Hindi Diwas : प्रो जगदीश्वर चतुर्वेदी ने कहा- नगरीकरण- पूंजीवाद की वजह से खतरे में हैं भाषाएं

Hindi Diwas : भाषा व्यवहार से कहीं अधिक शिक्षण से अपने विस्तार को ग्रहण करती है इसलिए शिक्षण व्यवस्था और शिक्षण संस्थानों को सभी विषयों का हिंदी माध्यम में व्यवस्थित शिक्षण एवं सुचारू रूप से अध्ययन-अध्यापन पर जोर देने की जरूरत है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 14, 2024 5:13 PM
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Hindi Diwas : नगरीकरण और पूंजीवाद ने हिंदी ही नहीं अपितु अन्य भारतीय भाषाओं के अस्तित्व को भी खतरे में डाल दिया है. निरंतर सड़कों का जाल बढ़ने से और भारतीय समाज पर बढ़ते पूंजीवाद के प्रभाव की वजह से लगातार स्थानीय लोग अच्छी सुविधा और रोजगार की तलाश में महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं, इस विस्थापन ने भी भाषाओं को खत्म किया है. सुप्रसिद्ध आलोचक और कोलकाता विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे प्रो जगदीश्वर चतुर्वेदी ने हिंदू महाविद्यालय में कहा कि महानगरों में अंग्रेजी भाषा का प्रभाव कहीं अधिक है वहीं लोग खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग सिर्फ बोलचाल के व्यवहार में करते हैं जिससे स्थानीय भाषाओं का भी पतन हो रहा है, लगभग हर साढ़े तीन महीने में कोई न कोई भारतीय भाषा लोगों के व्यवहार से भी विलुप्त हो रही है.

अंग्रेजी माध्यम की बढ़ती लोकप्रियता चिंताजनक

प्रो चतुर्वेदी ने हिंदी सप्ताह में “हिंदी: राजभाषा से राष्ट्रभाषा” तक विषय पर उद्घाटन व्याख्यान देते हुए कहा कि अंग्रेजी माध्यम की बढ़ती लोकप्रियता चिंताजनक है. उन्होंने कहा आज भी देश के लगभग हर छोटे-बड़े अफसर यहां तक कि हिंदी के हिमायती भी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाने पर जोर दे रहे हैं जो कि भारतीय शिक्षण व्यवस्था के लिए अत्यंत गंभीर विषय है. भाषा व्यवहार से कहीं अधिक शिक्षण से अपने विस्तार को ग्रहण करती है इसलिए शिक्षण व्यवस्था और शिक्षण संस्थानों को सभी विषयों का हिंदी माध्यम में व्यवस्थित शिक्षण एवं सुचारू रूप से अध्ययन-अध्यापन पर जोर देने की जरूरत है.


प्रो चतुर्वेदी ने युवा पीढ़ी में पुस्तकालयों की अपेक्षा इंटरनेट पर अधिक भरोसा करने की प्रवृत्ति को अध्ययनशीलता के लिए घातक बताते हुए कहा कि पुस्तकों की गंध हमें सच्चे अर्थों में ज्ञान पिपासु बनाती है. उन्होंने कहा कि भाषा का विकास पठन-पाठन और लेखन से होता है केवल बोलने से भाषाएं आगे नहीं बढ़तीं. प्रो चतुर्वेदी ने अपने अध्ययन और अध्यापन के भी अनेक प्रसंग सुनाए तथा प्रश्नोत्तर सत्र में विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं के समाधान किए.

हिंदी संभावनाओं से परिपूर्ण भाषा

इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत में विषय प्रवर्तन करते हुए हिंदी विभाग के प्रोरामेश्वर राय ने कहा कि हिंदी असीम संभावनाओं से परिपूर्ण भाषा है उसे एक दिवस तक सीमित रखना उचित नहीं. प्रो राय ने चतुर्वेदी जी को असहमतियों के किसान की संज्ञा देते हुए कहा कि प्रचलित वैचारिक परिपाटियों से गहरी असहमति उन्हें आवश्यक लगती है. तृतीय वर्ष के अभिनव कुमार झा ने लेखक परिचय दिया तथा खुशी ने मंच संचालन किया.


कार्यक्रम में समाजशास्त्र विभाग की प्रभारी डॉ मेहा ठाकोर, हिंदी विभाग के डॉ पल्लव व डॉ नौशाद सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थी एवं शोधार्थी मौजूद रहे. अंत में हिंदी सप्ताह की संयोजक डॉ नीलम सिंह ने सप्ताह में आयोजित होने वाली गतिविधियों का विवरण देने के बाद सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया.

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