Nirmal Verma निर्मल वर्मा के जन्मदिन पर पढ़ें उनके कुछ उद्धरण
निर्मल वर्मा हिंदी साहित्य के महान लेखक थे. उनका जन्मदिवस 3 अप्रैल है. उनकी रचनाएं लोगों के दिल के इतने करीब हैं कि हर साहित्य प्रेमी उन्हें अपना मानता है.
Nirmal Verma : हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक निर्मल वर्मा का जन्मदिन 3 अप्रैल को है. आधुनिक हिंदी के शीर्ष कथाकारों में शुमार निर्मल वर्मा एकांत के लेखक हैं. उपन्यास से लेकर डायरी तक में उनके पात्र एकांत को जीते हुए पाठक को उस एकांत की गहरी अनुभूति कराते हैं. पेश हैं निर्मल वर्मा की रचनाओं से दिल को छूनेवाले कुछ उद्धरण…
- जब तक हम यह न जान पायें कि हम ‘लिखने’ से क्या पाना चाहते हैं, तब तक हम कागज के खाली स्पेस में एक वाक्य से दूसरे वाक्य तक निरर्थक भटकते रहते हैं.
- जब हम अकेले रहते, तो हमें संवेदनाओं को दर्ज करने का मौका मिलता है. यही एक मुआवजा है, जो लेखक को अपने अकेलेपन के लिए मिलता है.
- जब मैं कोई पत्ता झरता हुआ देखता हूं, तो कहीं भीतर एक हल्का सा रोमांच उमगने लगता है. वह अपने झरने में कितना सुंदर दिखाई देता है, अपनी मृत्यु में कितना ग्रेसफुल. आदमी ऐसे क्यों नहीं मर सकता-या ऐसे क्यों नहीं जी सकता?
- अकेलापन सहनीय है, अच्छा भी है, अगर वह बराबर बना रहे और बाहर दुनिया में जाने का प्रलोभन उसके सातत्य को न तोड़ सके, क्योंकि जब हम अपने अकेलेपन को अकेला छोड़ कर दुनिया में लौटते हैं, तो वह कुछ इस तरह से घायल दिखता है, जैसे हमने बाहर जाकर उससे विश्वासघात किया हो- और फिर उसके साथ सुलह करने में बहुत समय खर्च करना पड़ता है.
- हम यात्री किसी भी जगह पहली बार नहीं जाते, हम सिर्फ लौट-लौट आते हैं, उन्हीं स्थानों को फिर से देखने के लिए, जिसे कभी किसी अनजाने क्षण में हमने अपने घर के कमरे में खोज लिया था.
- कुछ शहर होते हैं, जिन्हें रफत् रफत् पहचानना होता है. उनके खुले हिस्सों और बंद झरोखों के पीछे एक रसीला, रहस्यमय लोक छिपा रहता है.
- हम एक ऐसी सभ्यता में रहते हैं, जिसने सत्य को खोजने के लिए सब रास्तों को खोल दिया है, किंतु उसे पाने की समस्त संभावनाओं को नष्ट कर दिया है.
- अगर मैं दुख के बगैर रह सकूं, तो यह सुख नहीं होगा, यह दूसरे दुख की तलाश होगी, और इस तलाश के लिए मुझे बहुत दूर नहीं जाना होगा, वह स्वयं मेरे कमरे की देहरी पर खड़ा होगा, कमरे की खाली जगह को भरने.
- एक अकेले व्यक्ति और संन्यासी के अकेलेपन में भारी अंतर है- एक अकेला व्यक्ति दूसरों से अलग होकर अपने में रहता है, एक संन्यासी अकेलेपन से मुक्त होकर दुनिया में जीता है.
(ये उद्धरण ‘धुंध से उठती धुन’ एवं ‘चीड़ों पर चांदनी’ पुस्तक से लिए गये हैं.)