मैं तुझे फिर मिलूँगी
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अमृता प्रीतम की पुण्यतिथि पर विशेष : 45 साल बिना शादी के साथ रहने के बाद इमरोज की बांहों में तोड़ा दम
मैं तुझे फिर मिलूँगी कहाँ कैसे पता नहीं शायद तेरे कल्पनाओं की प्रेरणा बन तेरे केनवास पर उतरुँगी या तेरे केनवास पर एक रहस्यमयी लकीर बन ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी मैं तुझे फिर मिलूँगी कहाँ कैसे पता नहीं… ऐसी शानदार पंक्तियों को रचकर अमर हो जाने वाली मशहूर साहित्यकार अमृता प्रीतम की आज पुण्यतिथि है. […]
कहाँ कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं
की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरुँगी
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं…
ऐसी शानदार पंक्तियों को रचकर अमर हो जाने वाली मशहूर साहित्यकार अमृता प्रीतम की आज पुण्यतिथि है. उनका निधन 31 अक्तूबर 2005 को हुआ था. लेकिन वह आज भी लोगों के स्मरण में जीवित हैं अपनी रचनाओं के जरिये. यह अमर पंक्तियां अमृता प्रीतम ने अपने जीवनसाथी इमरोज के लिए लिखा था.
अमृता सिर्फ एक महान लेखिका ही नहीं थीं, बल्कि उन्होंने स्त्री स्वतंत्रता और प्रगतिशील सोच को भी स्थापित किया. वह एक शादीशुदा महिला थीं, लेकिन उन्होंने अपने जीवन में प्रेम को चुना. यह बात दीगर है कि उनका और साहिर का प्रेम मुकाम तक नहीं पहुंच पाया, लेकिन वह आजीवन साहिर से प्रेम करती रहीं. साहिर के लिए उन्होंने अनगिनत गीत लिखे. अपनी आत्मकथा में उन्होंने लिखा भी कि जब साहिर चले गये उसी दौरान उन्होंने सबसे ज्यादा दर्द भरे नगमे लिखे. अमृता को साहिर का साथ नहीं मिला, लेकिन एक ऐसा शख्स मिला जिसके बारे में उन्होंने खुद लिखा-‘साहिर मेरी जिन्दगी के लिए आसमान हैं, और इमरोज मेरे घर की छत.’ इमरोज के लिखे एक पत्र में अमृता कहती हैं, ‘इमुवा, अगर कोई इंसान किसी का स्वतंत्रता दिवस हो सकता है तो मेरे स्वतंत्रता दिवस तुम हो…’
अमृता और इमरोज आजीवन बिना शादी के एक साथ रहे. 1964 में दोनों ने बिना शादी के एक साथ रहने का फैसला किया था और आजीवन साथ रहे. इमरोज और अमृता का साथ 45 साल रहा. इमरोज अमृता से उम्र में सात साल छोटे थे. इस बात को अमृता भी समझती थीं इसलिए उन्होंने अपनी एक रचना में लिखा-अजनबी तुम मुझे जिंदगी की शाम में क्यों मिले, मिलना था तो दोपहर में मिलते’ कम से कम दोपहर का ताप तो देख लेते. जवाब उन्हें मिला था तुम मेरी जिंदगी की खूबसूरत शाम ही सही लेकिन तुम ही मेरी सुबह, तुम ही दोपहर और तुम ही शाम हो…
जब इमरोज और अमृता ने साथ साथ रहने का निर्णय लिया तो उन्होंने इमरोज से कहा था, ‘एक बार तुम पूरी दुनिया घूम आओ, फिर भी तुम मुझे अगर चुनोगे तो मुझे कोई उज्र नहीं…मैं तुम्हें यहीं इंतजार करती मिलूंगी.’ इसके जवाब में इमरोज ने उस कमरे के सात चक्कर लगाए और कहा, ‘हो गया अब तो…’ इमरोज के लिए अमृता का आसपास ही पूरी दुनिया थी.
अमृता और इमरोज की मुलाकात भी बहुत रोचक है. दरअसल अमृता ने साहिर के नाम अंतिम खत लिखा था और उसे छपने के लिए भेजा जिसमें इमरोज को स्केच बनाना था. उन्होंने अमृता से पूछा यह खत तुमने किसके लिए लिखी है. लेकिन अमृता बता नहीं पायी. फिर मुलाकातों का दौर चला और यह इतना बढ़ा कि अमृता ने इमरोज की बांहों में दम तोड़ा. इमरोज ने अमृता की देखरेख में कोई कमी नहीं की और उनके जाने के बाद कहा- हम जीते हैं, ताकि हमें प्यार करना आ जाये. हम प्यार करते हैं ताकि जीना आ जाये. उसने सिर्फ शरीर छोड़ा है उसकी रूह मेरे साथ है.
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