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जन्मदिन विशेष : आजीवन बच्चों के लिए लिखते रहना चाहते हैं रस्किन बांड

'रस्टी' और 'अंकल केन' जैसे किरदारों के साथ बच्चों की कल्पनाओं को रंगीन पंख देनेवाले बाल साहित्यकार रस्किन बॉन्ड आज 86 वर्ष के हो गये हैं. अपनी रचनाओं के लिए पद्मश्री और पद्मभूषण से नवाजे जा चुके रस्किन बॉन्ड आज भी मसूरी में बेहद साधारण तरीके से जीवन जीना पसंद करते हैं. वे चाहते हैं कि जब तक उनकी सांसें चले वे बच्चों के लिए कहानियां लिखते रहें

By दिल्ली ब्यूरो | May 19, 2020 1:07 PM

‘रस्टी’ और ‘अंकल केन’ जैसे किरदारों के साथ बच्चों की कल्पनाओं को रंगीन पंख देनेवाले बाल साहित्यकार रस्किन बॉन्ड आज 86 वर्ष के हो गये हैं. अपनी रचनाओं के लिए पद्मश्री और पद्मभूषण से नवाजे जा चुके रस्किन बॉन्ड आज भी मसूरी में बेहद साधारण तरीके से जीवन जीना पसंद करते हैं. वे चाहते हैं कि जब तक उनकी सांसें चले वे बच्चों के लिए कहानियां लिखते रहें. हाल में ही देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान बच्चों का मनोरंजन करने के लिए उन्होंने प्रसार भारती द्वारा तैयार की गयी अपनी कहानियों की खास सीरिज को रेडियो पर पढ़ कर सुनाया. इस दौरान उन्होंने खुद की लिखी ऑस्ट्रिच, घर की पालतू काली बिल्ली जैसी कहानियों को रेडियो पर नरेट किया. सादगी के साथ जीवन जीने वाले रस्किन बॉन्ड को एक छोटा-सा केक काटकर अपना जन्म दिन मनाना अच्छा लगता है.

दादी संग बीता बचपन : रस्किन बाॅन्ड का जन्म 19 मई, 1934 को हिमाचल प्रदेश के कसौली में हुआ था. उनके पिता अब्रे बॉन्ड, ब्रिटिश रॉयल एयरफोर्स में थे. जब रस्किन चार वर्ष के थे, तभी उनके माता-पिता एक-दूसरे से अलग हो गये थे और उनकी मां ने एक भारतीय से शादी कर ली थी. इसके बाद रस्किन अपनी दादी के साथ देहरादून में रहने लगे. शिमला के बिशप कॉटन स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वे लंदन चले गये. उन्होंने अपने लेखन की शुरुआत लंदन में ही कर दी थी. 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला उपन्यास ‘रूम आन द रूफ’ लिखा, जिसके लिए उन्हें प्रतिष्ठित जॉन लेवेनिन राइस अवॉर्ड से नवाजा गया. लंदन में जब उनका मन नहीं लगा, तो वे वापस भारत लौट आये और यहीं बस गये.

बच्चों को कहानी सुनानेवाले दादाजी : रस्किन बॉन्ड अब तक 500 से अधिक कहानियां, उपन्यास, संस्मरण और कविताएं लिख चुके हैं. उनकी ज्यादातर रचनाएं बच्चों पर आधारित हैं. बच्चों के लिए लिखी गयी उनकी कहानियों में पतंगवाला, एक नन्हा दोस्त, अंधेरे में एक चेहरा, चालीस भाइयों की पहाड़ी, बुद्धिमान काजी, अल्लाह की बुद्धिमानी, झुकी हुई कमरवाला भिखारी आदि लोकप्रिय हैं. अपनी इन्हीं कहानियों के चलते वे बच्चों के बीच कहानी सुनानेवाले दादा जी के नाम से भी जाने जाते हैं.

बॉन्ड की कहानी पर बनी है फिल्म सात खून माफ : रस्‍क‍िन बॉन्‍ड की कई कहानियां हैं, जिन पर फिल्में बन चुकी हैं. उनकी लिखी कहानियों पर बनी हॉलीवुड फिल्मों में ‘फ्लाइट ऑफ पिजन्स’ और ‘एंग्री रिवर’ शामिल हैं. वहीं बॉलीवुड फिल्मों की बात करें, तो शशि कपूर ने रस्किन की कहानी ‘अ फ्लाइट ऑफ पिजन्स’ पर 1978 में फिल्म ‘जुनून’ बनायी थी. इसके बाद निर्देशक विशाल भारद्वाज ने 2011 में रस्किन की कहानी ‘ब्लू अंब्रेला’ पर फिल्म ‘सात खून माफ’ बनायी, जिसमें प्रियंका चोपड़ा ने मुख्य किरदार निभाया है.

मिल चुके हैं कई सम्मान : रस्किन बॉन्ड को 1957 में इंग्लैंड में जॉन लेवन राइस मेमोरियल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वहीं 1992 में अंग्रेजी लेखन के लिए उनकी लघु कहानियों के संकलन ‘आर ट्रीज स्टिल ग्रो इन देहरा’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका है. 1999 में रस्किन बॉन्ड को बाल साहित्य में उनके योगदान के लिए पद्मश्री से और 2014 में पद्मविभूषण से अलंकृत किया जा चुका है. दिल्ली सरकार द्वारा 2012 में उन्हें लाइफ टाइम एचीवमेंट अवॉर्ड एवं गढ़वाल विश्वविद्यालय द्वारा रस्किन बॉन्ड को पीएचडी की मानद उपाधि से विभूषित किया गया है.

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