औरंगजेब, मुगल बादशाहों में एक ऐसा नाम जिसे लेकर कई तरह की कहानियां है. जब भी औरंगजेब की चर्चा होती है, तीखी बहस होती है. औरंगजेब का नाम आता है ,तो जिक्र होता है दारा शिकोह का. केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की ओर से हुमायूं का मकबरा कैंपस में 140 कब्रों में दारा शिकोह के कब्र की तलाश के लिए इतिहासकारों के पैनल गठन किया गया. संस्कृति मंत्रालय के इस कदम ने एक बार फिर हवा दे दी फिर चर्चा शुरू हो गयी औरंगजेब और दारा शिकोह की .
औरंगजेब के जीवन से जुड़े कई सवालों का जवाब
इतिहास पढ़ते वक्त जब भी हम ऐसे विषय पर पहुंचते हैं, जहां जानकारियों का अभाव है. किसी भी बात को स्पष्ट तौर पर कहने का मजबूत आधार नहीं है, तो इतिहास की उसी पुस्तक में लिखा जाता है, इतिहासकारों में मतभेद है. औरंगजेब की छवि को लेकर भले ही मतभेद हो लेकिन औरंगजेब की जब भी चर्चा होती है, उसके ईमान पर भी बात होती है. औरंगजेब की चर्चाओं में कई बार यह पता नहीं चलता कि क्या सही है क्या गलत ?
इसे बड़े से सवालिया निशान का हल ढुढ़ने की कोशिश की है पत्रकार-संपादक-लेखक अफसर अहमद ने….
खूनी संघर्ष की पड़ताल
अफसर अहमद ने गैर अकादमिक हिंदी-उर्दू में ‘औरंगज़ेब नायक या खलनायक’ विषय पर वह छह खंडों में एक सीरीज लाने का फैसला लिया है. छह खंडो की इस कड़ी का दूसरा खंड ‘सत्ता संघर्ष’ नाम से प्रकाशित हुआ है. आगरा शहर को समर्पित इस खंड में लेखक ने औरंगज़ेब और उसके भाइयों दारा शिकोह, शाह शुजा और मुराद बख्श के बीच शाहजहां के तख्त हासिल करने को लेकर हुए खूनी संघर्ष की पड़ताल की है.
औरंगजेब की कहानियों में सबसे ज्यादा जिक्र सत्ता के संघर्ष को लेकर हुई लड़ाई का ही होता है. इसमें अफसर अहमद ने साजिशों, धोखों और कई जंगों की दास्तानगोई को गहराई से समझकर पूरी पड़ताल के बाद लिखा है. दूसरे खंड में भी पहले की तरह औरंगज़ेब पर लिखे गए मूल संदर्भ ग्रंथों का ही सहारा लिया गया है.
फारसी फरमानों का अनुवाद भी इस किताब में शामिल
यह पहली बार नहीं है जब औरंगजेब पर इस तरह अलग से और विस्तार से लिखने की कोशिश हुई है. इससे पहले पांच खंडों की एक सीरीज इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने अंग्रेजी में लिखी है. यह जरूर कहा जा सकता है कि यह सीरीज हिंदी में एक प्रमाणिक पहल है. पहले के पांच खंडों की तुलना में अफसर अहमद एक खंड और बढ़ाकर ला रहे हैं.
अफसर ने बताया कि इन छह खंडों में औरंगज़ेब की पूरी जिंदगी पर चर्चा की जाने वाली है. पहले खंड में उन तमाम सवालों को पिरोया गया था जो बार-बार बहस का हिस्सा बन जाता है. दूसरे खंड में जिन सवालों के जवाब खोजे गए हैं उनमें औरंगज़ेब पर भाइयों के कत्ल और शाहजहां को नजरबंद किया जाना शामिल है. अफसर बताते हैं इसे औऱ मजबूत बनाने के लिए मूल फारसी फरमानों के अनुवाद की भी मदद ली गई है. साथ ही इस खंड में मुगल बादशाह शाहजहां के आखिरी दिनों के बारे में मुस्तैदी से बताने की कोशिश भी की गई है.
प्रमाणिकता पर बना रहेगा भरोसा
इस किताब को लेकर यह बात भरोसे के साथ कही जा सकती है कि औरंगजेब को लेकर चल रही बहस में चर्चाओं में यह किताब अहम भूमिका निभायेगी और बहस शायद एक सही दिशा में आगे बढ़ेगा. किताब के आखिरी पन्नों में दर्ज संदर्भों की सूची पढ़कर तथ्यों की प्रमाणिकता पर भरोसा बना रहेगा. करीब 15 संदर्भ ग्रंथों में अधिकतर 80-100 साल पुराने हैं. कुछ किताबें औरंगज़ेब की समकालीन भी हैं.
लेखक ने अपनी कृति में तस्वीरों का बेहद सधा हुआ इस्तेमाल किया है. किताब देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक बेहतर पत्रकार जो रिपोर्ट में हर तथ्यों, हर एक तस्वीर का बेहतर इस्तेमाल करना जानता है उसने बड़ी मेहनत से यह किताब लिखी है.
किताब खोलते ही आपको इतिहास विभाग, सेंट जोन्स कॉलेज, आगरा के पूर्व विभागाध्यक्ष रमेशचंद्र शर्मा का लेख मिलेगा. इसमें लिखा है, अभी लेखन कार्य का प्रारंभ ही है. इसके पूर्ण हो जाने पर कोई सम्मति देना सार्थक होगा. अभी सीरीज के चार और खंड सामने आने वाले हैं. यह सीरीज इतिहास में दिलचस्पी और खबरों में प्रमाणिकता रखने वाले छात्रों, शिक्षकों, पत्रकारों और लेखकों के लिए संदर्भ स्रोत की तरह काम आ सकती है.