कुंवर नारायण एक ऐसे लेखक थे जो न यशाकांक्षी थे और न ही यशाक्रांत :गीत चतुर्वेदी
नयी दिल्ली : हिंदी के यशस्वी कवि कुंवर नारायण पर एक स्मृति सभा का आयोजन 26 नवंबर को किया गया. आईआईसी केसीडी देशमुख सभागार में आयोजित स्मृति सभा में हिंदी और भारतीय साहित्य जगत के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षरों ने हिस्सा लिया. कार्यक्रम की शुरूआत में कुंवर नारायण को याद करते हुए गणमान्य साहित्यकारों ने अपने वक्तव्य […]
नयी दिल्ली : हिंदी के यशस्वी कवि कुंवर नारायण पर एक स्मृति सभा का आयोजन 26 नवंबर को किया गया. आईआईसी केसीडी देशमुख सभागार में आयोजित स्मृति सभा में हिंदी और भारतीय साहित्य जगत के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षरों ने हिस्सा लिया. कार्यक्रम की शुरूआत में कुंवर नारायण को याद करते हुए गणमान्य साहित्यकारों ने अपने वक्तव्य प्रस्तुत किये.ज्ञात हो कि गत 15 नवंबर को 90 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ.
असद ज़ैदी ने उनकी रुचियों के विस्तृत दायरे की चर्चा करते हुए कहा कि वे हिंदी के एक सेकुलर कवि थे.वे हिंदुस्तानी संस्कृति के सच्चे प्रतिनिधि थे. विनोद भारद्वाज ने कहा कि लखनऊ स्थित उनका घर ‘विष्णु कुटी’ मेरे लिए एक विश्वविद्यालय की तरह था. युवा लेखकों से उनकी अद्भुत मैत्री थी. सुधीर चंद्र ने कुंवर नारायण के इतिहासकार रूप को याद करते हुए कहा कि यह पक्ष उन्हें हमेशा से आकर्षित करता रहा है. इसके बाद प्रो हरीश त्रिवेदी ने यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के प्रो रूपर्ट स्नेल,पोलैंड की विदुषी प्रो. दानुता स्तासिक, रेनाता चेकालस्का और आगनयेशका फ्रास के शोक संदेशों का वाचन किया. उन्होंने कुंवर नारायण की एक कविता का पाठ करने के बाद लंदन में शोध कर रहे शोधार्थी और चीनी अनुवादक जिया यान का संदेश पढ़ा. पुरुषोत्तम अग्रवाल ने बताया कि कुंवर जी की कविताओं में अहिंसा तत्व प्रमुखता से उभरा है. उन्होंने ‘प्रतिनिधि कविताएं’ के संपादन का अपना अनुभव सुनाया. रेखा सेठी ने याद किया कि उनसे पहली बात जो सीखी वह थी कि देयर इज नो एब्सोल्यूट. वे हमेशा उत्सुकता और जिज्ञासा से मिलते. अंतरा देवसेन ने याद किया कि वे एक कवि या लेखक या एक अच्छे मनुष्य ही नहीं थे. उनकी परिधि में पूरी मानवता थी. गीत चतुर्वेदी ने कहा कि वे इस दौर में एक ऐसे लेखक थे जो न यशाकांक्षी थे और न ही यशाक्रांत.