नगर कराएगा विषपान मुझे? देवेंद्र मांझी की हुंकारती गजलें

Ghazal Collection: देवेंद्र मांझी बताते हैं, 'जब वे अपने गुरु के पास जाते और उनके पास बैठते तो वे भांथी चलाते-चलाते शेर पढ़ते रहते थे. उन्होंने मुझे बहरत (छंद) सिखानी शुरू कर दी. फिर उन्होंने एक लाइन दी. वह लाइन हिंदी गजल बन गई.'

By KumarVishwat Sen | October 7, 2024 8:38 AM
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Ghazal Collection: ‘उड़ी फिरती बता कैसी खबर है. जलाकर रख दिया जिसने नगर है.’ यह शेर गालिब का नहीं है. गालिब शेर और गजलों के शहंशाह जरूर होंगे, मगर इस हिंदुस्तान में उनके बाद ऐसे अनेक गजलनबीस हुए, जिन्होंने गालिब को चुनौती नहीं दी. अलबत्ता, उनके मुकाबिल कम न हुए. आपने शाहिर लुधियानवी, गुलजार और तमाम तरह के नामचीन बंबइया फिल्मों में गीत लिखने वाले गजलकारों के बारे में पढ़ा, सुना या देखा होगा. आजकल कुमार विश्वास युवा दिलों की धड़कन बने हैं. इन गजलकारों ने मदरसे, कॉलेज, यूनिवर्सिटी आदि में तालीम लेकर गजल या शेर गढ़ना शुरू किया होगा. मगर, एक गजलकार ऐसे हैं, जिनके एक गुरु लोहार थे जी हां, खांटी लोहार. भांथी चलाकर लोहा पीटते थे. उस लोहार ने कई ऐसे शागिर्द पैदा किए, जिसमें से एक जिंदा शागिर्द का नाम देवेंद्र मांझी है.

देवेंद्र मांझी का असली नाम देवेंद्र गोयल है, लेकिन साहित्य में आने के बाद अपना उपनाम उन्होंने मांझी रख लिया. हां, तो उस लोहार गुरु की कथा बीच में छूट गई थी. देवेंद्र मांझी बताते हैं, “जब वे आठवीं-10वीं के आसपास होंगे, तो हरियाणा के गुड़गांव के पास नूंह में एक लोहार थे. आशिक मिजाज थे. वे जब रेल की पटरी के टुकड़े पर लोहा पीटते थे, तब ‘खट खटाखट खट, खट खटाखट खट। खट खटा खटा खटा खट’ की आवाज हथौड़े से आती थी. अब यहीं से देवेंद्र मांझी के शेर और गजल का सफर शुरू होता है. देवेंद्र मांझी बताते हैं, ‘जब वे अपने गुरु के पास जाते और उनके पास बैठते तो वे भांथी चलाते-चलाते शेर पढ़ते रहते थे. उन्होंने मुझे बहरत (छंद) सिखानी शुरू कर दी. फिर उन्होंने एक लाइन दी. वह लाइन हिंदी गजल बन गई.’

फिलवक्त, देवेंद्र मांझी मौजूं इसलिए हैं, क्योंकि गजल संग्रह की उनकी तीन किताबें आई हैं. पहली किताब ‘शीशे का इन्किलाब’, दूसरी किताब, ‘नगर कराएगा विषपान मुझे‘ और तीसरी किताब ‘मैं ही मौका हूं‘ है. ये तीनों किताबें अपनेआप में गजल की यूनिवर्सिटी हैं. ‘नगर कराएगा विषपान मुझे’ का एक शेर ‘जी-हुजूरी की फेंक दो चादर, आईना बनके अब रहो तुम भी’ है. ये हुंकार नहीं तो और क्या है? ऐसे ही एक शेर ‘शीशे का इन्किलाब‘ का है, ‘हमें तलाश है उस सिरफिरे की सदियों से, बगल में जिसके नई सोच का पिटारा हो.’ इससे भी मारक शेर तो ‘मैं ही मौका हूं’ में है. देवेंद्र मांझी ने लिखा है, ‘दीवार तो मैं बन न सका हूं कभी यहां, इन गर्दिशों की धूप में साया जरूर हूं.’ अब भला बताइए कि एक लोहार के चेले की कलम में इतना दम है, तो उस गुरु की गजल में कितना दम होगा.

गजल संग्रह का नाम : नगर कराएगा विषपान मुझे
गजलकार : देवेंद्र मांझी
प्रकाशक : पंछी बुक्स
पता : एफ-19 प्रथम तल, गली नं. 4, पंचशील गार्डन, नवीन शाहदरा, नई दिल्ली-110032
संपर्क नंबर : 9873718147
पुस्तक का मूल्य : 300 रुपये मात्र

गजल संग्रह का नाम : शीशे का इन्किलाब
गजलकार : देवेंद्र मांझी
प्रकाशक : पंछी बुक्स
पता : एफ-19 प्रथम तल, गली नं. 4, पंचशील गार्डन, नवीन शाहदरा, नई दिल्ली-110032
संपर्क नंबर : 9873718147
पुस्तक का मूल्य : 300 रुपये मात्र

गजल संग्रह का नाम : मैं ही मौका हूं
गजलकार : देवेंद्र मांझी
प्रकाशक : पंछी बुक्स
पता : एफ-19 प्रथम तल, गली नं. 4, पंचशील गार्डन, नवीन शाहदरा, नई दिल्ली-110032
संपर्क नंबर : 9873718147
पुस्तक का मूल्य : 300 रुपये मात्र

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