एक से बढ़कर एक कलाकार हैं.आज पहले दिन ईमानदार कोशिश की कि जो कुछ नया है,धुन-वादयंत्र-पैटर्न…सबसे तालमेल बिठाऊं.साथियों ने कहा बेहतर रहा. अपने देस के भोजपुरी गीत तो गाऊंगी ही, कुछ नया भी गाऊंगी.सिख रही हूं . शुरुआत की हूं आज सीख जाऊंगी ऐसा विश्वास है. लगातार य़ात्रा से थकान है. कल सुबह ही घर से निकली थी. शाम को दिल्ली. फिर तुरंत आठ घंटे उड़ान के लिए अमेस्टरडम की जहाज. फिर पहुंचते ही रिहर्सल. अब थोड़ा चाय चुक्कड़ हो जाये तो फिर से एक बार बैठकी भइया के साथ. गीत-संगीत-बतकही की बैठकी. फिर विधिवत डायरी की शुरूआत.एक एक साथियों और भूजल भात फेस्ट के बारे में विस्तार से बात .
हॉल में प्रवेश की, सामने ढेर सारे साथी. चारों ओर सिर्फ म्यूजिक म्यूजिक सा माहौल. तरह तरह के वाद्य यंत्र. सब साथी अपने अपने वाद्ययंत्र के साथ ट्यून मिला रहे थे. ट्यून मिलाने के बाद गाना शुरू करने का संकेत. लग रहा था कि धिन्चक धिन्चक का जो ट्यून है वह कैसे मिलेगा उस गीत से जिसे मुझे गाना है. एकदम से स्टार्टर ट्यून अलग. अचानक से गिटार से धुन बजा-केहू गोदवा ल हो गोदनवा. जैसे क्रिकेट के मैदान में कैच पकड़ते हैं न खिलाड़ी वैसे ही लपक के पकड़ ली उस ट्यून को और गाने लगी. गाते- गाते खो गयी उस धुन में. वह धुन अच्छा लगने लगा. और फिर क्या था. एक के बाद एक गाने पर रियाज़ शुरू. मजा मजा मजा. आनंद आने लगा. ठेठ लोकगीत पर वेस्टर्न पैटर्न का म्यूजिक मन में रचने लगा. जिन संगत कलाकारों के साथ प्रैक्टिस कर रही थी उनमें एक दो को छोड़ कोई मेरी भाषा नहीं जानता. मैं भी नहीं जानती. लेकिन हम एक दुसरे के संग दिन भर गाते बजाते रहे. एक दूसरे को देख मुस्कुराते रहे. हमारी भाषा न जाननेवाले जब ठेठ भोजपुरी गीत पर एक साथ दस के करीब वाद्ययंत्र बजाना शुरू किये तो मन आनंदित होता रहा. वैसे कला की कोई भाषा नहीं होती. कला भाषा की सरहद तोड़ती है. सीखने की कोशिश जारी है. बहुत कुछ नया सिख रही हूं
आने से पहले कई विकल्प थे रूकने के. पूछा गया था कि कहां रूकना पसंद करोगी! उन विकल्पों में एक विकल्प था राजमोहन भइया के यहां रूकना. मैं सारे विकल्पों को ऐसे अनदेखी की जैसे देख ही नहीं रही, दिख ही नहीं रहा. वहीं पर हूं. लगा कि एकबारगी से लिया गया फैसला सौ प्रतिशत सही था. यहां आनंद है. सुकून है. सुबह आंख खुलते ही छत पर जाने के बाद जो नजारा होता है, वह अद्‌भुत होता है. सर्द हवाओं के बीच घर के ठीक पिछवाड़े रिजन कैनाल को घंटों निहारते रहना, सुकून दे रहा है. यह नहर है लेकिन इतनी खूबसूरती से बचाकर रखा गया है कि यह शहर की पहचान है. ऐसे ही कई और नहर पहचान हैं. घंटों इन नहरों के प्रवाह को निहारते मन नहीं अघाता. अपने यहां की तरह नहीं कि जहां लोगों को दिखाना है, पर्यटकों को बुलाना है, वहां सारी व्यवस्था, सारी कवायद और फिर बाकी जगह नदियां ही डस्टबिन बन जाये. इस कैनाल के किनारे कहीं जाइए, सब जगह एक सी सुंदरता है, एक सा सौंदर्य है.

एमस्टरडम शहर में कई नहर आरपार पार होते हैं जो इसे दुनिया के खूबसूरत और जीवंत शहरों में शामिल करता है. पंरपरा, इतिहास के संग आधुनिकता का तारतम्य बिठाते हुए कैसे किसी शहर का विकास होता है, वह यहां दिखता है.जहां ठहरी हूं, राज भइया के वहां सबसे ज्यादा आनंद खानेपीने का है.अपना प्रिय चूड़ा और सत्तू लेकर आयी थी तो मस्ती हो रहा है. खाना बनाने में प्रयोग करते रहना मेरा ​प्रिय काम है. अब इस सत्तू और चूड़ा पर रोज तरह—तरह के प्रयोग भी हो रहे हैं. आज सुबह चूड़ा और छोला नाश्ता हुआ.हर दिन ऐसे ही खाने में प्रयोग हो रहा है. मजा आ रहा है. मालती भाभी हैं, सुरीनाम की रहनेवाली भाभी सुबह—सुबह दफ्तर चली जाती हैं. लेकिन सुबह जाने के पहले और फिर शाम को लौटते ही वह बतकही करती हैं. तरह—तरह की सब्जियां, गुच्छेदार सब्जियां आती हैं.

तरह—तरह का चीज लेकर आती हैं शाम को. मैं सोचती हूं कि हमलोग कैसे आसानी से बहाना बना लेते हैं कि अॅाफिस का प्रेशर रहता है, इतना काम रहता है, थक जाते हैं, क्या करें सामाजिकता निभाने का, आत्मीयता दिखाने का समय नहीं मिलता. मालती भाभी की व्यस्तता और उस व्यस्तता के बीच भी सरोकार निभाने, आत्मीयता बरतने की जो उनकी अदा है वह अंदर तक प्रभावित कर रहा है. आज शाम को लौटीं तो लौटते ही घूमाने ले गयीं. नहर किनारे. रेलवे स्टेशन. बाजार. आप बाहर से आये हैं तो लोग आपको देखेंगे तो एक स्माईल देंगे. उस स्माईल में आतिथ्य स्वागत का भाव गजब का होता है. उस मुस्कान से ही लगता है कि वे कह रहे हैं कि हमारी धरती पर आपका स्वागत है. आराम से घूमिए. यह आपका ही देश है. आपके ही लोगों का देश है. आपके लोग पीढ़ियों पहले यहां आये थे. उन्होंने भी बसाया है इस शहर को और दुनिया के खूबसूरत शहर के रूप में बनाया है.

यहां ठंड काफी है. एमस्टरडम के जिस इलाके में रहनिहारी है, उस इलाके का नाम यूट्रैक्ट है. बहुत ही खूबसूरत और शांत इलाका. पहले पहल दो दिनों तक परेशानी हुई थी समय एडजस्ट होने में लेकिन अब समय एडजस्ट हो गया है. दो दिनों तक तो अपने देश भारत से समय के हेरफेर के कारण नींद आने में ही परेशानी हो रही थी. बेटाइम भूख भी लग जा रही थी. वह क्या है कि समय से तन और मन, दोनों तारतम्य बिठा रहा था. अब सब ठीक है. तो ठंड काफी होने की वजह से आलस्य सा रहा. दिन में अच्छी धूप निकली तो धूप सेंकी. कहीं घूमने नहीं निकली.शाम को पास के नदी किनारे गयी. और अब घूमने निकलने की तैयारी है. यहां जो घर के ठीक पिछवाड़े नदी है, उसे कल देख भर आयी थी. आज जानकारी जुटाई. यह नदी स्वीटजरलैंड से आती है. इसका नाम रिजनकैनाल है. एमस्टरडम से सागर में जाकर मिलती है. यहां से सागर की दूरी 72 किलोमीटर है. छत से बैठकर नदी को निहारना अच्छा लगता है.

दिन भर जहाजों का आना जाना लगा रहता है. मुझे बार बार अपने घर जैसा लग रहा है. मेरा जहां घर है बोकारो में, वहां घर के ठीक सामने नदी है. गरगा नदी. घर पर छत की बालकनी पर आती हूं, छत पर जाती हूं, घर से बाहर निकलती हूं, सामने नदी. बचपन से देखी हूं नदी. नदी के संग रहने की आदत है. या कहिये कि नदी आदत में शामिल है. इसलिए नदियों का गीत गाना हमेशा पसंद भी रहा है. तो यहां आकर भी सामने नदी है तो अपनापा सा हो गया है नदी से. जानकारी मिली कि यह जो रिजनकैनाल है, इससे हर साल करीब एक लाख जहाजों का आना जाना होता है. यह प्रमुख व्यापारिक मार्ग है. बताया गया कि यूरोप में अब भी ऐसी नदियां मुख्य व्यापारिक मार्ग की तरह. व्यापारिक रास्ता तय है और दोनों किनारे का सौंदर्य लोगों के लिए है, उपयोग भी लोगों के लिए है.

यह सब हुआ तो फिर 15 अक्तूबर का समय जेहन में आया. म्यूजिक रूम में चली गयी. कई गीत गाने हैं, जिसमें तीन तो वे गीत हैं, जिसे मैं हर मंच से गाती हूं. जिसकी फरमाइश अपने देश में भी होती है. एक आजमगढ़ी, एक महेंदर मिसिर का राधारसिया और एक पलायन की पीड़ा में प्रेम का राग. जैसे—जैसे 15 अक्तूबर का समय निकट आ रहा है, रोमांच—उत्सुकता—उमंग—उत्साह बढ़ता जा रहा है. उसी दिन फाइनल शो है. उसके ठीक एक दिन पहले 14 अक्तूबर को मेगा कहें या ग्राउंड कहें या फाइनल, जो भी कहें वह रिहर्सल है. सुकून बस इस बात का है कि सारे कलाकार वरिष्ठ हैं और बहुत ही सहयोगी. जो बैंड है वह तो लाजवाब. हमारे अपने ठेठ गीतों पर, महेंदर मिसिर के गीतों पर, पारंपरिक गीतों पर ऐसे बजा रहे हैं, ऐसे बजा रहे हैं जैसे लग रहा है कि यह गीत तो इनके लिए ही रचनाकार ने रचे थे. लाजवाब. जिस बैंड के साथ भूजल भात में परफॉर्म करना है उस बैंड का नाम है बाईसेको. डेढ़ साल पहले ही साथी कलाकारों ने बनाया है इसे लेकिन इतने ही कम समय में इस बैंड की धाक है. पहचान है. और सक्रियता का तो पूछिए मत. इस बैंड में ड्रमिस्ट हैं नौशाद कियामुद्दीन जी. गिटारिस्ट हैं मशहूर गिटार प्लेयर गैब्रियेल हैरम्सेन, बेस गिटार पर हैं रोमियो सिनेस्टार. जो कीबोर्ड पर उस्ताद हैं उनका नाम बहुत प्यार है— रोमियो पांडेय. एक वाद्य यंत्र है इस बैंड में, उसका नाम है—स्क्राटजी. ग्लेन क्लॉपेंडबर्ग उसके उस्ताद हैं. गजब का बजाते हैं.

यह सुरीनाम का खास वाद्ययंत्र है. ढोलक पर तो अपने बहुत ही प्यारे, पुराने परिचित और आत्मीय साथी सूरज शिवलाल हैं. सेक्सोफोन पर प्रशम्म बोएधाई और ट्रॉम्पेट के उस्ताद प्लेयर हैं माइकल सिमंस. अब आप समझिए कि इन वाद्ययंत्रों पर महेंदर मिसिर का गीत, अपने पुरबिया इलाके का ठेठ गीत गाने की तैयारी है, रियाज चल रहा है तो कितना मजा आ रहा है. सच कह रही हूं कि इस बैंड के साथी इतने उस्ताद कलाकार हैं कि टेक—रिटेक की जरूरत नहीं पड़ रही. और हां, यहां, इस शहर में रग—रग में जिस तरह से कला का वास है, कला से लगाव है और संगीत का जो माहौल है, जितनी सक्रियता है कलाकारों की, वह तो हैरत में डालनेवाली बात है. उस पर कल थोड़ी और जानकारी जुटाकर विस्तार से बात होगी.फिलहाल तो घूमने निकल रही हूं.

Exit mobile version