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जाति पूछो भगवान की

महाराष्ट्र के कोरेगांव में शौर्य दिवस मनाने को लेकर जो दंगा भड़का उसके मूल में हमारे देश में मौजूद जाति व्यवस्था ही है. आज भीभारतीय समाज मेंजाति व्यवस्था के जाल में बुरी तरह जकड़ा हुआ है. राजनीति पर भी इसकी मजबूत पकड़ है. तमाम प्रगतिशीलता के बावजूद हमारा समाज इस जाल को काट नहीं सका […]

महाराष्ट्र के कोरेगांव में शौर्य दिवस मनाने को लेकर जो दंगा भड़का उसके मूल में हमारे देश में मौजूद जाति व्यवस्था ही है. आज भीभारतीय समाज मेंजाति व्यवस्था के जाल में बुरी तरह जकड़ा हुआ है. राजनीति पर भी इसकी मजबूत पकड़ है. तमाम प्रगतिशीलता के बावजूद हमारा समाज इस जाल को काट नहीं सका है. पढ़ें इसी जाति व्यवस्था की झलक प्रस्तुत करता वरिष्ठ साहित्यकार ‘ध्रुव गुप्त’ का यह व्यंग्य.

-ध्रुव गुप्त-

गांव में रामचरित मानस कथा के दस-दिवसीय आयोजन का आज अंतिम दिन था. एक स्कूल के मैदान में गांव-जवार के लगभग दो हजार लोग एकत्र थे, हरिद्वार के स्वामी श्री श्री नित्यानंद जी महाराज भगवान विष्णु के दशावतारों की गणना और आध्यात्मिक व्याख्या कर रहे थे. कलियुग में हो रहे पापों की संक्षिप्त सूची पढ़ने के बाद उन्होंने घोषित किया कि कलियुग अब अपने अंतिम चरण में है. किसी भी दिन भगवान का कल्कि अवतार संभावित है और शास्त्रों के अनुसार इस बार उनका जन्म किसी ब्राह्मण कुल में होगा.

उनका यह कहना था कि श्रोताओं के बीच हलचल बढ़ गई. कुछ देर के विमर्श और शोर-शराबे के बाद अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के प्रखंड सचिव राणा लखपति सिंह ने उठकर कहा, ‘स्वामी जी, आपकी इस भविष्यवाणी का कोई आधार नहीं है. जहां तक मुझे मालूम है भगवान इस बार भी किसी क्षत्रिय कुल में ही अवतार लेंगे. उन्हें क्षत्रिय के रूप में ही पृथ्वी पर आना पसंद है. राम, कृष्ण, बुद्ध और महावीर के उदाहरण सामने हैं. दुनिया से पाप का नाश करने के लिए बुद्धि और वेद-शास्त्र का ज्ञान काफी नहीं है. उसके लिए बल और युद्ध-कौशल की भी दरकार होती है. ये चीजें किसी क्षत्रिय के घर में ही मिलेंगी, ब्राह्मण की कुटिया में तो हरगिज नहीं.’उनकी बात ख़त्म होते ही पंडित गजाधर तिवारी उठ खड़े हुए. उन्होंने राणा लखपति सिंह को लगभग ललकारते हुए कहा, ‘बाबू साहेब छत्रियों के बल-कौशल का ढिंढोरा पीटते समय भूलिए गए की भगवान ने एक दफा परशुराम के रूप में ब्राह्मण कुल में पैदा होकर पिरिथवी से छत्रियों का समूल नाश किया था. एक बार नहीं,इक्कीस बार. इस कलजुग में आप छत्री लोगों से ही भारतभूमि में पाप बढ़ा है. आप के घर पैदा होकर भगवान धरती से पाप कैसे मेटा सकते हैं ?’

तिवारी जी द्वारा क्षत्रियों को पापी कहना था कि सत्संग में बवाल हो गया. राजपूत और ब्राह्मण आमने-सामने आ गए. धक्का-मुक्की शुरू हो गई. पिछले पंचायत चुनाव में मुखिया पद के पराजित उमीदवार रामआसरे यादव ने अपने कुछ चेले-चपाटियों की मदद से हंगामा शांत कराते हुए कहा, ‘बाबू लखपति सिंह ने हमारे किशन भगवान को छत्री कहा. वे यादव थे. बाबू साहेब उनको जदि छत्री मानते हैं तो हम यादव लोगों को छत्री मानने से काहे इनकार करते हैं ? स्वामी जी से निवेदन है कि भगवान का कल्कि अवतार कराने से पहले इस बात का फैसला कर दें.’

उनकी इस बात पर उपस्थित यादवों ने खड़े होकर देर तक तालियां बजाईं. जवाब देने के लिए लखपति सिंह फिर खड़े हुए, ‘ यादव जी, हमें आपको क्षत्रिय मानने में कोई एतराज नहीं है. हम आपको क्षत्रिय मान भी लें तो आपके नेता इस बात को कभी कबूल नहीं करेंगे. ऐसा करने से आपका पिछड़ों वाला आरक्षण ही नहीं जाएगा, आपके बड़े नेताओं की दुकानदारी भी बंद हो जायेगी !’

सत्संग में जोरदार हंसी गूंजी. हंसी थमते ही इलाके के युवा नेता जयनंदन शाही उठे. उन्होंने गुस्से में कहा, ‘भगवान जी हरमेसा ब्राह्मण, छत्री और यादव कुल में ही औतार काहे लेंगे ? कउनो सुरखाब का पर लगा है आप लोगों में ? देश का भूमिहार क्या इतना गया-बीता है कि भगवान का एगो कल्कि औतार नहीं सम्हाल सके ? ईमानदारी की बात है कि छत्री और ब्राह्मण के बाद अबकी दफा भूमिहारे की बारी है अउर हम गारंटी देते हैं कि भगवान अबकी कउनो भूमिहार के घर में परगट होंगे.’

गांव के सबसे बूढ़े अस्सी साल के मुंशी कपिलदेव सहाय उठे तो सत्संग में एकदम सन्नाटा छा गया. उन्होंने खंखारते हुए कहा, ‘मुझे स्वामी जी से इतना ही पूछना है कि हम कायस्थों के साथ हर युग में अन्याय ही क्यों हुआ है. जनता-जनार्दन की बात तो छोड़िए दीजिए, भगवान को भी धरती पर अवतार लेते समय उनकी सुध नहीं आई. हमारे कुलदेवता चित्रगुप्त जी महाराज आदिकाल से धर्मराज के घर में न्याय की स्थापना के लिए कलम घिस रहे हैं, लेकिन उन्हें भी कायस्थों के अलावा कोई नहीं पूजता. आप ही बताईए कि भगवान को एक दफा कायस्थ कुल में क्यों नहीं अवतार लेना चाहिए ? पापियों का नाश तलवार की जगह कलम से क्यों नहीं हो सकता ?’

गांव के दलित नेता शिवमुनि राम से न रहा गया. उन्होंने सर की गांधी टोपी सीधी करते हुए बुलंद आवाज़ में ऐलान किया, ‘भगवान कौनो छत्री, बाभन, भुईहार, कायस्थ, यादव की जमींदारी में बसते हैं का ? उनके लिए सब जात बराबर है. आप लोगों का समय गया. आने वाला जुग हम दलितों का है. जल्दिए देश में हमारा राज होगा और आपलोग हमारे दरवाज़ों पर पानी भरेंगे. आप सभी निश्चिन्त रहिए, भगवान का कल्कि औतार अबकी कौनो दलित परिवार में ही होगा जो आगे चलकर देश से सबरनों का नास कर पहले दलित राज की असथापना करेगा.’

जयनंदन शाही चिल्लाया, ‘हमारे होते कौनो बैकवर्ड, दलित में एतना कूबत नहीं है कि वह औतार पैदा कर सके. संस्कार और खानदान भी कौनो चीज है. अपनी औकात देखके बात करिए आपलोग !’

जयनंदन की इस बात पर शिवमुनि राम उखड़ गए. उन्होंने चुनौती दे डाली, ‘जदि भगवान इस बार कौनो दलित के यहां पैदा होकर आप ब्राह्मण, छत्री, भूईहार का विनास नहीं किए तो हम कसम खाके कहते हैं कि अगले चुनाव के पहले नेतागिरी छोड़ के घर बईठ जाएंगे.

सवर्णों के विनाश की बात पर सत्संग में बवाल हो गया. सवर्णों और दलितों के बीच जमकर लाठियां चली. हर तरफ भगदड़ मच गई. सत्संग में भारी संख्या में उपस्थित औरतों और बच्चों की तो शामत ही आ गई. हंगामे के बीच भागते हुए स्वामी नित्यानंद जी की धोती किसी लड़के ने खींच ली. स्वामी जी की धोती खुली तो उन्होंने गुस्सैल दुर्वासा मुनि की तरह भरे सत्संग में जनेऊ पकड़ कर शाप दे दिया, ‘हे भगवन ! अगली बार तुम पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, श्रीलंका चले जाना. चाहो तो सीरिया और इराक में अवतार ले लेना. तुमको इस भक्त की सौगंध है कि कुकर्मियों के इस भारत देश में कभी मत आना !’

गांव के सबसे पुराने साहूकार अशर्फी साह के पास लड़ने की कोई वज़ह नहीं थी. बनियों की प्रतिष्ठा से ज्यादा चिंता उन्हें इस बात की थी कि बेमतलब के वाद-विवाद में उनकी दुकान के चार ग्राहक न कम हो जायें. भागने के बजाय वे पास की एक झाड़ी में घुस गए. लगे हाथ दिसा-मैदान से फारिग होते-होते उन्होंने भगवान के कल्कि अवतार का गणित बिठाना शुरू कर दिया. कुछ देर सोचने के बाद बड़बडाये, ‘साला भारी फेरा है. साफ-साफ कुछ समझ में नहीं आ रहा कि भगवान इस दफे कौन जात में औतार लेंगे. बनिया कुल में तो आने से रहे काहे कि दुकानदारी का हिसाब-किताब तो उनसे होगा नहीं. कुछ ठीक-ठीक मालूम हो जाय तो आदमी पहले से कौनो जोगाड़ बिठा के रखे. अभी तो बुझाता है कि चुप रहके थाह लेवे में ही भलाई है.’

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