।।राजीव मुरारी/राजेश।।
लखीसराय : सांझ जिनकी सहेली और जिंदगी जिनकी पहेली… पिछले डेढ़-दो महीने से सोशल मीडिया का स्टार बन चुके कवि दशरथ प्रसाद आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है. कवि दशरथ महतो की जल संरक्षित करने को लेकर कविता इन दिनों व्हाट्सएप व फेसबुक सहित अन्य सोशल मीडिया पर देखा जा सकता है, जिसे लोग सराहना करते नहीं थक रहे हैं तथा इन कविता के माध्यम से खुद प्ररेणा लेकर उसमें ढलने का प्रयास कर रहे हैं.
कवि दशरथ प्रसाद का परिचय
कवि दशरथ प्रसाद का जन्म वर्ष 1950 को सदर प्रखंड के एक छोटे से गांव महिसोना में हुआ. उनके पिता रामेश्वर महतो मूलरूप से किसान थे और उसी से अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे, जबकि उनकी माता सोधनी देवी एक सफल गृहिणी थीं. दशरथ प्रसाद वर्ष 1970 में श्री दुर्गा हाईस्कूल लखीसराय से मैट्रिक की परीक्षा पास की तथा 1973 में इंटर की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए तथा वे प्रारंभिक शिक्षा गांव के मध्य विद्यालय महिसोना प्राप्त की. अभी वे जिला प्रगतिशील लेखक संघ के सचिव भी हैं.
पेड़ों से घिरे एक छोटे से मकान में रहते हैं दशरथ प्रसाद
कवि दशरथ प्रसाद का मुख्य पेशा खेती है तथा रहने के लिए उनके दो-दो जगह मकान हैं, लेकिन वे खेतों में बने एक छोटे से मकान में रहते हैं, जिसके चारों ओर वे लगभग 50 की संख्या में पेड़ों में लगा रहे हैं. इनमें सागवान, आम, अमरूद सहित अन्य तरह के पेड़ शामिल हैं. कवि जी कहते हैं. आजकल पौधारोपण का चलन तो एक फैशन चुका है, जिसको देखो वे पौधारोपण कर फोटो खिंचवाने में मशगूल हैं, लेकिन मुख्य रूप से धरातल पर पानी बचाने के लिए कोई कार्य नहीं कर रहे हैं. पानी के नीचे का जलस्तर तो दिनों घट ही रहा है. पहले सौ फीट, फिर डेढ़ सौ, दो सौ और अब ढाई-तीन सौ फीट पर पानी मिलता है. अगर इसी तरह जलस्तर नीचे गिरते जायेगा, तो धरती के नीचे पानी रहेगा ही नहीं. कवि दशरथ प्रसाद कहते हैं कि पानी का स्तर तो घट ही रहा है, लेकिन हवा व पर्यावरण भी दूषित हो रहा है, जिससे खेत का उर्वरक शक्ति घट रही है तथा पैदावार में कमी आ रही है. उन्होंने कहा कि पर्यावरण दूषित होने का परिणाम किसान तो अबकी बार देख ही चुके हैं. इस बार न के बराबर धान की फसल लगी है, जिसके पास समरसेबल था, वो पटवन कर खेती कर लिये, लेकिन जिनके पास साधन नहीं था, उनकी जमीन ऐसे ही परती रह गयी.
इधर-उधर भटकने के दौरान लिख डाली कई पुस्तकें
दशरथ प्रसाद वर्ष 1973 में इंटर में उत्तीर्ण हुए थे. उस समय गांव-देहात में काफी कम लोग पढ़े-लिखे होते थे, जिस कारण उन्हें कई विभागों से नौकरी करने का ऑफर आया, लेकिन वे उसे ठुकरा कर खुद की ही दुनिया में मस्त थे. पिता के गुजर जाने के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गयी. इसके बाद जीविकोपार्जन के लिए पिता की तरह अपने खेतों में काम करते थे. इसके बाद जो समय मिलता वे इधर-उधर भटकने में बिता देते. यूं तो दशरथ प्रसाद बचपन से ही पढ़ने में मेधावी थे, लेकिन वे पढ़ाई में मन न लगाकर इधर-उधर भटकने व्यस्त रहते थे. इसी दौरान उसने कई जगह पशु-पक्षी को पानी के बिना तड़पते देखा, जिससे उनका मन विचलित हो गया तथा जल संरक्षित करने का प्रण लिये. कवि दशरथ प्रसाद ने कहा कि पहले किऊल नदी उनके गांव के समीप थी तथा नदी में पानी आ जाने पर गांव के सभी तालाब, पोखर, आहर में जलस्तर बढ़ जाता था, जिससे सालभर पशु-पक्षियों की प्यास बुझने के साथ ही किसानों की फसलों की सिंचाई भी हो जाती थी, लेकिन आज कहीं भी नदी हो या तालाब, पोखर हो या फिर आहर… किसी में भी पानी भरा नहीं दिखता है, जिससे मन खिन्न हो उठता है. मानव जीवन और प्रकृति की इसी दुर्दशा से प्रेरणा लेकर कई पुस्तकें लिख डाली.
50 वर्षों से जल संरक्षित करने को लेकर लोगों को कर रहे हैं जागरूक
कवि दशरथ प्रसाद बीते 30 वर्षों से जल संरक्षित करने को लेकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं तथा इसके लिए उन्होंने राज्य के कई गांव और शहरों का दौरा भी किया. वे जब अपने घर से बाहर निकलते हैं, तो गांव के लोग, बाजार के दुकानदार और राहगीर समेत अन्य कई जगहों पर लोग उन्हें घेरकर कविता का पाठ करने की जिद करने लगते हैं, जिस पर वे कविता के ही माध्यम से लोगों से जल संरक्षित करने की अपील करते नजर आते हैं. उनकी इस अपील से प्रेरित होकर कई लोग उनकी मुहिम से जुड़ भी रहे हैं तथा खुद प्रेरणा लेकर जल संरक्षित करने में लग गये हैं.
लोगों को पानी की बर्बादी करते देख उन्हें संरक्षित करने देते हैं सलाह
कवि दशरथ प्रसाद गांव भ्रमण के दौरान किसी महिला को बर्तन मांजने के दौरान नल की टोटी खुला देखकर उन्हें पानी बचाने की सलाह देते हैं. इतना ही नहीं, कई होटलों और घरों में नहाने के दौरान या अन्य कार्यों में पानी की बर्बादी होते देख वे बेबाकी के साथ टोका-टाकी करने में भी गुरेज नहीं करते हैं. वे कहते हैं, जल है तो कल है… अगर नहीं बचेगा, तो आने वाले दिनों में इंसान भी पानी के लिए मोहताज हो जायेगा.
स्कूलों में जाकर शिक्षक व बच्चों को पानी बचाने की देते हैं सलाह
कवि दशरथ प्रसाद पानी बचाने को लेकर कई स्कूलों में भी गये हैं तथा वहां शिक्षक और स्कूली बच्चों को पानी बचाने की नसीहत भी देते हैं. कवि कहते हैं कि कई स्कूलों के प्राचार्यों के आमंत्रण पर वे विद्यालय में प्रार्थना के दौरान ही जाते हैं तथा एकत्रित विद्यार्थियों से पानी बचाने की अपील करते हैं, ताकि वे अपने-अपने परिजनों को पानी की बर्बादी करते देखें, तो उन्हें फौरान रोकें और पानी बचाने की सलाह दें. कवि जी की इस मुहिम से बच्चों के अभिभावक भी प्रेरणा लेते हैं तथा कवि जी को आकर कहते हैं कि पानी बचाने की आपके द्वारा चलायी गयी मुहिम से घर के बच्चे भी सबक ले लिये हैं और बड़ों को भी पानी बर्बादी करने पर रोक-टोक करते हैं कि पानी बचायें… जल है, तो कल है.
दशरथ प्रसाद द्वारा लिखी गयी पुस्तकें
कवि दशरथ प्रसाद की अब तक कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें मुक्ति व प्यासी कला उपन्यास, खत, गलबात, मां का आंचल, जंगल की चिठ्ठी आयी है, आओ मित्र बचाओ आंचल, दखल, घी की तरह बचाओ पानी कविता संग्रह आदि शामिल हैं. इसके साथ ही वे कई पत्र-पत्रिकाओं में भी लिख चुके हैं.
इन सम्मानों से नवाजे गये कवि दशरथ प्रसाद
कवि दशरथ प्रसाद वर्ष 2010 में श्रीनंदन शास्त्री स्मृति सम्मान, वर्ष 2013 में महाकवि योगेश मगही अकादमी शिखर सम्मान, वर्ष 2014 में गोपाल सिंह नेपाली राष्ट्रीय शिखर सम्मान के अलावा कई सम्मान से नवाजे गये तथा कई मंचों पर सम्मानित हुए.
घुंघरू के बोल पर बजा नहीं, पूंजीपतियों के लिए बाजार की गोद में गया नहीं
अपनी बेबाक टिप्पणी तथा ओजस्वी कविता के लिए मशहूर कवि दशरथ प्रसाद कहते हैं कि वे फूलों के साथ हंसते हैं, तितली और मधुप के साथ खेलते हैं, चांद और सितारों के उस पार जाकर कहानी गढ़ते हैं, लिखते हैं. कभी खेत में, खलिहान में, तो कभी बाग और बथान में. गांव की गली और शहर की सड़कों पर घूम-घूमकर थकी हारी जनता को कविताएं सुनाते हैं. जर्जर मूल्यों के बीच सूख रही मानवीय संवेदनाओं के बीच उम्मीद के दीये जलाते हैं. अगली सुबह की धूप के लिए झुरमुट में रहकर चिड़ियों की तरह चहचहाते हैं. कवि जी कहते हैं कि सुबह और सांझ मेरी सहेली है, अपना जीवन एक पहेली है, अय्यासों के लिए घुंघरू के बोल बजा नहीं, पूंजी-पतियों के लिए बाजार की गोद में गया नहीं, मौलवी और पंडितों की भाषा में कभी बोला बनी. बस, सामाजिक विसंगतियों के खिलाफ जन-जागरण के लिए सड़क पर गाते हैं.
किसी जनप्रतिनिधि या जिला प्रशासन से नहीं मिला सहयोग
पानी बचाने के लिए मुहिम चला रहे कवि दशरथ प्रसाद को आज तक कभी भी न ही किसी जनप्रतिनिधि और न ही किसी जिला प्रशासन के अधिकारियों से कोई मिला है. वे चंदा-चिठ्ठा कर अपनी कविता व कहानियों का पुस्तकें छपवाकर बांटते हैं. पुस्तकें बांटने के दौरान ही कई लोग उन्हें कुछ राशि दे देते हैं कई ऐसे ही उनकी पुस्तकें रख लेते हैं लेकिन सभी से वे पानी बचाने की आग्रह करते रहते हैं कि अगर आज नहीं चेते तो कल क्या होगा.
जल संरक्षित करने को लेकर चर्चित हुई कविता
जंगल की चिट्ठी आयी है, पर्वत की चिठ्ठी आयी है
झरना-झील, नदी, सागर की चिट्ठी तुम्हारे नाम आयी है
कर्ज में डूब रही दुनिया की दर्द भरी चिट्ठी आयी है
जंगल की चिट्ठी आयी है, पर्वत की चिट्ठी आयी है….
नल के टोटी खुला छोड़कर आंख मूंदकर चला गया तू
मुफ्त में सौ लीटर पानी जान-बूझकर बहा दिया तू
एक चोंच जल के लिए चिड़िया नदी किनारे भटक रही है
जंगल की चिट्ठी आयी है, पर्वत की चिठ्ठी आयी है…
कौन लुटेरा है वो जिसके पाप से नल में पानी नहीं है
धरती के तल सुख रहा है और आसमान में मेघ नहीं है
आधी से ज्यादा आबादी दूषित पानी पी रही है
जंगल की चिट्ठी आयी है, पर्वत की चिठ्ठी आयी है…
सात शहर में महल बनाकर सात बैंक में पैसा रखकर,
पीने के लिए जल नहीं बचा तो धरती पर तू जी नहीं सकते है,
पानी के लिए विश्वयुद्ध की आहट कान में आने लगी है
जंगल की चिट्ठी आयी है, पर्वत की चिठ्ठी आयी है…
शुरू करो जलसंग्रह अभी से नहीं तो पानी नहीं बचेगा
अगले कुछ वर्षों में पीने के लिए पानी नहीं मिलेगा
पानी की बर्बादी रोकना सबों की सामूहिक जिम्मेदारी है
जंगल की चिट्ठी आयी है, पर्वत की चिठ्ठी आयी है…