पुस्तक समीक्षा : सकारात्मकता के द्वार खोलती है ‘मन के द्वार’

पुस्‍तक : मन के द्वार (कविता संग्रह) कवि : शिव कुमार लोहिया प्रकाशक : पैरोकार पब्लिकेशन्‍स मूल्य : 150 समीक्षक : रजनीश आनंद कविता क्या है? क्या यह अलौकिक होती है और मन की गहराइयों से निकलती है या फिर इसमें कवि मन का शिल्प भी होता है? यह बहस का विषय हो सकता है […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 12, 2019 2:12 PM

पुस्‍तक : मन के द्वार (कविता संग्रह)

कवि : शिव कुमार लोहिया

प्रकाशक : पैरोकार पब्लिकेशन्‍स

मूल्य : 150

समीक्षक : रजनीश आनंद

कविता क्या है? क्या यह अलौकिक होती है और मन की गहराइयों से निकलती है या फिर इसमें कवि मन का शिल्प भी होता है? यह बहस का विषय हो सकता है लेकिन कविता संग्रह ‘मन के द्वार’ में कवि शिव कुमार लोहिया ने स्पष्ट कहा है कि कविताएं उनके मन से निकली हैं और उन्हें पढ़कर इंसान उनके मन के द्वार तक ही नहीं पहुंचता बल्कि कवि पाठकों को मन के अंदर झांकने की अनुमति भी प्रदान करता है. कवि ने नि:संकोच भाव से उन्मुक्त होकर अपने मन के भावों को गढ़ा है. इन कविताओं में बनावट नहीं है. कवि का यह पहला कविता संग्रह है जिसमें उन्होंने कुल 55 कविताओं को स्थान दिया है. आज के दौर में जब समाज से मूल्यों का क्षरण हुआ है और लोग नकारात्मकता की ओर अग्रसर हैं, ऐसे में यह कविता संग्रह उनके लिए प्रेरणा की वजह बन सकती हैं.

कवि ने पुस्तक की भूमिका में लिखा है -मैं कवि नहीं एक सकारात्मक व्यक्ति हूं. अपनी रचनाओं में कवि ने उसी सकारात्मकता को उतारा है, कवि का यह प्रयास है कि पाठक इससे प्रभावित हो और सकारात्मकता को ग्रहण करे. कवि ने रचनाओं में मानवीय मूल्यों का उल्लेख किया है जैसे –

अंधकार में अगर दीपक जलाना है

तो किसी के काम आना

किसी का दर्द मिटाना

गिरे हुए को उठाना

सोते को जगाना

भटके को राह दिखाना

भूखे को खिलाना

घावों पर मरहम लगाना

कवि अनोखे अंदाज में ईश्वर से संवाद करते भी नजर आते हैं जैसे-

हे प्रभो

आशा है कि आप सकुशल होंगे!

धरती के तथ्य कुछ इस प्रकार हैं-

मानव को मस्तिष्क देकर

स्वतंत्र बना दिया

पर मस्तिष्क के अधीन न रह

मानव ने मस्तिष्क को

अपने अधीन बना लिया…

कवि हर कविता में आदर्श स्थिति को दिखलाने का प्रयास करते नजर आते हैं-

मरने की फिक्र जिनको है, वे मरने से डरते हैं,

जिंदगी यूं ही गुजर जाती है हाथ मलते मलते

दूसरों के गम को जो अपना बना लेते है और

खुशियां बांटते रहते हैं, वे मरने से नहीं डरते.

रिश्तों की रोटी को

निस्वार्थ प्रेम की लौ में सेंको

सहृदयता के घृत से चुपड़ कर

उसे सानंद परोसो.

पुस्तक की प्रस्तावना बंगाल के राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी ने लिखी है, जिसे आशीवर्चन के रूप में किताब में स्थान दिया गया है. केशरीनाथ त्रिपाठी ने लिखा है कि यह कवि शिव कुमार लोहिया का पहला काव्य संग्रह है, लेकिन कवि ने मुखर होकर अपनी भावनाएं व्यक्त की हैं. इस संगह में कवि ने ईश्वर की आराधना, प्रार्थना और उससे जुड़ी अपेक्षाओं को स्थान दिया है. इसमें सामाजिक शिक्षा और प्रेरणा के भाव हैं.

कविता संग्रह का प्रकाशन कोलकाता के पैरोकार पब्लिकेशंस ने किया है. पुस्तका का मूल्य 150 रुपये है. कवर पेज काफी आकर्षक है और यह प्रेरणा रूपी प्रकाश का संकेत देती प्रतीत होती है.

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