Mirza Ghalib Birth Anniversary: उर्दू के महान शायर मिर्जा गालिब आज ज़िंदा होते तो 223 वां जन्मदिन मनाते. 27 दिसंबर 1796 को आगरा में पैदा हुए मिर्जा गालिब ने 15 फरवरी 1869 को नई दिल्ली में आखिरी सांस ली. वक्त के दो दरम्यानों में गालिब ने दुख, दर्द, तकलीफ के रास्ते शायरी लिखी. घरवाले सैनिक बैकग्राउंड के थे और मिर्जा गालिब ने सुखन (बात) का रास्ता चुन लिया. बारह साल की उम्र में उर्दू-फारसी लिखना शुरू किया. आज भी मिर्जा गालिब से बॉलीवुड के गीतकारों ने राब्ता रखा है.
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मिर्जा असदुल्लाह खां गालिब की जिंदगी पर बहुत कुछ लिखा और कहा गया. नामचीन गीतकार और निर्देशक गुलजार ने गालिब को खास तरीके से याद किया है. गुलजार ने लिखा- ‘बल्ली-मारां के मोहल्ले की वो पेचीदा दलीलों की सी गलियां… एक कुरआन-ए-सुखन का सफहा खुलता है, असदुल्लाह-खां-गालिब का पता मिलता है.’ गालिब को मोहब्बत, जुदाई का सुल्तान शायर माना गया. लेकिन, गालिब को सिर्फ गालिब ही समझ सकते हैं. गालिब फिलॉस्फर, गाइड, जगबीती और आपबीती लिखने वाले शायर हैं.
पूछते हैं वो कि गालिब कौन है,
कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या?
मिर्जा गालिब खुद को ठोकर खाते रहने वाला इंसान बताते थे. ‘दीवान-ए-गालिब’ में अली सरदार जाफरी ने लिखा है- ‘गालिब मंजिल का नहीं मंजिल के पथ का, तृप्ति का नहीं तृष्णा के रस का कवि है. प्यास बुझा लेना उसका उद्देश्य नही, प्यास बढ़ाना उसका आदर्श है.’ गालिब दरिया की तरह बहते रहे. खुद के दर्द, दुनिया की निस्बत से जहान को सीख देते रहे. मिर्जा गालिब को समझने के लिए जज्बातों से ज्यादा इंसानी रिश्तों को समझना होगा. एक इंसान को दूसरे को समझने का हुनर आए तो गालिब समझ में आएंगे.
गालिब बुरा न मान जो वाइज बुरा कहे,
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे.
बॉलीवुड में मिर्जा गालिब पर उतना काम नहीं हुआ, जितने वो हकदार रहे. 1954 में सोहराब मोदी ने ‘मिर्जा गालिब’ फिल्म बनाई. छोटे पर्दे पर गुलजार ने 1988 में ‘मिर्जा गालिब’ सीरियल बनाया. इसमें नसीरूद्दीन शाह ने यादगार एक्टिंग की थी. इसके बावजूद मिर्जा गालिब हमेशा जिंदा रहने वाले हैं. अगर यकीन ना हो तो आप अपनी बर्थडे विशेज की मैसेज चेक करें. ‘तुम सलामत रहो हजार बरस, हर बरस के हों दिन पचास हजार’ मैसेज नहीं गालिब की शेर है. मिर्जा गालिब गजल, शायरी, खत लिखकर मशहूर हो गए. आज भी चाहने वालों ने सरहदों की परवाह किए बिना उनसे मोहब्बत जारी रखी है.
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.
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दिले नादान तुझे हुआ क्या है?
आखिर इस मर्ज की दवा क्या है?
हम हैं मुश्ताक और वो बेजार,
या इलाही ये माजरा क्या है?
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उनके देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है.
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देखिए पाते हैं उश्शाक बूतों से क्या फैज?
इक बिरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है.
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गालिब न कर हूजुर में तू बार-बार अर्ज,
जाहिर है तेरा हाल सब उसपर कहे बगैर.
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बाजीचा-ए-अत्फाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शबो-रोज तमाशा मेरे आगे,
गो हाथ को जुंबिश नहीं आंखों में तो दम है
रहने दो अभी सागरो-मीना मेरा आगे,
इमां मुझे रोके है, जो खींचे है मुझे कुफ्र
काबा मेरा पीछे है कलीसा मेरे आगे,
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे.
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निकलना खुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन,
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले.
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इशरत-ए-कतरा है दरिया में फना हो जाना,
दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना.
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उनके देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है.
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न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता.
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आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक,
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ के सर होने तक.
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जला है जिस्म जहां दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है.
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तुम न आए तो क्या सहर न हुई?
हां… मगर चैन से बसर न हुई,
मेरा नाला सुना जमाने ने
एक तुम हो जिसे खबर न हुई.
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इश्क पर जोर नहीं है ये वो आतिश गालिब
कि लगाए न लगे और बुझाए न बुझे.
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हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल के खुश रखने को गालिब ये खयाल अच्छा है.
Posted : Abhishek.