नई दिल्ली: समय ही स्रष्टा है और आज के समाज और साहित्य को लगातार प्रभावित करता है. इतिहास मात्र राजा महाराजाओं का रोजनामचा है, जबकि साहित्य आम जनसंवेदनाओं व उनकी चित्तवृत्तियों को उद्घाटित करता है. सुप्रसिद्ध कथाकार शिवमूर्ति ने हिंदू कालेज की हिंदी साहित्य सभा के वार्षिकोत्सव अभिधा का उद्घाटन करते हुए ‘समय, समाज और साहित्य’ विषय पर व्याख्यान दिया. उन्होंने कहा कि सच्चा साहित्य वही है, जो अपने समय के भय और दर्द को लिखे. शिवमूर्ति ने कहा कि साहित्यकार को सत्ता का कोपभाजन भी बनना पड़ता है, किन्तु आज के लेखक पुरस्कार की चाह में पौराणिक विषयों की ठंडी गुफाओ में वर्तमान विसंगतियों को सुलझाने का असंभव प्रयास कर रहे हैं, जबकि लेखन में प्रतिरोध और प्रतिकार होना चाहिए. लेखक को हमेशा एक प्रतिपक्ष की भूमिका में रहना चाहिए. शिवमूर्ति ने लेखन की सच्ची कसौटी बताते हुए कहा कि लेखन का वास्तविक उद्देश्य तब तक पूरा नहीं होता, जब तक समाज में अन्याय, शोषण व असमानता व्याप्त है. लेखक को समाज से प्राप्त अनुभवों को अपनी इंद्रियों से अनुभूत कर उन्हें रचना में इस्तेमाल करना चाहिए.
शिवमूर्ति ने व्याख्यान में अनेक लोक कथाओं और संस्मरणों का उदाहरण देते हुए कहा कि एक लेखक का सबसे बड़ा खजाना उसकी स्मृति होती है. वहीं, यूरोप के महाकवि होमर का संदर्भ देते हुए बताया कि कल पर ज्यादा भरोसा किए बिना हमें आज के दिन की अपना काम कर लेना चाहिए. युवा लेखकों को शब्दाडंबर से बचने का सुझाव देते हुए उन्होंने कहा कि सही शब्द और लगभग सही शब्द में उतना ही अंतर है, जितना सूरज और जुगनू में. इसलिए लेखन के दौरान शब्दों का चयन सजगता से करना चाहिए.
वक्तव्य के बाद चर्चा सत्र में शिवमूर्ति ने कहा कि लेखन और जीवन में यदि द्वैत होगा तो रचना कम प्रभावी हो जाएगी. इसलिए हमें अपने भोगे हुए यथार्थ को ही उद्घाटित करना चाहिए. अगर लेखन पाठक के जीवन को प्रभावित कर सकता है. किसी में संवेदनाएं उत्पन्न कर सकता है. तभी लेखन की सार्थकता है.
इससे पहले शिवमूर्ति का स्वागत विभाग प्रभारी प्रो रचना सिंह, डॉ पल्लव व डॉ विमलेंदु तीर्थंकर ने अंगवस्त्र भेंट देकर किया. वहीं, मंच संचालन श्रुति और ओमवीर ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन शिवम मिश्रा ने की.
दूसरा सत्र अनुवाद की चुनौतियों और उसका वर्तमान परिदृश्य पर केंद्रित रहा. इस विषय पर इटली के तोरिनो विश्वविद्यालय में हिंदी व साहित्य की प्रोफेसर प्रो. अलेसांद्रा कॉसलारो ने व्याख्यान दिया. प्रो अलेसांद्रा ने कहा कि अनुवादक का काम होता है. मूल ग्रंथ का अनुवाद सरलतम रूप में पाठकों के समक्ष पेश करना, जो उनकी चुनौतियों को बढ़ाए नहीं, बल्कि कम करे. उन्होंने अनुवाद करते समय विभिन्न लोकभाषाओं के शब्दों के अनुवाद की दुरुहता का उल्लेख करते हुए कहा कि कभी कभी ध्वनियों के हेर फेर से अनुवाद में काम चलना होता है. उन्होंने बुकर से सम्मानित गीतांजलि श्री के प्रसिद्ध उपन्यास ‘रेत समाधि’ के अपने द्वारा किये गए इतालवी अनुवाद के कुछ अंश भी सुनाए, जिन्हें श्रोताओं ने अपनी लय और प्रवाह के लिए भरपूर पसंद किया.
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प्रो अलेसांद्रा का स्वागत विभाग प्रभारी प्रो रचना सिंह और डॉ नीलम सिंह ने किया. मंच संचालन मोहित और शालू ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन जसविंदर ने की. आयोजन में वार्षिक प्रतिवेदन पत्रिका ‘निरंतर’ का विमोचन भी किया. अभिधा का तृतीय व अंतिम सत्र सांस्कृतिक कार्यक्रमों का रहा. इसी सत्र में अभिधा के अंतर्गत विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं को सम्मान राशि व प्रमाण पत्र से सम्मानित किया. इस सत्र में मंच संचालन कृतिका और अनुराग ने किया. अभिधा के समापन पर धन्यवाद ज्ञापन अभिधा 2024 के संयोजक डॉ नौशाद अली ने की. कार्यक्रम में विद्यार्थी व शोधार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे.
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