जन्मदिन विशेष : राष्ट्रीयता माखन लाल चतुर्वेदी के काव्य का कलेवर एवं रहस्यात्मक प्रेम उसकी आत्मा

-आनंद मोहन मिश्र- बचपन में एक कविता पढ़ी थी – चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं……..इस कविता को पढ़ते – पढ़ाते हमारे हिंदी के अध्यापक काफी भाव विभोर हो उठते थे. अभी पुलवामा हमले के बाद मुझे ऐसा लगा कि शायद इसी दिन के लिए इस कविता की रचना की गयी होगी. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 4, 2019 11:47 AM
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-आनंद मोहन मिश्र-

बचपन में एक कविता पढ़ी थी – चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं……..इस कविता को पढ़ते – पढ़ाते हमारे हिंदी के अध्यापक काफी भाव विभोर हो उठते थे. अभी पुलवामा हमले के बाद मुझे ऐसा लगा कि शायद इसी दिन के लिए इस कविता की रचना की गयी होगी. यह कविता कालजयी हो गयी है. तभी अचानक इस कविता के जनक, साहित्य जगत के प्रखर कवि पंडित माखनलाल चतुर्वेदी जी की याद आ गयी. चार अप्रैल 1889 को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में इनका जन्म हुआ था .

क्यों न इस दिन उनको याद करके उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे दी जाए? पंडित माखनलाल चतुर्वेदीजी ने हिंदी साहित्य की जो सेवा की है, वह विरले ही किसी और कवि में देखने को मिलती है. इनका परिवार राधावल्लभ संप्रदाय का अनुयायी था, इसलिए स्वभावत: चतुर्वेदी के व्यक्तित्व में वैष्णव पद कंठस्थ हो गये. प्राथमिक शिक्षा की समाप्ति के बाद ये घर पर ही संस्कृत का अध्ययन करने लगे. इनका विवाह पंद्रह वर्ष की अवस्था में हुआ और उसके एक वर्ष बाद, आठ रुपये मासिक वेतन पर इन्होंने अध्यापन कार्य शुरू किया.

सन 1913 ई० में इन्होंने अध्यापक की नौकरी छोड़ दी और पूर्ण रूप से पत्रकारिता, साहित्य और राष्ट्र की सेवा में लग गये. लोकमान्य तिलक के उद्घोष “स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है” को ये बहुत ही कर्मठता से अपने राष्ट्रीय आंदोलन में उतार चुके थे. चतुर्वेदी जी ने खंडवा से प्रकाशित मासिक पत्रिका “प्रभा” का संपादन किया, इन्होंने अपने राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गांधी के द्वारा आहूत सन 1920 के “असहयोग आंदोलन” में महाकोशल अंचल से पहली गिरफ्तारी इन्हीं की थी. इसी तरह 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी गिरफ्तारी देने का प्रथम सम्मान इन्हीं को मिला. राष्ट्र के प्रति समर्पित यह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी 30 जनवरी 1938 ई० को परलोक वासी हो गया . इनका उपनाम एक भारतीय आत्मा है. राष्ट्रीयता माखन लाल चतुर्वेदी के काव्य का कलेवर है तथा रहस्यात्मक प्रेम उसकी आत्मा है. चतुर्वेदी जी की सर्वाधिक रचनाओं में राष्ट्र के प्रति राष्ट्र प्रेम का भावना उल्लेखित है. प्रारंभ में इनकी रचनाएं भक्तिमय और आस्था से जुड़ी हुई थी किंतु राष्ट्रीय आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सेदारी के बाद इन्होंने अपनी रचनाओं को राष्ट्र के प्रति समर्पित करना आरंभ कर दिया. इनकी रचनाएं हिमकिरीटीनी, हिम तरंगिणी, युग चर, समर्पण, मरण ज्वार, माता, रेणु लो गूंजे धरा, बीजुरी, काजल, आँज, साहित्य के देवता, समय के पाँव, अमीर इरादे-गरीब इरादे, कृष्णार्जुन युद्ध इत्यादि काफी प्रसिद्ध हुई. स्वाधीनता के बाद जब मध्य प्रदेश नया राज्य बना था तब यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि किस नेता को इस राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री पद की बागडोर सौंपी जाये? किसी एक नाम पर सर्वसम्मति नहीं बनी. तीन नाम उभर कर सामने आये पहला पंडित माखनलाल चतुर्वेदी, दूसरा पंडित रविशंकर शुक्ल और तीसरा पंडित द्वारका प्रसाद मिश्रा. कागज़ के तीन टुकड़ों पर ये नाम अलग- अलग लिखे गए. हर टुकड़े की एक पुड़िया बनायी गयी. फिर उन्हें मिलाकर एक पुड़िया निकाली गयी जिस पर पंडित माखन लाल चतुर्वेदी का नाम अंकित था.

इस प्रकार यह तय पाया गया कि वे नवगठित मध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री होंगे. तत्कालीन दिग्गज नेता माखनलाल जी के पास दौड़ पड़े.सबने उन्हें इस बात की सूचना दी और बधाई भी दी कि अब आपको मुख्यमंत्री के पद का कार्यभार संभालना है. पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने सबको लगभग डांटते हुए कहा कि मैं पहले से ही शिक्षक और साहित्यकार होने के नाते "देवगुरु" के आसन पर बैठा हूं. मेरी पदावनति करके तुम लोग मुझे "देवराज" के पद पर बैठना चाहते हो जो मुझे सर्वथा अस्वीकार्य है .उनकी इस असहमति के बाद रविशंकर शुक्ल को नवगठित प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया. भाषा और शैली की दृष्टि से माखनलाल पर आरोप किया जाता है कि उनकी भाषा बड़ी बेड़ौल है. उसमें कहीं-कहीं व्याकरण की अवेहना की गयी है. कहीं अर्थ निकालने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है , कहीं भाषा में कठोर संस्कृत शब्द हैं तो कहीं बुंदेलखंडी के ग्राम्य प्रयोग. किंतु भाषा-शैली के ये सारे दोष सिर्फ एक बात की सूचना देते हैं कि कवि ने अपनी अभिव्यक्ति को इतना महत्वपूर्ण समझा है कि उसे नियमों में हमेशा आबद्ध रखना उन्हें स्वीकार नहीं हुआ है. भाषा- शिल्प के प्रति माखनलाल जी बहुत सचेष्ट रहे हैं. उनके प्रयोग सामान्य स्वीकार्यता भले ही न पायें,उनकी मौलिकता में संदेह नहीं किया जा सकता. ऐसे महान कवि एवं लेखक को शत – शत नमन.


(लेखक विवेकानंद केंद्रीय विद्यालय,अरुणाचल प्रदेश के उपप्राचार्य हैं)

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