नयी दिल्ली : दिल्ली में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के कमलादेवी कॉम्प्लेक्स में 8 सितंबर की शाम छह बजे वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप कुमार की पहली कविता संग्रह ‘बिन जिया जीवन’ का लोकार्पण हुआ.
पत्रकारिता में काफी व्यस्त रहने के कारण लंबे समय के बाद उनकी कविता संग्रह आयी. गौरतलब है कि पत्रकार कुलदीप कुमार विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लगातार लिखते रहे हैं. उनके स्तंभों में साहित्य और राजनीति के साथ अकादमिक सवाल बहुत मजबूती से आते रहे हैं.
अपने लेखन के जरिये अलग पहचान बना चुके कुलदीप कुमार ने अपनी कविता संग्रह का पाठ भी किया, जिसका कार्यक्रम में मौजूद लोगों ने खूब लुत्फ उठाया. कार्यक्रम में साहित्य जगत के साथ-साथ पत्रकारिता जगत की कई बड़ी हस्तियां मौजूद थीं. वरिष्ठ साहित्यकार अशोक वाजपेयी, असगर वजाहत, इतिहासकार रोमिला थापर और पंकज बिष्ट के अलावा अन्य कई वरिष्ठ लोग मौजूद थे.
इसके अलावा कुलदीप कुमार के काव्य जीवन और संग्रह पर वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल, असद जैदी और प्रोफेसर शमीम हनफी ने प्रकाश डाला. कार्यक्रम की शुरुआत कुलदीप कुमार के काव्यपाठ से हुई. उसके बाद उनकी कविता के बारे में उनके मित्र असद जैदी ने कहा कि कुछ लोग अपनी डायरी या कॉपियों में छिपे रहते हैं, जिन्हें बहुत दिनों बाद जाना जाता है. कुलदीप ऐसे ही कवि हैं, जो आज हम सबके सामने हैं. जैदी ने बताया, वे और कुलदीप एक साथ लिखना शुरू किया था. पेशेवर कवि कभी नहीं रहे. कुलदीप अपनी रचना में ईमानदार और आडम्बरहीन हैं. उनके काव्य विवेक की यही खूबी है.
वरिष्ठ साहित्यकार मंगलेश डबराल ने कहा कि संपादन से जुड़े होने की वजह से कुलदीप की कविताओं में एक संछिप्ति है. उनकी कविताओं में बड़ी आत्मीयता और अंतरंगता है. कुलदीप 19वीं सदी के सौन्दर्यादि कविता के आलोचक रहे हैं और उनकी कविता आकस्मिकता से पैदा हुई है. उनका स्वर डंके की चोट वाले कवि का नही हैं इसलिए यथार्थ को लेकर एक अनिश्चितता है, इसलिए उनकी कविता का सौंदर्य बढ़ जाता है.
प्रोफेसर शमीम हनफी ने कहा कि कुलदीप की कविताओं को पढ़ने के बाद मैंने महसूस किया कि उनकी कविता देखने में भले ही सादा लगती है, लेकिन कवि कुलदीप, जिंदगी की पेचीदगी की समझ और शऊर रखते हैं. खास तौर पर महाभारत पर कविता लिखने में कवि की निजी जिंदगी शामिल है, जो संग्रह की खूबसूरती है. कम से कम शब्दों में ज्यादा कहने की सलाहियत है कुलदीप में.
लोकार्पण कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अंत में डीपी त्रिपाठी ने कहा कि कुलदीप कुमार से मिले बगैर उनकी कविता से मिलने वाला मैं ही हूं. बहुत पहले जब कुलदीप अपने मित्रों के साथ एक पत्रिका निकालते थे तब उनकी कविताओं से परिचय हुआ और उन्हें छापना शुरू किया.
इनकी कविताओं में शोर नहीं है, वे शांत हैं, सचेष्ट हैं और सक्रिय हैं. आज चारों तरफ इतना शोर बढ़ रहा है कि उसमें हम निमग्न हो जा रहे हैं. कुलदीप ने कविताओं से ज्यादा गद्य लिखा है , इसलिए इनमें काव्यमय गद्य दिखता है. भाषा का आंतरिक संगीत इन कविताओं में है. शांत अभिव्यक्ति से सामाजिक, राजनीतिक, यथार्थ सब है. कविता पढ़ने के बाद जब सोचने की शक्ति देती है तो यही कवि की सफलता है.