पुस्तक समीक्षा : प्रेरणा से भरी किताब ‘खुशी क्लास’

-किताब का नाम : ‘खुशी क्लास’ -समीक्षक : सुनील बादल पत्रकार मुकेश सिंह चौहान की पहली किताब ‘खुशी क्लास’ एक अलग सी किताब है, जिसमें छोटे -छोटे पचासी प्रसंगों के माध्यम से 104 पृष्ठों में बहुत ही प्रेरक बातें संग्रहित की गयी हैं. आमतौर पर हम इन बातों को नजरअंदाज कर देते हैं .ज्यादातर प्रसंग […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 1, 2019 2:45 PM
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-किताब का नाम : ‘खुशी क्लास’

-समीक्षक : सुनील बादल

पत्रकार मुकेश सिंह चौहान की पहली किताब ‘खुशी क्लास’ एक अलग सी किताब है, जिसमें छोटे -छोटे पचासी प्रसंगों के माध्यम से 104 पृष्ठों में बहुत ही प्रेरक बातें संग्रहित की गयी हैं. आमतौर पर हम इन बातों को नजरअंदाज कर देते हैं .ज्यादातर प्रसंग हमें कहीं न कहीं से अपने आप से जोड़ती हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि हम भी उन प्रसंगों में कहीं न कहीं हैं. किताब की भाषा बहुत ही सरल और सहज है.

लेखक मुकेश सिंह चौहान ने अपने जीवन के अनुभवों को इस पुस्तक में जगह दी है. कुछ प्रसंग तो बेहद मार्मिक हैं और आज के माहौल में प्रासंगिक भी हैं. लेखक ने उदाहरण देते हुए लिखा है- दीपावली में बच्चे अकसर साफ- सफाई से कतराते हैं और मम्मी और बिटिया में टकराव हो जाता है. कैसे उन्होंने बच्ची को समझा कर सफाई के काम से जोड़ा, कैसे साइकिल सवार बुजुर्ग को जो व्यक्ति कुछ देर पहले भला बुरा कह रहा था, खुद एक्सीडेंट के बाद उसी बुजुर्ग मजदूर ने उन्हें संभाला. इसी प्रकार रामगढ़ के प्रवीण राजगढि़या की पत्नी करुणा को कैंसर हो गया था लेकिन पूरे परिवार के सपोर्ट और मुस्कुराहटों ने उन्हें कैंसर से लड़ने को प्रेरित किया. उन्होंने लिखा है कि यह प्रसंग हमें प्रेरित करते हैं. यह हमारे ऊपर है कि हम ऐसी रोजमर्रा की बातों से क्या सीख लेते हैं ? लगभग सभी प्रसंगों में सार्थकता और जीवन में घटने वाली अनहोनी पर भी धैर्य रखने की बात कही गई है. जीवन की अच्छी बातों को ही हंसते – मुस्कुराते हुए स्वीकार करने की पैरवी की गई है. इन्होंने बहुत सारे प्रसंगों में चर्चा की है कि माधुर्य से अपनी बातें अगर रखें छोटी-छोटी बातों के कारण रिश्ते खराब न करें और दूसरों की खुशियों,दूसरों की सफलताओं में अपनी सफलता देखें . व्यवहार शालीन रखें, प्रकृति के उपहार का अनुभव करें और यह मानकर चलें कि पीछे कुछ भी छूटता नहीं नए रूप में फिर हमें अवसर मिलता है, क्रोध अहंकार पर काबू कर पाएं, तो बजाय तमाशा बनने के हम उदाहरण बन सकते हैं.

संतुष्टि से ही खुशी कैसे मिलती है एक रिक्शावाले का आत्मविश्वास कि मेरा बोझ है तो उठाना ही पड़ेगा जैसे प्रसंग हैं जो हमारे ध्यान में नहीं आते. भाग्य पर सब छोड़ने के बजाय जो सचमुच हमें प्रेरित करता है हम सक्षम होते हैं पर कई बार आत्मविश्वास की कमी के कारण असफल हो जाते हैं और सफलता दूसरों को भी अगर मिल रही है और वहां हम अपनी प्रसन्नता व्यक्त करें तो एक सकारात्मक विचार हमारे अंदर आएगा और सच्ची खुशी का अनुभव भी हमें होगा. इसी प्रकार आहा और वाह में इन्होंने अंतर बताया है कि किस प्रकार है विरोधियों को जवाब देने के स्थान पर उन्हें वक्त के हवाले कर देना चाहिए और वक्त उन्हें जवाब देगा कुल मिलाकर कह सकते हैं कि खुशी क्लास एक पढ़ने लायक़ किताब है .

कुछ कमियां ज़रूर हैं, पर पहले प्रयास में यह कमियां सामान्य हैं. अगले संस्करणों में और इस पर कुछ और काम करें और कुछ जोड़ें, बढ़िया ढंग से एडिटिंग की जाए, शब्दों को थोड़ा और संवारा जाए तो यह तो इस तरह की प्रेरक किताबों की तरह राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित किताबों की श्रेणी में आ सकती है. फिर भी उनके प्रयास को बहुत ही सकारात्मक रूप से देखा जाना चाहिए और ऐसा लगता है कि यह पुस्तक जिनके हाथों में जाएगी उन्हें प्रभावित अवश्य करेगी. यही इस पुस्तक के लेखक की सबसे बड़ी विशेषता और सफलता है.

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