Read…वाजपेयी : एक राजनेता के अज्ञात पहलू
भारत के करिश्माई, चमत्कारी, कर्मठ एवं सौभाग्यशाली नेता, प्रखर वक्ता, ओजस्वी कवि, यशस्वी व्यक्तित्व और पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी. देश के राजनेताओं में या फिर उन्हें जानने वाले यहां के नारिकों में वे अटल जी या वाजपेयी जी के नाम से प्रख्यात थे. वे जितने अधिक सरल […]
भारत के करिश्माई, चमत्कारी, कर्मठ एवं सौभाग्यशाली नेता, प्रखर वक्ता, ओजस्वी कवि, यशस्वी व्यक्तित्व और पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी. देश के राजनेताओं में या फिर उन्हें जानने वाले यहां के नारिकों में वे अटल जी या वाजपेयी जी के नाम से प्रख्यात थे. वे जितने अधिक सरल थे, उतने ही रहस्यमय भी. उन्हें आप जानने-समझने का जितना प्रयास करेंगे, आपको आश्चर्यचकित करने वाले अनेकानेक तथ्य मिलेंगे और फिर इस बात की हमेशा कमी बनी ही रहेगी कि अभी तो हमने उनके बारे में जाना ही नहीं है.
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अभी हाल ही में स्वतंत्रता दिवस के दूसरे दिन यानी 16 अगस्त, 2018 की शाम करीब पांच बजकर छह मिनट पर दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में निधन हो गया, परंतु वाजपेयी जी के जीवन से जुड़ी अज्ञात पहलुओं का उद्भेजन केरल के एक राजनीतिक परिवार में जन्मे प्रखर पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार उल्लेख एन पी ने 2017 में ही कर दिया था.
उल्लेख एन पी दिल्ली में रहकर करीब दो दशक तक इकोनॉमिक्स टाइम्स और इंडिया टुडे से जुड़े रहे. उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के जीवन से संबंधित अज्ञात पहलुओं को अपनी अंग्रेजी की पुस्तक ”द अन्टोल्ड वाजपेयी” में उद्भेदन किया है, जिसकी हिंदी में ”वाजपेयी एक राजनेता के अज्ञात पहलू” के नाम से अनुवाद महेंद्र नारायण सिंह यादव ने की. उल्लेख एन पी और महेंद्र नारायण सिंह यादव ने वाजपेयी जी से जुड़ी बातों का उल्लेख बड़े ही रोचक तरीके से किया है.
जैसा कि हिंदी में अनूदित पुस्तक ”वाजपेयी एक राजनेता के अज्ञात पहलू” के आखिर में व्यक्त आभार में इस बात का जिक्र किया गया है कि भारत के करिश्माई नेता के जीवन से संबंधित अनजान और अनछुए पहलुओं का संकलन एन एम घटाटे, रंजन भट्टाचार्य, टी वी आर शेनॉय, दिनेश नारायण, के एन गोविंदाचार्य, वॉल्टर के एंडरसन, अरुण शौरी, मणिशंकर अय्यर, राजेश रामचंद्रन, यशवंत सिन्हा, थॉमस ब्लॉम हैनसन, एडवर्ड लुटवॉक, सईद नकवी, लालजी टंडन, राजनाथ सिंह सूर्य, रामबहादुर राय, बलवीर पुंज आदि कई शख्सीयतों से उपलब्ध सामग्री और जानकारी के आधार किया गया है.
इस पुस्तक के बारे में उल्लेख एन पी खुद ही इस बात का जिक्र करते हैं कि तमाम सीमाओं से परे जाकर उन्होंने अथक परिश्रम किया है. 14 अध्याय वाली इस पुस्तक की भूमिका जान हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ एडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज के साउथ एशियन स्टडीज प्रोग्राम के निदेशक वॉल्टर एंडरसन ने लिखा है, जिसका सह-लेखन का काम ”द ब्रदरहुड इन सैफ्रन : द राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एंड हिंदू रिवाइवलिज्म” ने किया है.
वाजपेयी जी के जीवन से संबंधित इस पुस्तक की शरुआत ही उल्लेख एन पी राजनीतिक अनिश्चितता के दौर से गुजर रहे उस समय के भारत में एक ऐसे गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री के उदय से करते हैं, जो बाद के कई वर्षों तक भारतीय राजनीति में चमत्कारिक ध्रुव तारे की तरह अटल बना रहा. पुस्तक के पहले ही अध्याय ”1996 : मामला गज़बड़ है” में उल्लेख ने वर्ष 1996 में 13 दिनों के लिए बनी वाजपेयी सरकार के उन अज्ञात पहलुओं को उजागर करते हैं, जिसका भान खुद वाजपेयी जी को भी नहीं था.
1996 की राजनीतिक अस्थिरता के दौर में चुनाव के बाद भाजपा जब एक बड़े दल के रूप में उभरी, तो वाजपेयी लाव-लश्कर के साथ तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के पास सरकार बनाने का दावा पेश करने जा रहे थे. वे राष्ट्रपति भवन के सामने अंबेसडर कार से उतरे. उनके साथ उनके दामाद रंजन भट्टाचार्य भी मौजूद थे. कार से उतरते ही वाजपेयी रंजन भट्टाचार्य के कान में फुसकते हैं कि ”भाई, मामला गड़बड़ है.”
हालांकि, उस वक्त रंजन भट्टाचार्य उनके कथन का अनुमान नहीं लगा सके, लेकिन राष्ट्रपति भवन के मुख्य द्वार पर पहुंचने के साथ ही उन्हें एहसास हो गया था कि बिना दावे के ही वाजपेयी प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं. इसकी वजह यह थी कि राष्ट्रपति भवन के गेट पर ही वाजपेयी का स्वागत एक प्रधानमंत्री की तरह किया गया था. यह स्वागत कर्मचारियों के सम्मान के रूप में दिखाई दिया.
इसी अध्याय में उल्लेख ने इस बात का भी जिक्र किया है कि राष्ट्रपति के अहम पद पर आसीन कांग्रेस का एक वरिष्ठ नेता पहले से ही इस बात के लिए तैयार बैठा था कि अगला प्रधानमंत्री वाजपेयी को ही बनाना है. सामने पड़ते ही तत्कालीन राष्ट्रपति शर्मा ने वाजपेयी को सरकार बनाने का न्योता दिया, तो वाजपेयी का भी दिमाग यह सोचकर चकरा गया कि अभी तो हमने इसकी तैयारी ही नहीं की है. आलम यह कि तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने न केवल वाजपेयी को सरकार बनाने का न्योता भर ही दिया था, बल्कि पंडितों को बुलाकर उन्होंने शपथ ग्रहण का मुहुर्त भी निकलवा रखा था.
इस तरह की अनेक ऐसी चौंकाने वाली बातें हैं, जिनका जिक्र इस पुस्तक में किया गया है, जिन्हें जान-समझकर आप भी चौंकेंगे. सबसे बड़ी बात है कि इसमें उन ऐतिहासिक तथ्यों को भी पिरोया गया है, जिसने वाजपेयी जैसी शख्सीयत का उदय होने में अपनी महती भूमिका निभायी है. उदाहरण के तौर पर, वाजपेयी जी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को हुआ. जैसे आम नेता या आदमी का जन्म होता है,वैसे ही इनका भी जन्म हुआ, परंतु लेखक ने वाजपेयी जी के जन्म के दिन को जिस हिसाब से उस दिन या उस साल होने वाली घटना-परिघटनाओं से जोड़कर रोचक तरीके से परोसा है; उससे यही लगता है कि वाजपेयी जी भारत के लिए जन्मकाल से ही फायदेमंद रहे हैं.
इसके साथ ही, इस पुस्तक में उनका बाल्यकाल, युवावस्था, राजनीतिक जीवन, संघर्ष, आंदोलन, संघ से जुड़ाव, वामपंथी विचारधारा से जुड़ाव, कांग्रेस और समतावादी विचारधारा से जुड़ाव, चुनाव, हार-जीत, राजघरानों से संबंध, पंडित नेहरू और पूरे नेहरू परिवार लगाव-जुड़ाव, भारतीय जनसंघ की स्थापना, पार्टी का विस्तार, पार्टी में विरोधियों पर वर्चस्व, जनसंघ का बिखराव, जनता पार्टी का उदय, जनता पार्टी का अवसान, भारतीय जनता पार्टी का उदय और तमाम राजनीतिक, सामाजिक, सार्वजनिक और निजी जीवन पर इसमें रोमांचक और रोचक तरीके से विमर्श और उद्भेदन किया गया है.
लेखक : उल्लेख एन पी
अनुवादक : महेंद्र नारायण सिंह यादव
प्रकाशन : मंजुल पब्लिशिंग हाउस
द्वितीय तल, उषा प्रीत काम्प्लेक्स, 42 मालवीय नगर, भोपाल-462003
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