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अमृता प्रीतम : जिनकी रचनाओं में जीवंत हैं भावनाएं, सौ से अधिक लिखीं पुस्तकें

Amrita Pritam birthday today special story leading 20th-century poet : अमृता प्रीतम एक ऐसी साहित्यकार हैं जो विरले पैदा होते हैं. उन्होंने अपने जीवन में कुल सौ पुस्तकें लिखीं और उनकी रचनाओं का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ. उन्होंने मुख्यत: पंजाबी में ही रचनाएं कीं, लेकिन वे हिंदी में भी लिखती थीं. उन्हें 1956 में साहित्य अकादमी पुस्कार से नवाजा गया. 1969 में पद्मश्री,1982 में साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार और 2004 में उन्हें देश का दूसरा सबसे बड़ा पुरस्कार पद्मविभूषण भी मिल चुका है. उन्होंने ना सिर्फ स्त्री मन को अभिव्यक्ति दी बल्कि भारत-पाकिस्तान विभाजन के दर्द को भी बखूबी अपनी रचनाओं में उकेरा. उन्हें अपनी पंजाबी कविता ‘अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ’ के लिए बहुत प्रसिद्धि मिली.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 31, 2020 7:39 AM
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अमृता प्रीतम एक ऐसी साहित्यकार हैं जो विरले पैदा होते हैं. उन्होंने अपने जीवन में कुल सौ पुस्तकें लिखीं और उनकी रचनाओं का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ. उन्होंने मुख्यत: पंजाबी में ही रचनाएं कीं, लेकिन वे हिंदी में भी लिखती थीं. उन्हें 1956 में साहित्य अकादमी पुस्कार से नवाजा गया. 1969 में पद्मश्री,1982 में साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार और 2004 में उन्हें देश का दूसरा सबसे बड़ा पुरस्कार पद्मविभूषण भी मिल चुका है. उन्होंने ना सिर्फ स्त्री मन को अभिव्यक्ति दी बल्कि भारत-पाकिस्तान विभाजन के दर्द को भी बखूबी अपनी रचनाओं में उकेरा. उन्हें अपनी पंजाबी कविता ‘अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ’ के लिए बहुत प्रसिद्धि मिली.

इस कविता में भारत विभाजन के समय पंजाब में हुई भयानक घटनाओं का अत्यंत दुखद वर्णन है और यह भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में सराही गयी. अमृता प्रीतम का जन्म 31 अगस्त 1919 को गुजरांवाला पंजाब में हुआ था. उनका बचपन लाहौर में बीता. अमृता ने काफी कम उम्र से ही लिखना प्रारंभ कर दिया था और उनकी रचनाएं पत्रिकाओं और अखबारों में छपती थीं.

अमृता प्रीतम के व्यक्तिगत जीवन को लेकर चर्चाएं बहुत होती हैं. लेकिन उनकी लेखनी की धार, उनकी कल्पनाशक्ति, अद्भुत बिंब पर चर्चा कम है. पिंजर जैसी रचना में ना सिर्फ उन्होंने भारत विभाजन के दंश का बेहतरीन और मार्मिक चित्रण किया वहीं स्त्री मन की वेदना का बखूबी वर्णन किया. अपनी आत्मकथा रसीदी टिकट में उन्होंने बहुत ही बेबाकी से अपने संबधों पर चर्चा की. बात चाहे साहित की हो, इमरोज की या उनके पाकिस्तानी मित्र की उन्होंने कुछ भी नहीं छिपाया. उनकी साफगोई के कारण उनकी आत्मकथा काफी चर्चित और पठनीय है.

अमृता की चर्चित कृतियां उपन्यास- पांच बरस लंबी सड़क, पिंजर, अदालत, कोरे कागज़, उन्चास दिन, सागर और सीपियां

आत्मकथा-रसीदी टिकट कहानी संग्रह- कहानियाँ जो कहानियाँ नहीं हैं, कहानियों के आँगन मेंसंस्मरण- कच्चा आंगन, एक थी सारा

उपन्यास- डॉक्टर देव,पिंजर,आह्लणा , आशू, इक सिनोही,बुलावा,बंद दरवाज़ा प्रमुख हैं. पढ़ें उनकी कुछ कविताएं-

ऐ मेरे दोस्त! मेरे अजनबी!

एक बार अचानक – तू आया

वक़्त बिल्कुल हैरान

मेरे कमरे में खड़ा रह गया।

साँझ का सूरज अस्त होने को था,

पर न हो सका

और डूबने की क़िस्मत वो भूल-सा गया…

फिर आदि के नियम ने एक दुहाई दी,

और वक़्त ने उन खड़े क्षणों को देखा

और खिड़की के रास्ते बाहर को भागा…

वह बीते और ठहरे क्षणों की घटना –

अब तुझे भी बड़ा आश्चर्य होता है

और मुझे भी बड़ा आश्चर्य होता है

और शायद वक़्त को भी

फिर वह ग़लती गवारा नहीं

अब सूरज रोज वक़्त पर डूब जाता है

और अँधेरा रोज़ मेरी छाती में उतर आता है…

पर बीते और ठहरे क्षणों का एक सच है –

अब तू और मैं मानना चाहें या नहीं

यह और बात है।

पर उस दिन वक़्त

जब खिड़की के रास्ते बाहर को भागा

और उस दिन जो खून

उसके घुटनों से रिसा

वह खून मेरी खिड़की के नीचे

अभी तक जमा हुआ है…

पहचान

तुम मिले

तो कई जन्म

मेरी नब्ज़ में धड़के

तो मेरी साँसों ने तुम्हारी साँसों का घूँट पिया

तब मस्तक में कई काल पलट गए–

एक गुफा हुआ करती थी

जहाँ मैं थी और एक योगी

योगी ने जब बाजुओं में लेकर

मेरी साँसों को छुआ

तब अल्लाह क़सम!

यही महक थी जो उसके होठों से आई थी–

यह कैसी माया कैसी लीला

कि शायद तुम ही कभी वह योगी थे

या वही योगी है–

जो तुम्हारी सूरत में मेरे पास आया है

और वही मैं हूँ… और वही महक है…

कुफ़्र

आज हमने एक दुनिया बेची

और एक दीन ख़रीद लिया

हमने कुफ़्र की बात की

सपनों का एक थान बुना था

एक गज़ कपड़ा फाड़ लिया

और उम्र की चोली सी ली

आज हमने आसमान के घड़े से

बादल का एक ढकना उतारा

और एक घूँट चाँदनी पी ली

यह जो एक घड़ी हमने

मौत से उधार ली है

गीतों से इसका दाम चुका देंगे

Posted By : Rajneesh Anand

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