कवि रमण कुमार सिंह की दो कविताएं प्रभात खबर दीपावली विशेषांक में प्रकाशित हुईं हैं. दोनों कविताएं आप भी यहां पढ़ सकते हैं.
अहां कें मोन हुअय अथवा नहि
हमरा सभक मिलनक ओहि सांझ
अहां जे देने रही हमरा गुलाब प्रिया
ओकरा रोपि लेने रही
अपन हृदय मे हम कांट सहित
रहि-रहि के आइयो टहकैत रहैत अछि ओ
मुदा जुलुस देखू जे
एम्हर हमर टीस बढ़ैत अछि
आ ओम्हर अहांक अधरक लाली
जतय कतहु पीड़ा, यातना आ वंचना अछि
हम रोपय चाहैत छी गुलाब!
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कविता प्रेमक पुकार थिक
अपनत्वक आह्वान थिक
परिजन-पुरजन के अनुगूंज सं भरल
हवा, पानि, पहाड़, वनस्पति
अन्हार, धुंध- रोशनी, भोर-सांझ
सब किछु केर रंग सं भरल कैनवास थिक
कविता बनल-बनाओल ढांचा के ध्वस्त करैत अछि
कविता नव ढांचाक निर्माण करैत अछि
कविताक कोनो निश्चित बाट नहि होइत अछि
कविता अराजक आ अतिरेकी होइत अछि
तें कविता उन्मुक्त आ आनंदातिरेक सं भरल होइछ
कविता अपन संसारक सृष्टि स्वयं करैछ
स्वयं चुनि लैछ अपन पाठक, अपन जगह
कविता नहि तं जीवन होइछ आ नहि रोटी
मुदा कविता बिनु नहि जीवन भ’ सकैछ
आ नहि रोटी मे स्वाद आबि सकैछ
कविता स्वयं चुनैत अछि अपना लेल शब्द
कविता पहाड़ सं ऊंच आ
समुद्रो सं होइत अछि गहींर
कविता आ जिनगीक संबंध अपरिभाषित होइत अछि
कविता जिनगी नहि होइछ
मुदा जिनगी सं अलग नहि होइछ कविता
कखनहुं जिनगी सं आगू निकलै जाइछ कविता
कखनहुं जिनगी कविता कें छोड़ि दैछ पाछां
कविता आ जिनगी, दुनू कें चाही प्रेम
प्रेम सं अलग नहि रहि सकैछ दुनू
यैह प्रेम अछि कविता आ जिनगीक बीचक पुल
प्रेम बहुत प्राचीन आ आदिम शब्द थिक जिनगीक
प्रेमक सत्य कें नव भाषा मे गढ़ैत अछि कविता
जिनगीक आदिम सत्य कें
नव भाषा मे रचैत अछि कविता
नव स्वर आ नव लय-ताल मे
साफ आ स्पष्ट स्वर मे प्रेमक गीत गबैत अछि कविता
कविताक रोशनी मे आदिम सत्य
होइत अछि प्रकाशित आ
फूटैत अछि नव रोशनी
कविता आ प्रेम मे डूबल जिनगी
दैत अछि हमरा सर्जनात्मक दिशा
आ हम आगि मे, पानि मे
ओस मे, पसीना मे
नगर मे, जंगल मे
फूजल आसमानक निच्चा निरंतर दौड़ि रहल छी.
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रमण कुमार सिंह, संपर्क : G-1305, ऑफिसर सिटी-1, राजनगर एक्सटेंशन, गाजियाबाद, पिन-201017, उत्तर प्रदेश, मो. 97112 61789, ई-मेल : kumarramansingh@gmail.com