The Rise Of The BJP : भाजपा की इतिहास यात्रा का विश्लेषण

New Book Launch : दिल्ली विश्वविद्यालय भारतीय राजनीति को बदल देनेवाली भाजपा को जानने के इच्छुक विद्यार्थियों एवं शोधकर्ताओं के लिए यह जरूरी किताब है क्योंकि बहुत समय बाद भाजपा पर एक मौलिक कृति आयी है.

By Prabhat Khabar News Desk | January 30, 2022 1:09 PM
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डॉ अमित सिंह, प्राध्यापक

वर्ष 2014 के चुनाव ने भारतीय राजनीति को बदल कर रख दिया क्योंकि तीन दशक बाद केंद्र में कोई एक दल बहुमत के साथ आया था. यही करिश्मा 2019 में भी नजर आया. इन दोनों आम चुनावों ने देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को हाशिये पर ला खड़ा कर दिया. भारतीय जनता पार्टी का विजय रथ यहीं नहीं थमा, बल्कि उसने पूर्व से लेकर पश्चिम तक तथा उत्तर से लेकर दक्षिण तक कई राज्यों में अपनी सरकार बनायी, जिस वजह से कई क्षेत्रीय दलों को भी नुकसान उठाना पड़ा. इस विजयगाथा से प्रभावित होकर कई विद्वान एवं विश्लेषक यह जानना चाहते हैं कि यह चमत्कार आखिर हुआ कैसे?

शायद इसी का नतीजा है कि 2014 के बाद भाजपा एवं संघ परिवार पर केंद्रित पुस्तकों की बाढ़-सी आ गयी है. इसी कड़ी में हाल में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और अर्थशास्त्री इला पटनायक की पुस्तक ‘द राइज ऑफ द बीजेपी: द मेकिंग ऑफ द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट पॉलिटिकल पार्टी’ आयी है, जिसे पेंगुइन बुक्स ने प्रकाशित किया है. पाठकों ने भी इस किताब का गर्मजोशी से स्वागत किया है क्योंकि बहुत समय के बाद भाजपा की सांगठनिक यात्रा पर ऐसी किताब आयी है.

पुस्तक का नाम: द राइज ऑफ द बीजेपी: द मेकिंग ऑफ द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट पॉलिटिकल पार्टी लेखक: भूपेंद्र यादव और इला पटनायक प्रकाशक: पेंगुइन बुक्स

इसके लेखक भूपेंद्र यादव कई सालों से भाजपा में कार्यरत हैं और संगठन की कई अहम जिम्मेदारियों को निभाया है. अभी केंद्रीय मंत्रिमंडल में श्रम व रोजगार, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री का कार्यभार संभाल रहे हैं. उन्होंने भाजपा की विकास यात्रा को बहुत करीब से देखा है तथा उसका चित्रण भी विस्तार से इस पुस्तक में किया है.

इस पुस्तक के लेखक ने भाजपा की विकास यात्रा को 12 अध्यायों में विभाजित किया है, जिसमें उन्होंने जनसंघ की स्थापना, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के योगदान एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद और अंत्योदय के विचारों का आज की भाजपा व उसकी सरकार, नीतियों एवं उसके संगठन पर पड़नेवाले प्रभाव की चर्चा विस्तार से की है. इला पटनायक के अर्थशास्त्री होने की वजह से दीनदयाल उपाध्याय के विचारों एवं भाजपा की आर्थिक नीतियों का विश्लेषण निखर कर सामने आया है.

पुस्तक में जनसंघ को भाजपा का स्वरूप देने तथा 1980 से अब तक की यात्रा पर बारीकी से चर्चा हुई है. इसमें लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, मुरली मनोहर जोशी एवं नरेंद्र मोदी सरीखे नेताओं का भाजपा के संगठन एवं नेतृत्व में योगदान को भलीभांति दर्शाया गया है. भाजपा और संघ परिवार के संबंधों पर भी बेबाकी से बात की गयी है. विभिन्न मुद्दों- राम मंदिर, धारा 370, तीन तलाक, समान नागरिक संहिता, अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक, धर्मनिरपेक्षता बनाम पंथनिरपेक्षता, राष्ट्रवाद आदि- पर भी भाजपा के विचारों को स्पष्ट करने की कोशिश की गयी है.

भारतीय राजनीति को बदल देनेवाली भाजपा को जानने के इच्छुक विद्यार्थियों एवं शोधकर्ताओं के लिए यह जरूरी किताब है क्योंकि बहुत समय बाद भाजपा पर एक मौलिक कृति आयी है. अगर पुस्तक में भाजपा के विभिन्न राज्यों में विस्तार की गाथाओं और उसमें अहम भूमिका निभा रहे स्थानीय नेताओं के योगदान पर भी थोड़ा प्रकाश डाला जाता, तो अच्छा होता, लेकिन देश की सबसे बड़ी पार्टी की विकास यात्रा को एक ही पुस्तक में समाहित कर पाना थोड़ा मुश्किल है.

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