मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां यानी मिर्जा गालिब की आज जयंती है. यह उनकी 221वीं जयंती है. उन्हें उर्दू एवं फ़ारसी भाषा का महान शायर माना जाता है. उनकी शायरी सर्वकालिक हैं. उन्होंने शायरी को आम लोगों के बीच पहुंचाने का काम किया. चूंकि गालिब खुद कहते हैं कि “हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए बयां और” , तो आज उनकी जयंती पर पढ़ें उनकी कुछ चुनिंदा शायरी-
1. अगर ग़फ़लत से बाज़ आया जफ़ा की
तलाफ़ी की भी ज़ालिम ने तो क्या की
2. अगले वक़्तों के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहो
जो मय ओ नग़्मा को अंदोह-रुबा कहते हैं
3. अपना नहीं ये शेवा कि आराम से बैठें
उस दर पे नहीं बार तो का’बे ही को हो आए
4. अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल
मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यूँ तेरा घर मिले
5. अपनी हस्ती ही से हो जो कुछ हो
आगही गर नहीं ग़फ़लत ही सही
6. अब जफ़ा से भी हैं महरूम हम अल्लाह अल्लाह
इस क़दर दुश्मन-ए-अरबाब-ए-वफ़ा हो जाना
7. अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा
8. आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे
9. आशिक़ हूँ प माशूक़-फ़रेबी है मिरा काम
मजनूँ को बुरा कहती है लैला मिरे आगे
10. आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक