युवा कवि ‘विहाग वैभव’ को भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, पढ़ें उनसे बातचीत के अंश…
भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार इस वर्ष युवा कवि ‘विहाग वैभव’ को दिये जाने की घोषणा हुई है. यह पुरस्कार उन्हें ‘तद्भव’ पत्रिका में प्रकाशित उनकी कविता ‘चाय पर शत्रु सैनिक’ के लिए दिया जायेगा. यह निर्णय इस वर्ष के निर्णायक प्रतिष्ठित कवि अरुण कमल ने किया है. उन्होंने कहा है कि यह कविता ‘वृत्तांत शैली […]
भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार इस वर्ष युवा कवि ‘विहाग वैभव’ को दिये जाने की घोषणा हुई है. यह पुरस्कार उन्हें ‘तद्भव’ पत्रिका में प्रकाशित उनकी कविता ‘चाय पर शत्रु सैनिक’ के लिए दिया जायेगा. यह निर्णय इस वर्ष के निर्णायक प्रतिष्ठित कवि अरुण कमल ने किया है. उन्होंने कहा है कि यह कविता ‘वृत्तांत शैली का व्यवहार करती हुई दो पात्रों के निजी सुख-संताप की मार्फ़त युद्धोन्माद, घृणा और अनर्गल हिंसा की भर्त्सना करती है तथा मनुष्य होने और बने रहने की पवित्र आकांक्षा को रेखांकित करती है.’
पुरस्कार की घोषणा के बाद प्रभात खबर डॉट कॉम से बात करते हुए विहान वैभव ने कहा-कविताएं लिखना मेरे लिए सांस लेने जैसा है. मेरी कविताएं मुझे थकान से, यातना से राहत देती हैं. अगर कविताएं नहीं होतीं तो मैं कब का चूक गया होता, अतीत हो गया रहता. जहां तक बात पुरस्कार की है तो मुझे ऐसा लगता है कि खुशी तो है, पर पुरस्कार एक जिम्मेदारी है. समाज के प्रति आपको यह जिम्मेदारी निभानी होगी. यह पुरस्कार सिर्फ मेरा नहीं, मेरे पाठकों का है. मैं तो यह कहूंगा कि यह पुरस्कार मेरे आलोचकों का भी है, जिनकी आलोचना ने मुझे सुधार का मौका दिया.
कविताएं लिखने की बात करूं तो नियमित रूप से मैंने दसवीं के बाद लिखना शुरू किया. उससे पहले मैं गजलें और गीत लिखता था. लेखन मुझे मेरे दादाजी से मिला. वे बहुत नामचीन नहीं हो पाये थे, लेकिन उन्होंने ही हमारे अंदर यह बीज बोया. मैं और मेरा जुड़वां भाई पराग पावन दोनों कविताएं लिखते हैं. पराग मेरा प्रिय कवि है, प्रिय इसलिए कि हम एक दूसरे को कविता के क्षेत्र में पूर्ण करते हैं. मैंने गोपालदास नीरज, अज्ञेय और निराला की रचनाएं खूब पढ़ी हैं
विहाग वैभव बीएचयू में शोधार्थी हैं. इनकी कई कविताएं देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है. विहाग को यह पुरस्कार 11 अक्तूबर को दिया जायेगा.
पढ़ें उनकी कविता :-
‘चाय पर शत्रु – सैनिक’
उस शाम हमारे बीच किसी युद्ध का रिश्ता नहीं था
मैनें उसे पुकार दिया –
आओ भीतर चले आओ बेधड़क
अपनी बंदूक और असलहे वहीं बाहर रख दो
आस-पड़ोस के बच्चे खेलेंगें उससे
यह बंदूकों के भविष्य के लिए अच्छा होगा
वह एक बहादुर सैनिक की तरह
मेरे सामने की कुर्सी पर आ बैठा
और मेरे आग्रह पर होंठों को चाय का स्वाद भेंट किया
मैंने कहा –
कहो कहाँ से शुरुआत करें ?
उसने एक गहरी साँस ली , जैसे वह बेहद थका हुआ हो
और बोला – उसके बारे में कुछ बताओ
मैंने उसके चेहरे पर एक भय लटका हुआ पाया
पर नजरअंदाज किया और बोला –
उसका नाम समसारा है
उसकी बातें मजबूत इरादों से भरी होती हैं
उसकी आँखों में महान करुणा का अथाह जल छलकता रहता है
जब भी मैं उसे देखता हूँ
मुझे अपने पेशे से घृणा होने लगती है
वह जिंदगी के हर लम्हे में इतनी मुलायम होती है कि
जब भी धूप भरे छत पर वह निकल जाती है नंगे पाँव
तो सूरज को गुदगुदी होने लगती है
धूप खिलखिलाने लगता है
वह दुनियाँ की सबसे खूबसूरत पत्नियों में से एक है
मैंने उससे पलट पूछा
और तुम्हारी अपनी के बारे में कुछ बताओ ..
वह अचकचा सा गया और उदास भी हुआ
उसने कुछ शब्दों को जोड़ने की कोशिश की –
मैं उसका नाम नहीं लेना चाहता
वह बेहद बेहूदा औरत है , और बदचलन भी
जीवन का दूसरा युद्ध जीतकर जब मैं घर लौटा था
तब मैंने पाया कि मैं उसे हार गया हूँ
वह किसी अनजाने मर्द की बाहों में थी
यह दृश्य देखकर मेरे जंग के घाव में अचानक दर्द उठने लगा
मैं हारा हुआ और हताश महसूस करने लगा
मेरी आत्मा किसी अदृश्य आग में झुलसने लगी
युद्ध अचानक मुझे अच्छा लगने लगा था
मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और और बोला –
नहीं मेरे दुश्मन ऐसे तो ठीक नहीं है
ऐसे तो वह बदचलन नहीं हो जाती
जैसे तुम्हारे सैनिक होने के लिए युद्ध जरूरी है
वैसे ही उसके स्त्री होने के लिए वह अनजाना लड़का
वह मेरे तर्क के आगे समर्पण कर दिया
और किसी भारी दुख में सिर झुका दिया
मैंने विषय बदल दिया ताकि उसके सीने में
जो एक जहरीली गोली अभी घुसी है
उसका कोई काट मिले –
मैं तो विकल्पहीनता की राह चलते यहाँ पहुँचा
पर तुम सैनिक कैसे बने ?
क्या तुम बचपन से देशभक्त थे ?
वह इस मुलाकात में पहली बार हँसा
मेरे इस देशभक्त वाले प्रश्न पर
और स्मृतियों को टटोलते हुए बोला –
मैं एक रोज भूख से बेहाल अपने शहर में भटक रहा था
तभी उधर से कुछ सिपाही गुजरे
उन्होंने मुझे कुछ अच्छे खाने और पहनने का लालच दिया
और अपने साथ उठा ले गए
उन्होंने मुझे हत्या करने का प्रशिक्षण दिया
हत्यारा बनाया
हमला करने का प्रशिक्षण दिया
आततायी बनाया
उन्होंने बताया कि कैसे मैं तुम्हारे जैसे दुश्मनों का सिर
उनके धड़ से उतार लूँ
पर मेरा मन दया और करुणा से न भरने पाए
उन्होंने मेरे चेहरे पर खून पोत दिया
कहा कि यही तुम्हारी आत्मा का रंग है
मेरे कानों में हृदयविदारक चीख भर दी
कहा कि यही तुम्हारे कर्तव्यों की आवाज है
मेरी पुतलियों पर टाँग दिया लाशों से पटी युद्ध-भूमि
और कहा कि यही तुम्हारी आँखों का आदर्श दृश्य है
उन्होंने मुझे क्रूर होने में ही मेरे अस्तित्व की जानकारी दी
यह सब कहते हुए वह लगभग रो रहा था
आवाज में संयम लाते हुए उसने मुझसे पूछा –
और तुम किसके लिए लड़ते हो ?
मैं इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं था
पर खुद को स्थिर और मजबूत करते हुए कहा –
हम दोनों अपने राजा की हवस के लिए लड़ते हैं
हम लड़ते हैं क्यों कि हमें लड़ना ही सिखाया गया है
हम लड़ते हैं कि लड़ना हमारा रोजगार है
वह हल्की हँसी मुस्कुराते मेरी बात को पूरा किया –
दुनियाँ का हर सैनिक इसी लिए लड़ता है मेरे भाई
वह चाय के लिए शुक्रिया कहते हुए उठा
और दरवाजे का रुख किया
उसे अपने बंदूक का खयाल न रहा
या शायद वह जानबूझकर वहाँ छोड़ गया
बच्चों के खिलौने के लिए
बंदूक के भविष्य के लिए
वह आखिरी बार मुड़कर देखा तब मैंने कहा –
मैं तुम्हें कल युद्ध में मार दूँगा
वह मुस्कुराया और जवाब दिया –
यही तो हमें सिखाया गया है ।