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डॉ अभय मिंज की पुस्तक ‘आदिवासी दर्पण’ का हुआ लोकार्पण

श्रीमती कल्पना सोरेन ने डॉ अभय मिंज की दूसरी पुस्तक ‘आदिवासी दर्पण’का लोकार्पण किया. इस कार्यक्रम में ओसलो मेट्रोपोलिटन यूनिवर्सिटी, नॉर्वे के डॉ राहुल रंजन मौजूद थे.

रांची: डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची के मानवशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अभय मिंज की कृति ‘आदिवासी दर्पण’ का लोकार्पण  रांची के डोरंडा स्थित संत जेवियर स्कूल में हुआ. डॉ मिंज इस स्कूल के पूर्व छात्र रहे हैं. श्रीमती कल्पना सोरेन कार्यक्रम की मुख्य अतिथि  थी. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि आदिवासी समाज के लिए यह निश्चय ही गौरव का पल है. आदिवासी लेखक है, आदिवासी समाज है और लोकार्पण की मुख्य अतिथि भी एक आदिवासी है. उन्होंने डॉ मिंज के कार्यों की सराहना की और कहा कि आदिवासी समाज में भी भरपूर क्षमता है. डॉ अभय मिंज समाज में एक प्रेरणास्रोत के रूप में स्थापित हो गये हैं.

बचपन के दिन

लेखक डॉ मिंज ने अपने बाल्यावस्था के दिनों की चर्चा की. उन्होंने बतलाया कि स्कूल में उनकी शिक्षिका श्रीमती माला बोस ने उनके जीवन में अहम परिवर्तन लाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि सेवानिवृत्त शिक्षिका माला बोस ने अपने संबोधन में अपने अनुभव साझा किये. कार्यक्रम की अध्यक्षता फादर अजीत कुमार खेस ने की. उन्होंने इसे विद्यालय के लिए गर्व का क्षण बताया. उन्होंने डॉ मिंज के साथ लंबे सामाजिक रूप से जुड़े होने के अनुभवों को साझा किया.उन्होंने यह भी बतलाया कि संत जेवियर विद्यालय बेहतर शिक्षा के साथ-साथ बेहतर मानवीय मूल्यों के लिए संकल्पबद्ध है. कार्यक्रम में डॉ मिंज की मां श्रीमती एम बखला भी उपस्थित थीं. वह रांची विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष रही हैं. फादर इग्नेशियस लकड़ा ने स्वागत भाषण दिया. फादर फुलदेव ने मंच संचालन किया और डॉ स्मिता टोप्पो ने धन्यवाद ज्ञापन किया.

झारखंडी बौद्धिक पुनर्जागरण की मजबूत नींव साबित होगी यह किताब
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डॉ अभय मिंज की पुस्तक ‘आदिवासी दर्पण’ का हुआ लोकार्पण 2

प्रख्यात अंतरराष्ट्रीय फिल्म निर्माता मेघनाथ ने कहा कि अभय मिंज की वर्तमान कृति झारखंडी बौद्धिक पुनर्जागरण की मजबूत नींव रखेगी. सेंट्रल यूनिवर्सिटी झारखंड की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ सुचेता सेन चौधरी ने कहा कि पुस्तक में आदिवासियों के सामाजिक-सांस्कृतिक पक्षों का गंभीर वैज्ञानिक विश्लेषण है. विख्यात अंतरराष्ट्रीय फिल्म निर्माता श्री बीजू टोप्पो ने कहा कि यह आदिवासियत का जीवंत दर्पण है- आदिवासी के द्वारा, आदिवासियों के लिए. ओसलो मेट्रोपोलिटन यूनिवर्सिटी, नॉर्वे के डॉ राहुल रंजन ने कहा कि यह पुस्तक आदिवासी अध्ययन पर बढ़ते साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान है.

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