पढ़ें, हिंदी के अनूठे कवि शमशेर बहादुर सिंह की कविताएं…

आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के एक महत्वपूर्ण स्तंभ शमशेर बहादुर सिंह की आज पुण्यतिथि है. नामवर सिंह ने उन्हें 'सुंदरता का कवि' और मलयज ने 'मूड्स के कवि' कहा है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 12, 2020 10:25 PM

आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के एक महत्वपूर्ण स्तंभ शमशेर बहादुर सिंह की आज पुण्यतिथि है. नामवर सिंह ने उन्हें ‘सुंदरता का कवि’ और मलयज ने ‘मूड्स के कवि’ कहा है. शमशेर ने भी यह स्वीकार किया कि वे विशुद्ध सौंदर्य यानी सौंदर्य के अमूर्त पक्ष के कवि हैं. हालांकि बहुत बार वह अपनी कविताएं नष्ट कर देते थे. इसका कारण यह होता था कि वे अपने आदर्शवादी काल्पनिक सौंदर्यलोक को अपर्याप्त समझते थे. पढ़िये हिंदी के अनूठे कवि शमशेर बहादुर सिंह की चुनिंदा कविताएं …

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1. एक आदमी दो पहाड़ों को कुहनियों से ठेलता

एक आदमी दो पहाड़ों को कोहनियों से ठेलता

पूरब से पच्छिम को एक कदम से नापता

बढ़ रहा है

कितनी ऊंची घासें चांद-तारों को छूने-छूने को हैं

जिनसे घुटनों को निकालता वह बढ़ रहा है

अपनी शाम को सुबह से मिलाता हुआ

फिर क्यों

दो बादलों के तार

उसे महज उलझा रहे हैं?

2. एक मौन

सोने के सागर में अहरह

एक नाव है

(नाव वह मेरी है)

सूरज का गोल पाल संध्या के

सागर में अहरह

दोहरा है…

ठहरा है…

(पाल वो तुम्हारा है)

एक दिशा नीचे है

एक दिशा ऊपर है

यात्री ओ!

एक दिशा आगे है

एक दिशा पीछे है

यात्री ओ!

हम-तुम नाविक हैं

इस दस ओर के:

अनुभव एक हैं

दस रस ओर के:

यात्री ओ!

आओम एकहरी हैं लहरें

अहरह ।

संध्या, ओ संध्या! ठहर-

मत बह!

अमरन मौन एक भाव है

(और वह भाव हमारा है ! )

ओ मन ओ

तू एक नाव है !

(और वह नाव हमारी है ! )

3. धूप कोठरी के आईने में

धूप कोठरी के आईने में खड़ी

हंस रही है

पारदर्शी धूप के पर्दे

मुस्कराते

मौन आंगन में

मोम सा पीला

बहुत कोमल नभ

एक मधुमक्खी हिलाकर फूल को

बहुत नन्हा फूल

उड़ गयी

आज बचपन का

उदास मां का मुख

याद आता है

4. लौट आ, ओ धार!

लौट आ, ओ धार!

टूट मत ओ साँझ के पत्थर

हृदय पर।

(मैं समय की एक लंबी आह!

मौन लंबी आह!)

लौट आ, ओ फूल की पंखडी!

फिर

फूल में लग जा।

चूमता है धूल का फूल

कोई, हाय!!

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