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हिंदी कहानी : देवदूत

माधुरी, ईश्वर ने हमें इतना सक्षम माना है और इसलिए हमें एक विशेष बालक भेंट में दिया है. यह देवदूत है! हम भगवान की इस चुनौती को स्वीकार करते हुए, अपनी समग्र शक्ति अब इसकी परवरिश में लगा देंगे.

By Mithilesh Jha | January 6, 2024 11:18 AM
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“नमस्कार, देवियों व सज्जनों, एयर इंडिया की इस नेवार्क की उड़ान 191 में आप सबका स्वागत है. कृपया कुर्सी की पेटी बाँधे रखिए. कुछ ही समय में हमारा विमान नेवार्क जाने के लिए उड़ान भरेगा…”

प्रियज के चेहरे पर उत्तेजना छलक रही थी. मैंने उससे कहा, “बेटा, अब अपना विमान उड़ने की तैयारी में है. लाओ, मैं तुम्हारा सीट-बेल्ट बाँध दूँ.” उसने खुश हो कर मेरा हाथ पकड़ लिया. भाषा की अभिव्यक्ति से वंचित मेरे पुत्र का चेहरा, उसके मन की दर्पण की तरह होता था. वह जो भी भावना अनुभव करता, वह उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में घुमड़ने लगती. इस समय का आनंद, उसकी आँखों से छलकता हुआ मुझे भी खुश रहने के लिए प्रेरित कर रहा था.

पिछले छः माह से मेरे जीवन से आनंद, ख़ुशी, प्रसन्नता व हास्य के साथ मानो जीवनतत्व ही रूठ गया हो ! छह माह पहले हृदयाघात के कारण विरल की आघातजनक विदाई, मुझे जीवन से विमुख करने के लिए पर्याप्त थी. विरल की विदाई के बाद मात्र प्रियज के कारण मैं ज़िंदा रही. प्रियज- मेरा व विरल का एकमात्र प्यारा पुत्र.

विवाह के आठ वर्ष बाद प्रियज का जन्म हुआ. जैसे ही डॉक्टर ने हमें कहा कि बालक को डाउनसिंड्रोम है, तब ही हमारे सारे इंद्रधनुषी स्वप्न, रंगों सहित धुल गए. मेरी अपेक्षा विरल जल्दी स्वस्थ हुआ और मुझे कहा कि, “माधुरी, ईश्वर ने हमें इतना सक्षम माना है और इसलिए हमें एक विशेष बालक भेंट में दिया है. यह देवदूत है ! हम भगवान की इस चुनौती को स्वीकार करते हुए, अपनी समग्र शक्ति अब इसकी परवरिश में लगा देंगे.” बस, उस दिन से सब प्रकार की बाधाओं के साथ हमारा कुदरत के विरुद्ध संघर्ष आरंभ हो गया.

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हमारी अथक मेहनत के बावजूद बारह वर्ष के प्रियज का मानसिक विकास सामान्य बालक की अपेक्षा बहुत कम था. वह मात्र गुजराती भाषा समझता था और बहुत ही अस्पष्ट उच्चारणों व सीमित शब्द-भंडार के साथ बोल सकता था. इस वजह से अनजान लोगों के साथ उसका बहुत कम संवाद रहता था. पहले उसे विशेष बालकों की शाला में भर्ती कराया था, लेकिन कुछ विशेष सुधार नहीं हुआ. प्रियज की एक विशेषता थी कि वह भावनाओं की भाषा ठीक से समझ जाता था. कोई यदि उसे प्रेम से बुलाए तो आँखों से भाव समझ कर, वह उस व्यक्ति के साथ घुलमिल जाता था. सदैव हँसते व आनंदित रहनेवाले प्रियज के साथ हम भी आनंद से जीवित रहना सीख गए, लेकिन फिर विरल की अचानक विदाई एक बड़ा घाव निर्मित कर गई.

मैं पूरी तरह दिशाशून्य बन चुकी थी, इसलिए उस आघात से मुझे बाहर निकालने के उद्देश्य से मेरे यूएस में स्थायी हुए छोटे भाई अंकित ने मुझे बताए बगैर अमारी माँ-बेटे की फ्लाईट की टिकट भेज दी. मैंने बहुत ना-नुकुर किया, लेकिन उसकी जिद के आगे मेरी कुछ न चली.

नेवार्क हवाईअड्डे पर अंकित, उसकी पत्नी पौलोमी, आठ वर्ष आ संकेत हमारे स्वागत के लिए आए थे. उन्हें देखकर दिल भर आया और अंकित को गले लगाकर मैं बिलख कर रोने लगी. अंकित ने कहा, “दीदी, अब आप जब तक यहाँ हैं, तब तक आपकी सब चिंताएँ हमारी हैं. आप निश्चिंत होकर यहाँ रहें. प्रियज को हम संभाल लेंगे.”

प्रियज तो आशा की अपेक्षा वहाँ जल्दी सेट हो गया. विशेष तो वह संकेत के साथ बहुत हिलमिल गया. सप्ताहांत में हम सब बाहर घूमने के लिए निकले. प्रियज के गले में पता व फोन नंबर का एक कार्ड डाल दिया, जिससे वह कहीं गुम न हो जाए. वह हमेशा हमारा हाथ पकड़ कर चलता था. नई दुनिया व संकेत जैसा संवेदनशील भाई के मिलने के कारण वह बहुत खुश था.

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दीवाली को अभी करीब एक माह बाकी था. कुछ ठंड थी और कभी बरसात भी हो जाती थी. पतझड़ के कारण सभी वृक्षों के पत्ते पीले, गुलाबी, केसरी जैसे सुंदर रंगों में रंगे हुए थे. खिड़की के बाहर नजर घुमाएँ तो इतना सुंदर दृश्य दिखाई देता था, मानो कुदरत ने वातावरण को किसी तूलिका के द्वारा उन्हें रंग दिया हो. खिरते हुए पत्तों मानो इन्सान को कह रहे हों, “जीवन के अंत तक तुम भी मेरी तरह ही खिलते हुए रहो और मानवता के रंगों को छलकाते रहो !”

मैं खिडकी के पास खड़ी रहकर प्रकृति की इस अलौकिक रंगछटा का आनंद ले रही थी. तब ही संकेत दौड़ता हुआ आया और मुझे कहने लगा, “बुआ, आपको मालूम है कि दो दिन के बाद हेलोवीन है ? मैं सब मित्रों के पास ‘ट्रिक ऑर ट्रीट’ के लिए जानेवाला हूँ. आप देखना यह जो मेरी बास्केट है, वह पूरी केंडीज से भर जाएगी !”

मैंने पूछा, “अं… ह… हेलोवीन ? यह क्या है ?”

पीछे खड़ी पौलोमी बोली, “दीदी, हेलोवीन यहाँ अमेरिका में 31 अक्टूबर को मनाया जानेवाला एक उत्सव है. वैसे हेलोवीन दुनिया के कई देशों में मनाया जाता है. इस दिन छोटे बच्चों को बहुत आनंद आता है. बालक उस दिन चित्र-विचित्र व भयानक, भूत, प्रेत, डाकिन, कार्टून- कैरेक्टर व इसी प्रकार की तरह-तरह की पोशाक पहनते हैं और हाथ में बास्केट लेकर इकट्ठे निकल पड़ते हैं. एक-एक कर सभी पड़ोसियों के यहाँ जाते हैं और घंटी बजाने के बाद दरवाजा खुलने पर बालक पूछते हैं, ‘ट्रिक ऑर ट्रीट’. घर का मालिक यदि ट्रिक कहता है तो बालक को कोई ट्रिक-सांग, कहानी या जादू आदि बताना पड़ता है और यदि वह ट्रीट कहता है तो घर का मालिक सब बच्चों को केंडी देता है. अधिकांश लोग बच्चों को ट्रीट के रूप में केंडी देते हैं. बच्चों की बास्केट केंडी से छलकने लगती है. संक्षेप में, यह उत्सव बच्चों में बहुत प्रिय होता है.

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इस नए प्रकार के उत्सव में मेरी दिलचस्पी बहुत बढ़ गई. मैंने पूछ, “इसमें और क्या करना पड़ता है ? क्रिसमस की तरह घरों की सजावट करना है?”

पौलोमी बोली, “दीदी, इसमें घर के बाहर, सजावट तो करनी है, लेकिन वह डरावनी हो ! कंकाल, भूत-प्रेत जैसे पुतले, भयानक आकार के गुब्बारे, ऐसी सब वस्तुओं से घर को सजाया जाता है. उसमें भी विशेष यह कि सब घर के बाहर कद्दुओं को मनुष्य के मुँह की तरह के आकार के कुदेर कर वहाँ रखते हैं; संक्षेप में भूतिया महल जैसा वहाँ खड़ा कर देना है !”

मुझे यह सब आश्चर्यजनक लगा, “भला, ऐसा भी कोई उत्सव होता है ! ऐसे भूतिया त्यौहार को मनाने का कारण क्या है ?”

पौलोमी, “दीदी, मूल रूप से यह त्यौहार मृत स्वजनों की याद में मनाया जानेवाला उत्सव है. यहाँ लोग, इस समय उनके सब मृत स्वजनों को याद करते हैं. इतना ही नहीं युद्ध में शहीद हुए वीरों व सभी दिवगंत संतों को भी याद करते हैं और उन्हें पृथ्वी पर आने के लिए आमंत्रित करते हैं और फिर आदरपूर्वक विदाई देते हैं. समय के साथ इसका स्वरूप कुछ बदल गया है और अब इस उत्सव को इसी स्वरूप में मनाते हैं, जिससे बालकों को भरपूर आनंद मिले.”

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फिर वह संकेत की ओर घूम कर बोली, “बेटा संकेत, प्रियजभाई को भी तुम्हारे साथ ले जाना, उसे मजा आएगा. मैं उसकी बास्केट व कासच्यूम तैयार कर दूँगी. अब चलो, सब तैयार हो जाएँ. हम मॉल जा रहे हैं.”

मॉल में प्रियज को घूमने का बहुत मजा आया. वह मेरा हाथ पकड़े हुए, आश्चर्य के साथ चारों ओर देखता हुआ घूमता रहता था. वह ऐसा आनंद लेता था, मानो रंगबिरंगी रोशनी से सज्ज, परिकथा जैसी किसी नगरी में आ गया हो. थके हुए हम देर रात घर पहुँचे.

दो दिन के बाद हेलोवीन की शाम मेरा प्रियज, संकेत और अन्य बालक फेंसी ड्रेस पहनकर और हाथ में बास्केट लेकर ‘ट्रिक ऑर ट्रीट’ के लिए निकल गए. संकेत उसका हाथ पकड़ कर ले जा रहा था. मैं बेचैनी के साथ बहुत देर तक बाहर ही खड़ी रही. बालक नजर से ओझल हो गए, लेकिन फिर भी अंदर जाने की इच्छा नहीं हो रही थी. पौलोमी की आवाज सुनाई दी, “दीदी, चाय पीने के लिए चलिए, चिंता न करें. वे लोग जल्दी ही लौट कर आ जाएँगे.”

मैं व्यग्रता के साथ चाय पीने के लिए अंदर आई. मेरी आदत ही नहीं थी कि प्रियज अकेला कहीं अंदर जाए, इसलिए मुझे बहुत चिंता हो रही थी. हम दोनों ने चाय पी और खड़े हुए ही थे कि संकेत हाँफता-हाँफता आया और कहने लगा, “मॉम, प्रियजभाई इज मिसिंग.”

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पौलोमी की चीख निकल गई, “मिसिंग से क्या अर्थ है ? वह तो तुम्हारे ही साथ था न ?”

मेरी धडकनें बढ़ गईं.

संकेत, “हाँ, वह मेरा हाथ पकड़ कर ही चल रहा था, लेकिन डेविड परिवार में ‘ट्रिक ऑर ट्रीट’ की मेरी बारी थी. मैं डेविड अंकल के साथ बात करने के लिए खड़ा था और प्रियजभाई मेरे पीछे था. मैंने देखा कि वह केंडीज का आनंद ले रहा था. फिर ट्रीट लेकर मैंने पीछे देखा, तो वह वहाँ नहीं था.”

मैं व पौलोमी तेजी से दौड़ने लगीं. सब बालकों से पूछा, लेकिन किसी को कुछ मालूम नहीं था. हमने दौड़-दौड़ कर चारों ओर देखा, लेकिन मेरा प्रियज कहीं नहीं था. अंकित भी ऑफिस से तुरंत घर आ गया. उनके पड़ोस में कई भारतीय रहते थे. प्रियज के फोटो सब के मोबाईल पर भेज दिए. सब अपनी कार लेकर अलग-अलग मार्गों पर ढूँढने के लिए निकल पड़े, लेकिन प्रियज के कहीं आसार नहीं थे.

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घबराहट के कारण मेरे पेट में अजीब-सा लगने लगा और चिंता बढ़ने लगी. आँखों के आकाश में आँसुओं के बादल घुमड़ने लगे और हाथ-पैर पानी-पानी हो रहे थे. ‘मेरा प्रिय कहाँ होगा ? वह स्वयं ही किसी अनजानी राह पर बढ़ गया होगा या किसी के साथ चला गया होगा ? परंतु वह कहाँ समझता है कि कहीं स्वयं ही चला जाए ? और कोई उसे क्यों ले जाएगा ? वह जीव तो अबोध और दुनिया से पूरी तरह अलिप्त है ! उसे ले जाकर किसी को क्या मिल सकता है ? कहाँ हैं मेरा लाडला ?”

सभी प्रकार की संभावित कोशिशों को करने के बाद हम थककर असहाय-से बैठे हुए थे. आँख में रुके हुए आँसू अंत में बरस ही पड़े. अंकित खड़ा हुआ, “दीदी, अब मैं पुलिस को सूचित करता हूँ.”

पौलोमी मेरी पीठ थपथपाते हुए बोली, “दीदी, चिंता न करें, पुलिस उसे जल्दी ही ढूँढ लेगी.”

उसने फोन किया और कुछ ही देर में पुलिस घर आ गई. पुलिस ने पूरी घटना विस्तार से समझ ली और फिर तुरंत अपने काम में लग गई. आसापास के सभी सीसीटीवी फुटेज की जाँच की गई| गली के कोने में स्थित एक बहुत छोटे कन्विनीएंस स्टोर के फुटेज की भी जाँच की गई| चार घंटे के बाद पुलिस अधिकारी ने आकर कहा कि, “प्रियज का अपहरण हुआ है और पुलिस टीम प्रियज को छुड़ाने के लिए इसी समय निकल रही है. हमें भी साथ जाना था.

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करीब एक घंटे के बाद, रात के बारह बजे, मैं व अंकित, पुलिसटीम के साथ जहाँ पहुँचे, वह एक सामान्य लोगों की रहने की बस्ती लगती थी. करीब आठ पुलिसमेन लोडेड रायफल्स के साथ सज्ज थे. मैं सतत भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि मेरा बालक पूरी तरह सुरक्षित मिल जाए और उसका बाल भी बाँका न हो.

एक पूरी तरह जीर्ण-शीर्ण घर के दरवाजे को एक पुलिसमेन ने खटखटाया. घर में एक चिमनी जैसी रोशनी थी. इसके अलावा किसी इंसान की मौजूदगी का वहाँ कोई निशान नहीं था.

‘ओह ! मेरा प्रियज यहाँ है!’ मेरा हृदय तब इतने जोर से धड़कने लगा कि उसकी धडकनें मुझे सुनाई देने लगीं.

“हू इज देअर?” अंदर से किसी पुरुष की गहरी आवाज सुनाई दी.

जवाब में रोबीली आवाज में “पुलिस” सुनकर, उसका इच्छित प्रभाव पड़ा. दरवाजा धीरे से खुला और तीन पुलिसमेन झट से अंदर चले गए और दरवाजे खोलनेवाले भारी शरीर के प्रौढ़ को तुरंत गिरफ्त में ले लिया और उसके हाथ पीछे बाँध दिए. इस धमाल से डरी एक स्त्री अंदर से बाहर आई और अत्यंत दयनीय चेहरे के साथ गिडगिडाते हुए मेरे सामने आकर खड़ी रही. मैं डर गई और पुलिस ने उसे मुझसे दूर हटा दिया.

पुलिस उससे अनजानी भाषा में सवाल पूछती रही. वह टूटी-फूटी अंग्रेजी और दूसरी अनजानी भाषा के घालमेल के साथ जवाब देती रही. हमें समझ में नहीं आ रहा था कि, ‘यह क्या चल रहा है ! इन लोगों ने प्रियज का अपहरण किया है ? लेकिन ये उस प्रकार के अपराधी तो लगते नहीं हैं! और इनमें मेरा प्रियज कहाँ हैं ?’

एक पुलिसमेन ने हमें कहा कि प्रियज अंदर के कमरे में सो रहा है. हम अंदर दौड़ कर गए तो मेरा लाडला प्रियज आराम से बिस्तर पर सो रहा था. मैंने दौड़ कर उसे गले लगा लिया. प्रियज तो मानो वह अपने ही घर में उसके पलंग पर से उठ रहा हो, उतनी ही सहजता से आँखें मसलता हुआ उठा और मुझे देख कर खुश हुआ और मुझ से लिपट गया.

अब कुछ देर मेरा ध्यान उस कमरे की आंतरिक स्थिति पर गया. शेष पूरा घर दरिद्रता में था, लेकिन यह कमरा घर में पूरी तरह से अलग था, मानो इसे दिल लगाकर सजाया हो. जैसे किसी किशोरवय के बालक के लिए उसे तैयार किया हो. हल्की नीली रंग की दीवारें, सफ़ेद पर्दे, आरामदायक मोटा पलंग और उस पर महँगी चादर. जो किसी किशोर को पसंद हों, वैसे कई खिलौने और पैर धंस जाए, वैसी कार्पेट.

अब तक वह स्त्री दयनीय चेहरे और गिडगिडाती आँखों से मेरी ओर देखते हुए खड़ी थी और पुरुष पछतावे के भाव के साथ नजरें नीची किए हुए था. वह ऐसे खड़ा था, मानो चेहरे को छुपाना चाहता हो.

मैंने ऊँची आवाज में पूछा, “व्हाय ? व्हाय डिड यू डू ? व्हाय टू माय सन ?”

इसके जवाब में एक पुलिस अफसर ने कहा, “इस दंपति का लाडला पुत्र डेनियल, जिसे डाउनसिंड्रोम था, उसका दो माह पहले ही निधन हुआ. उसकी मृत्यु के बाद ये बहुत दुखी थे. तब उन्होंने मॉल में आपके बेटे को देखा, जो बिल्कुल डेनियल जैसा ही दिखाई देता था. उसे देखते ही पगलाए इस दंपति ने उस कमी को पूरा करने के लिए, बिना किसी प्रकार का विचार किए, उसके अपहरण की योजना बनाई. आपका पीछा किया और हेलोवीन के कारण उन्हें यह मौका मिल गया. उन्होंने आपके बेटे के साथ किसी प्रकार का कोई दुर्व्यवहार नहीं किया. यहाँ लाकर बहुत प्रेम से उसे पेस्ट्री, डोनाट्स व कुकीज आदि जो डेनियल को बहुत पसंद थी, उसे खिलाई और चॉकलेट मिल्क पिलाया और बहुत प्रेम किया और डेनियल के पलंग पर उसे सुलाया. वे जानते थे कि देर-सबेर पुलिस उन्हें पकड़ लेगी. लेकिन फिर भी उन्होंने जिसे अपना डेनियल मान लिया था, वे इतने घंटे उसके साथ आनंद से बिताना चाहते थे.”

अब वह स्त्री पास की मेज पर से एक बड़ा फोटो लेकर आई और मुझे दिखाकर बोली, “डेनियल”.

मझे लगा, “ओह, ईश्वर भी कई बार कैसी अजब लीला करते हैं ! डेनियल का फोटो तो बिल्कुल मेरे प्रियज जैसा ही था !’

पुलिसमेन अब उस दंपति को पकड़कर बाहर ले जाने की तैयारी करने लगे. जाते-जाते वह स्त्री मेरी ओर घूमकर कुछ बोली. पुलिसमेन ने मुझे कहा कि, “वह कह रही है कि वे चार-पाँच घंटे उनके जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय था. आज हेलोवीन के दिन आपके बेटे ने देवदूत बनकर हमारे बेटे की कमी को पूरा किया और हमें आनंद की अनुभूति प्रदान की, उसके लिए बहुत-बहुत आभार.”

मुझे लगा, ‘सच ही, मेरा प्रियज तो देवदूत है ! निश्चित ही आनंद व खुशी फैलाने के लिए ही तो उसका जन्म हुआ है.’

निमिषा मजमूदार, पता – जूना पावर हाउस सोसायटी, कृष्ण सोसायटी के सामने, रोटरी भवन के पीछे, जेलरोड, मेहसाणा- 384002, मो. – 9898322931

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