देश के शीर्ष कथाकार व उपन्यासकार रणेंद्र को 14वां प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान दिये जाने की घोषणा हुई है. इस सम्मान के निर्णायक मंडल में संजीव कुमार, योगेंद्र आहूजा व प्रणय कृष्ण थे. अपनी प्रशस्ति में योगेंद्र आहूजा ने कहा है कि ‘छप्पन छुरी बहत्तर पेंच’, ‘भूत बेचवा’, ‘बाबा, कौवे और काली रात’ सरीखी कहानियों और ‘ग्लोबल गाँव के देवता’, ‘गायब होता देश’ और ‘गूँगी रुलाई का कोरस’ जैसे उपन्यासों से एक अनूठी पहचान अर्जित कर चुके रणेंद्र आदिवासी-मूलवासी जीवन के यथार्थ से हमारा सामना कराने और उस समाज के संकटों और सवालों को विमर्श के दायरे में लाने के लिए जाने जाते हैं. रणेंद्र हमारे समय के अद्वितीय कथाकार हैं. उन्हें यह सम्मान उनकी गौरवशाली कथा यात्रा के लिए दिया जाता है.
सम्मान की घोषणा के बाद प्रभात खबर के साथ बातचीत में रणेंद्र ने कहा कि प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान का मिलना मनोबल बढ़ाने वाला है. ऐसे सम्मान निश्चित तौर पर आपके काम को मान्यता दिलाते हैं और आपका मनोबल बढ़ाते हैं. साथ ही इस तरह के प्रतिष्ठित सम्मान आपको ऊर्जावान भी बनाते हैं. यह सम्मान मैं उन लोगों को समर्पित करना चाहूंगा जिनकी प्रेरणा से मैंने आज तक कलम चलाई. खुश हूं और ऊर्जावान भी महसूस कर रहा हूं.
रणेंद्र पिछले तीन दशकों में, नवउदारवादी अर्थतंत्र, मुक्त बाजार और अनियंत्रित पूंजी प्रसार, सीमांत क्षेत्रों में भूमाफिया-कारपोरेट-अफसरशाही और सरकारों के गठबंधन एवं असुर सरीखे लुप्तप्राय समुदायों और अन्य जनजातियों को उनकी जगहों से बेदख़ल किये जाने पर अपनी कलम चला रहे हैं. रणेंद्र की रचनाएं इसी जीवन के जटिल, त्रासद यथार्थ को, साथ ही उनके विरुद्ध जारी संरचनागत हिंसा के तत्वों को अपनी रचनाओं में अनावृत्त करते हैं.
इसी क्रम में है उनका नया, चर्चित उपन्यास ‘गूँगी रुलाई का कोरस’ एवं जो ‘मौसिकी मंजिल’ में रहते आये संगीत के एक घराने की चार पीढ़ियों के धीरे-धीरे उजड़ने की कथा के हवाले से हमारे देश के समावेशी सांस्कृतिक जीवन के विनष्ट होने की कहानी कहता है. अपनी रचनाओं में आधुनिक समय के जरूरी सवालों से सीधी मुठभेड़ कर रहे रणेंद्र को प्रेमचन्द पुरस्कार से सम्मानित करना इस पुरस्कार की रवायत और गरिमा के अनुरूप है
रणेंद्र को प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान दिये जाने की घोषणा पर झारखंड प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से बधाई दी गयी है. प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से महासचिव मिथिलेश, कथाकार पंकज मित्र, कमल, प्रवीण परिमल, महादेव टोप्पो एवं प्रज्ञा गुप्ता ने बधाई और शुभकामनाएं दी हैं. साथ ही यह उम्मीद जताई है कि रणेंद्र आगे भी बेहतरीन कृतियों का उपहार हिंदी पाठकों को देंगे.