औराही हिंगना में आज भी जीवंत है मैला आंचल
ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर फोरलेन सड़क अररिया-फारबिसगंज को औराही के पास जब हम छोड़ते हैं तो वहां एक रेणु द्वार बना मिल जाता है
मृगेंद्र मणि सिंह, रेणु जी के गांव से
ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर फोरलेन सड़क अररिया-फारबिसगंज को औराही के पास जब हम छोड़ते हैं तो वहां एक रेणु द्वार बना मिल जाता है. वहां से जो सड़क उनके घर तक बनी है, यह अलग बात है कि उसे सड़क ही कहेंगे, लेकिन उसकी जर्जरता देखने के बाद अफसोस होता है कि काश िजम्मेदारों ने इसका ख्याल रखा होता है. इसको लेकर ग्रामीणों में गुस्सा भी है. लेकिन जब भाजपा के पूर्व विधायक पद्मपराग राय वेणु से सड़क के हालात पर बात हुई तो उन्होंने कहा कि हमारे घर तक मुख्यमंत्री चार बार आये. जबकि पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रेशखर जी वर्ष 1995 में एक बार आये हैं. वे धरान घोपा अस्पताल के उद्घाटन के क्रम में पहुंचे थे. लेकिन सरकारी उदासीनता का दर्द पूर्व मुखिया अपराजित राय वेणु के चेहरे से भी स्पष्ट झलक रहा था.
सड़क निर्माण के संदर्भ में पूछने पर कहते हैं कि पद्म पराग राय वेणु जी विधायक बने तो वर्ष 2012-13 में उनके द्वारा पीसीसी सड़क व कालीकरण कराया था. इसके बाद आज तक इस सड़क पर विकास की एक परत तक नहीं चढ़ पायी है. दिलचस्प बात तो यह थी कि वर्ष 2009-10 में रेणु द्वार से सिमराहा रेलवे गुमटी तक तत्कालीन डीएम जे मोरेन के द्वारा कालीकरण कराया गया. जो आज खराब हालत में पहुंच चुका है. ऐसे में एक उपन्यास मैला आंचल जो वर्षों पूर्व रेणु जी लिख कर गये वह आज भी औराही हिंगना गांव में जीवंत मिल जाता है.
शुद्ध पेयजल, नहीं है गांव में नाला : रेणु जी का गांव औराही पश्चिम पंचायत में पड़ता है. वहां की परिवेश तो पूरी तरह से ग्रामीण है. लेकिन गांव में रेणु जी की धुंधली तस्वीर सभी लोगों के निगाहों में नजर आ ही जाती है. गांव के ही धनिकलाल मंडल जो कि रेणु जी के बहलवान (बेलगाड़ी चालक) तीसरी कसम का एक पात्र लहसनवा के पुत्र हैं, मिल गये.
उन्होंने बातों में ही बातों में बताया कि पिताजी लहसनवा के निधन के बाद वे उनके बहलवान थे. रेणु की तबियत जब 1976 में खराब रहने लगी तो वे बैलगाड़ी से लेकर पूर्णिया गये थे. वहां से पटना भी साथ गये थे, लेकिन साहब अब बैलगाड़ी से अच्छी सवारी नहीं दिखती. अब तो सड़क पर हिचकोले ही दिखते हैं. पेयजल के लिए टंकी तो लगा लेकिन पानी नहीं पहुंचता है. लगभग यही दर्द मानवेंद्र, रामनांद मंडल, दयानंद मंडल व धनिक लाल मंडल का भी था.
शोध करने आये कई विदेशी : रेणु जी के जीवन पर वर्ष 1988-89 में विदेशी महिला के रूप में शोध करने पहुंची जर्मनी की हेडी सेडोक को तत्कालीन एसबीआइ के कर्मी जयशंकर सिंह बैलगाड़ी से लेकर आये थे. बाद में वर्ष 2003 में अमेरिकन साहित्यकार इयान उलफोर्ड को भी रेणु साहित्य को विश्व प्रसिद्धि दिलाने के लिए जाना जाता है. जो रेणु जी पर शोध को पूरा कर आज अॉस्ट्रेलिया के मेलबार्न में लॉ टारेज विश्वविद्यालय में हिंदी के विभागाध्यक्ष हैं. वे पांच बार रेणु के गांव आ चुके हैं. उनकी मां भी रेण भूमि पर कदम रख चुकी है. इयान आज भी रेणु जयंती व समृति दिवस को धूम-धाम से मनाते हैं. 90 के ही दशक में जापान की मिक्की इसलिए रेणु के गांव पहुंची कि उन्हें रेणु जी के लिखे एक शब्द को समझने में परेशानी हुई थी, जो भाषायी बोल में गलत है.