भावना झा की मैथिली कविताएं ‘निमरसेखा’ और ‘मनोरोगी’ इस बार प्रभात खबर के दीपावली विशेषांक में छपीं हैं. इन दोनों कविताओं को आप यहां भी पढ़ सकते हैं…
होयबाक तऽ छलय जे अँकबारिकेँ
रखबाक कोनो आवश्यकता नै होइतय
बिसराह भऽ जेबामे गुण जेँ
पछाति निफिकिर भऽ निमाहब सहज बुझना जाए
जहिना बिला जाइत छै स्मृतिलोपक दोख लगैत कहल बात,
देल भरोसक हाथ पीठ परसँ ससरि जाइत छै
अनचोक्के मेटा देल जाइत छै एक्के दीठिमे
सोझाँक दृश्य परसँ प्रेमक सभटा रंग-रोगन
अकासी लागल देखैत रहलौं अकान भऽ
गबदी लदने खोद- बेधक डरेँ
एके क्षणमे बदलैत प्रोफाइलक छवि जेकाँ
जे कनेको अप्रत्याशित नहि लगय
कहैत छै जे सूचना आ क्रांतिक जुग छीयै
बस अँगुरि टीपलासँ भेटि जाइत छै सहस्त्रों विकल्प !
तखनि किएक ओगोरने करेजसंँ डीलिट बटन तकितो
चकबिदोर लागि जाइत छै नहि जाइन
अबोध हृदयक दुर्बलता देखार नै भऽ जाय
दहसति हुअय लगैत देरी तकय छी कोन
पासवर्ड लगाबी आकि लॉक
आ कि मेटा दियै सभटा
इ पटलसँ मुदा फेर कोनो शब्द जेना बान्हि लैत अछि
आ आँखि ताकि लैत छै निधोख भऽ एक बेर आओर
जे किछु शेष रहि गेल सभटा स्मृतिकेँ नीलाम हुअयसँ पहिने.
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जतय अहाँ देखबय चाहैत छी
हमर आँखिकेँ नयनाभिराम कहैत
ओहिठामक दृश्य देखि हम हठात कसिकेँ बन्न कए लैत छी अप्पन आंखि
आ हमरा नजरिक सोझाँ आबि जायत अछि
खून- खुनामय भेल देह
ओकर चित्कारक स्वर अधिरतियामे
आ विकल भऽ जाइत अछि
आत्मा आ घोरन जेकाँ चलय लगैत अछि सभटा अंग पर
की इएह भेटैत छै स्त्री होयबाक उपहार
कहल गेल वर्णांधता के शिकार भऽ रहल छी
वा कोनो आन कारणें इ विरक्तिकेँ भरिसक
नहि तऽ एतेक मनोरम स्थलमे
बर्फसँ झाँपल उज्जर पहाड़सँ धधरा पजरैत
केकरा देखाएत छै
एतेक स्वच्छ परिवेशमे घुटनकेँ कोनो प्रश्न
कहाँ उठैत छै !
वितण्डा करबाक स्वभाव भऽ गेल अछि
कोनो मनोचिकित्स कें पूछय पड़त
नहि त यात्रासँ भय होयबाक कोन कारण
हम सोचैत रहलहुं कि ठीके हम मनोरोगी छी?
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