Devdutt Pattanaik Exclusive: ‘मैंने माइथोलॉजी को नहीं, बल्कि माइथोलॉजी ने मुझे चुना और जीवन बदला’

देवदत्त पटनायक ने कहा कि उन्होंने माइथोलॉजी को नहीं, बल्कि माइथोलॉजी ने उन्हें चुना. उन्होंने कहा कि मैंने तो मेडिसन चुना था. उन्होंने कहा कि मैंने शुरुआत में मेडिसन के लिए अप्लाई किया, एमबीबीएस करके मैं डॉक्टर बना इसी पढ़ाई के क्रम में माइथोलॉजी मेरे जीवन में आयी और मेरे जीवन में सब कुछ बदल गया.

By Aditya kumar | October 16, 2022 8:36 AM

Devdutt Pattanaik: ‘बड़ा देखने के लिए चाह रखने वालों को अपना दृष्टिकोण बड़ा रखने की जरूरत है, छोटा दृष्टिकोण रखने वालों को हर चीज छोटी ही दिखायी देती है. ‘ उक्त बातें भारत के पौराणिक कथाओं को विज्ञान, इतिहास और आधुनिक युग से जोड़कर परिभाषित करने वाले लेखक देवदत्त पटनायक ने कही. देवदत्त पटनायक अध्यात्म, वेद और पुराण के विशेषज्ञ है जिनका उद्देश्य पौराणिक कथाओं को आधुनिक भारत से जोड़कर हर घर तक पहुंचाने का है. प्रभात खबर के साथ विशेष बातचीत के दौरान उन्होंने अपने जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातें साझा की. आइए जानते है विस्तार में,

लेखन के लिए माइथोलॉजी का ही चयन क्यों?

मैंने माइथोलॉजी को नहीं, बल्कि माइथोलॉजी ने मुझे चुना है. मैंने तो मेडिसन चुना था. उमैंने शुरुआत में मेडिसन के लिए अप्लाई किया, एमबीबीएस करके मैं डॉक्टर बना इसी पढ़ाई के क्रम में माइथोलॉजी मेरे जीवन में आया और मेरे जीवन में सब कुछ बदल गया. शुरुआत से ही मैं चीजों को आसानी से समझ पाता था जिन्हें समझने में अन्य लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता था. शुरू से ही मेरा दिमाग एनालिटिकल रहा है.

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आपके अनुसार रामायण और महाभारत में क्या अंतर है?

मेरे अनुसार रामायण और महाभारत दोनों एक ही चीज है. दोनों के पहले भाग में राज्य को खोना, दूसरे भाग में वनवास, तीसरे भाग में युद्ध और चौथे भाग में युद्ध का परिणाम है. ऐसे में लोगों को लगता है कि चीजें अलग है लेकिन गहन अध्ययन से पता चलता है कि दोनों एक ही चीज है. कहानी एक ही है केवल तरीका अलग-अलग है. शास्त्र से डरना नहीं चाहिए बल्कि उसे मित्र बनाना चाहिए तब शास्त्र अच्छे से समझ आएगा.

पौराणिक कथाओं में आपके प्रिय पात्र कौन हैं?

परमात्मा का कोई रूप नहीं है इसलिए हर पात्र महत्वपूर्ण है. लक्ष्मी को समझने के लिए विष्णु को समझना जरूरी है, विष्णु को समझने के लिए शिव जी को समझना जरूरी है. शिव जी को समझना पड़ेगा तो काली को समझना पड़ेगा, उसके लिए गौरी को समझना पड़ेगा. ऐसे ही हर पात्र चाहे वो देव हो या इंसान सभी को समझने की जरूरत है.

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जड़ों से दूर हो रहे युवा को पौराणिक कथाओं से कैसे जोड़ा जा सकता है?

आज के युग में हर कोई खुद को असुरक्षित महसूस करता है. चाहे वो अमीर हो या गरीब, वृद्ध हो या जवान सभी असुरक्षित है. जबतक लोग स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहे है तब तक पुराण और वेदों की जरूरत पड़ेगी. लोग खुद को सुरक्षित महसूस करने के लिए अध्यात्म से जरूर जुड़ेंगे. आज नहीं तो कल युवा भी वापस अपने अध्यात्म की ओर आएंगे. घूम फिर कर सुबह के भूले शाम को वापस लौटेगा ही. अगर बुद्धि नहीं है तो गुरु के पास जाएंगे अगर बुद्धि है तो स्वयं रास्ते की तलाश करेंगे, लेकिन अंतिम पड़ाव अध्यात्म ही होगा.

50 से अधिक किताबें अभी तक हो चुकी है प्रकाशित

प्रभात खबर के साथ हुई खास बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि अबतक उनकी 50 से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी है और लगभग 600 कॉलम उन्होंने अभी तक लिखी है. बता दें देवदत्त पटनायक भारतीय साहित्य जगत में एक जाना माना नाम है. उनके द्वारा लिखी गयी कुछ प्रमुख किताबों में 7 Secrets of Shiva, My Gita, Sita: An illustrated retelling of Ramayan, Mith=Mithya, Jaya शामिल है. जानकारी हो कि देवदत्त पटनायक झारखंड की राजधानी रांची में एक कार्यक्रम में आए थे जहां उन्होंने पौराणिक कथाओं पर एक अध्यात्म दर्शन कराया और लोगों से सवाल जवाब भी किये.

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