नंद चतुर्वेदी का लेखन समता और मनुष्यता के पक्ष में किया गया साहित्य कर्म है, व्याख्यान में बोले आलोचक पल्लव
नंद चतुर्वेदी फाउंडेशन द्वारा कोटा खुला विश्वविद्यालय क्षेत्रीय केंद्र सभागार में आयोजित नंद चतुर्वेदी स्मृति व्याख्यान में पल्लव ने नंद बाबू की पुस्तकों ‘अतीत राग' और ‘जो बचा रहा' का संदर्भ देते हुए इनमें संकलित संस्मरणों पर चर्चा की .
नंद चतुर्वेदी जितने बड़े कवि हैं उतने ही श्रेष्ठ गद्यकार भी हैं. उनका कथेतर गद्य जीवन संघर्षों की धीमी और कष्टपूर्ण आंच पर निखरा गद्य है जिसमें कवि ने पिछली शताब्दी के अंधेरे में भी अम्लान रोशनी की तलाश नहीं छोड़ी. सुपरिचित युवा आलोचक और दिल्ली के हिंदू कालेज में शिक्षक पल्लव ने ‘नंद चतुर्वेदी का कथेतर साहित्य’ विषय पर कहा कि उनका गद्य लेखन भी समता और मनुष्यता के पक्ष में किया गया साहित्य कर्म है.
नंद बाबू की पुस्तकों पर हुई चर्चा
नंद चतुर्वेदी फाउंडेशन द्वारा कोटा खुला विश्वविद्यालय क्षेत्रीय केंद्र सभागार में आयोजित नंद चतुर्वेदी स्मृति व्याख्यान में पल्लव ने नंद बाबू की पुस्तकों ‘अतीत राग’ और ‘जो बचा रहा’ का संदर्भ देते हुए इनमें संकलित उन संस्मरणों पर चर्चा की जो देवीलाल सामर, अश्क दंपती, आलमशाह खान, प्रकाश आतुर,नईम,कमर मेवाड़ी जैसे लेखकों और पंडित जवाहरलाल नेहरू, रजनीकांत वर्मा, हीरालाल जैन जैसे राजनेताओं पर लिखे गये हैं. उन्होंने नंद बाबू के पारिवारिक और ग्रामीण जीवन पर लिखे गए कुछ मार्मिक संस्मरणों का उल्लेख भी किया जिनमें जीवन के स्थानीय रंग घुल मिल गये हैं.
कविता लेखन को नागरिक धर्म माना
आयोजन में आलोचक और राजकीय महाविद्यालय रैनवाल में प्राध्यापक हिमांशु पंड्या ने कहा कि नंद बाबू की सादगी त्याग वाली सादगी नहीं है. सादगी और शुचिता में भेद करते हुए वे वैभव और त्याग के बीच सादगी को अवस्थित करते हैं. नंद बाबू के लिए स्वतन्त्रता और समता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. उनके कथेतर गद्य को पढ़ते हुए यह समझ आता है कि उनके लिए कविता लेखन नागरिक धर्म का अनिवार्य हिस्सा है.
राजस्थान का गौरव थे नंद चतुर्वेदी
आयोजन की अध्यक्षता कर रहे राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष दुलाराम सहारण ने कहा कि हिंदी संसार में राजस्थान का गौरव स्थापित करने वाले दो लेखकों रांगेय राघव और नंद चतुर्वेदी का शताब्दी वर्ष अकादमी भी उत्साह से मनायेगी. उन्होंने अकादमी की तरफ से ‘शताब्दी गौरव’ जैसी एक शृंखला प्रारंभ करने का प्रस्ताव रखा. सहारण ने कहा कि उदयपुर विश्वविद्यालय को नंद बाबू के नाम पर पीठ स्थापित करनी चाहिए जिससे उनके साहित्य को आगामी पीढ़ियों तक ले जाया सकेगा.
शताब्दी वर्ष में होगा कई कार्यक्रमों का आयोजन
संयोजन कर रहे प्रो अरुण चतुर्वेदी ने नंद बाबू के शताब्दी वर्ष में फाउंडेशन द्वारा आयोजित विभिन्न गतिविधियों के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि फाउंडेशन नंद बाबू के कार्यक्षेत्र रहे कोटा, झालावाड़, उदयपुर जैसे स्थानों पर शताब्दी आयोजन करेगा. मनोरमा चतुर्वेदी,सुयश चतुर्वेदी और आदर्श चतुर्वेदी ने वक्ताओं का अभिनंदन किया. सभागार में प्रो नरेश भार्गव, डॉ सदाशिव श्रोत्रिय, प्रो माधव हाड़ा, शंकरलाल चौधरी, किशन दाधीच, हिम्मत सेठ,प्रो मलय पानेरी, प्रो गिरधारी सिंह कुम्पावत, संजय व्यास, हुसैनी बोहरा सहित बड़ी संख्या में सहित्यप्रेमी और प्रबुद्ध श्रोता उपस्थित थे.
रिपोर्ट : राजेश शर्मा,श्रमजीवी कॉलेज, उदयपुर की
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