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हिंदी कहानी : वे आँखें

ऐसी कठिन परिस्थिति में भी इस तरह की सोचनेवाली स्त्री के प्रति डॉ. कोठारी के मन में मान बढ़ गया. ‘रत्ना, यह बहुत ही उम्दा विचार हैं. वैसे तो इन लोगों की आँखों के टिश्यूज यदि मैच होंगे, तब ही यह संभव हो सकेगा और यदि नहीं तो अन्य दो को नई दृष्टि मिल सकेगी!’

रात्रि आठ बजे डॉ कोठारी ने अपने अंतिम मरीज की आँखों की जाँच की. उसे दवाई लिखी और वे घर जाने की तैयारी कर ही रहे थे कि तब ही उनके मोबाईल की घंटी बजी. स्क्रीन पर नाम पढ़कर उन्होंने तुरंत फोन उठाया.

‘हाय रत्ना! हाउ आर यू? वेदान्त कैसे हैं?’

‘वेदान्त के बारे में तो आपको मालूम ही है, संकेत… दिनोंदिन हालत बदतर होती जा रही है. अब तो उनका बिजनेस भी मैं देखने लगी हूँ|’

‘ओह ! रत्ना, तुम्हारी फ़िक्र होती है. तुम अकेली…’

‘मुझे लगता है कि मैं दिमागी रूप से तैयार हो गई हूँ, संकेत. लेकिन मैंने आपको आज एक ख़ास काम के लिए फोन किया है.’

‘यू आर ए ब्रेव लेडी. बोलिए, क्या काम है ?’

‘एक बार आप कुछ कह रहे थे कि एक दुर्घटना में आपकी कामवाली के लड़के की आँखें चली गई हैं. क्या नाम है उसका ?’

डॉ. कोठारी को अचरज हुआ कि रत्ना को यह जानने से उसका कौन सा काम पूरा होगा ? लेकिन कुछ पूछे बगैर उन्होंने जवाब दिया, ‘जगदीप, वास्तव में उसके साथ बहुत बुरा हुआ. कुटुंब के लिए सहारा बनने की उम्र में वह अब सबके लिए भार जैसा बन गया.’

‘तो मेरी इच्छा है कि जगदीप अब वेदान्त की आँख से देखे. उसके ऑपरेशन का खर्च मैं दूँगी.’

ऐसी कठिन परिस्थिति में भी इस तरह की सोचनेवाली स्त्री के प्रति डॉ. कोठारी के मन में मान बढ़ गया. ‘रत्ना, यह बहुत ही उम्दा विचार हैं. वैसे तो इन लोगों की आँखों के टिश्यूज यदि मैच होंगे, तब ही यह संभव हो सकेगा और यदि नहीं तो अन्य दो को नई दृष्टि मिल सकेगी !’

‘संकेत, मुझे मालूम है कि तुम्हारी तो आई बैंक में भी अच्छी पहचान है. ये आँखें अन्य किसी को भी मिलें, मुझे उसकी जानकारी मिलनी चाहिए.’

‘लेकिन, रत्ना …’

‘प्लीज संकेत, फार माय सेक…’

डॉ. कोठारी को इन शब्दों के पीछे सिसकने जैसी आवाज सुनाई दी और उन्होंने कहा, ‘ओ.के., हो जाएगा.’

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फोन रखकर रत्ना बिस्तर में सोते-सोते उसे ताकती रहती, उसके आगे-पीछे घूमती और सतत उस पर निगरानी रखती हुई उन मंजरी आँखों को देखती रहती. कुछ वर्ष पहले तक, उसके लिए ये विश्व की सर्वाधिक सुंदर आँखें थीं और उन आँखों का मालिक था, दुनिया का श्रेष्ठ पुरुष. वेदान्त वैसे भी सब तरह से आकर्षक था. इसलिए लंदन से मात्र घूमने के लिए आई रत्ना जब उससे अहमदाबाद के रिवरफ्रंट पर मिली, तब से ही वह उसके उसके रूप, उसकी बात करने की शैली, इन सब से इतनी प्रभावित हुई कि उस वक्त ही उसके मन के शांत नीर में साबरमती के जल की तरह विचित्र लहरें उठाने लगीं.

रत्ना को सबसे अधिक मोहित किया, वेदान्त की आँखों ने. उसके गेहुएँ रंग पर वे मंजरी आँखें, कुछ इस तरह का विरोधाभास रचतीं कि कुछ देर तो प्रत्येक की आँखें वहीं स्थिर हो जातीं. मंजरी आँखों के अंदर काली पुतली और शनि के वलय की तरह उसके चारों ओर लाल किनारी. रत्ना ने ऐसी आँखें पहले नहीं देखी थीं. उन आँखों ने उसे चुम्बक की तरह खींच लिया था और वह खिंच गई थी, पूरी की पूरी, मूल सहित. रत्ना जब उन आँखों की ओर देखती, तब उसे लगता कि उसका समस्त अस्तित्व ही उसमें समा गया है. इसीलिए कुछ दिनों के बाद झूलते मीनारा पर वेदान्त ने उसे विवाह के लिए पूछा, तब तो रत्ना का मन ब्रह्माण्ड के झूले पर झूलने लगा. “इंडिया में रह रहे उस लड़के के साथ शादी कर, तुम सुखी नहीं रहोगी”, वर्षों से लंदन में स्थाई हुए उसके माता-पिता ने कहा. लेकिन उस सलाह की अवहेलना कर उसने वेदान्त के साथ शादी की और फिर भारत में ही स्थायी रूप से रहना पसंद किया था.

रत्ना को आज भी वह दिन ठीक से याद था, जब उसे अपने माता-पिता की सलाह याद आ गई थी. उस दिन वह अपनी एक किटी ग्रुप की पार्टी में जानेवाली थी और उसने अपना ऑफ शोल्डर फ्राक पहना था. तैयार होकर जैसे ही वह कमरे से बाहर निकली कि बाहर के कमरे में सोफा पर बैठे, वेदान्त की नजर उस पर पड़ी. मोबाईल एक ओर रखकर वह रत्ना की ओर देखने लगा.

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‘क्या देख रहे हो?’ रत्ना ने कुछ रोमांटिक होकर आँखों को ऊपर उठाते हुए पूछा और गोल घूमते हुए अपना फ्राक बताया.

वेदान्त ने उसका कुछ भी प्रतिभाव नहीं दिया. बगैर कुछ बोले, वह क्रोधभरी नजरों से रत्ना की ओर ताकता रहा. उस नजर में क्या था ? रत्ना को पहली बार उन मंजरी आँखों से डर लगा.

‘क्या हुआ? बोलते क्यों नहीं? तुम्हें छोड़ कर जाना पड़ रहा है, लेकिन यार वह लेडीज की किटी पार्टी है, बेबी, तुम वहाँ कैसे आ सकते हो?’

‘तुमने यह क्या पहना है ?’

रत्ना को वेदान्त का प्रश्न समझ में नहीं आया.

‘फ्राक यार, मस्त है न ? इन दिनों इसकी बहुत फैशन है.’

‘बिल्कुल खुले कंधें दिखाते हैं, ऐसे फ्राक ? यह भारत है, लंदन नहीं है.’

‘यार, कम ऑन, तुम किटी में आकर देखोगे तो यहाँ लंदन से भी अधिक माडर्न नजर आएगा.’

‘दूसरे जो भी करते हों, मेरी पत्नी ऐसे कपड़े पहन कर बाहर नहीं जाएगी.’

‘कम ऑन वेदान्त, तुम…’

‘कोई बहस नहीं ! जाना है तो ढंग के कपड़े पहन कर बाहर जाओ, नहीं तो घर में बैठी रहो.’ वेदान्त ने अपनी आँखें चौड़ी करते हुए कहा.

कभी किसी के वश में न आनेवाली रत्ना उस दिन उन आँखों से डर गई थी.

उस दिन किटी में रत्ना पूरे समय खिन्न रही. शार्ट स्कर्ट, स्ट्रेपलेस ब्लाउज और बेकलेस गाउन पहन कर सिगरेट फूँकती हुई लड़कियों को वह देखती रही. लंदन में वह भी कभी-कभी स्मोकिंग कर लेती थी. यह सब तो अब भारत में भी सामान्य हो रहा था. वेदान्त को यह मालूम नहीं हो, ऐसा थोड़े ही होगा ? इतना माडर्न और घूमनेवाला वेदान्त ऐसा होगा ? जो माता-पिता कहते थे, वह सच ही होगा.

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‘नो वे’, रत्ना ने सोचा. उसने उनसे झगड़कर यह शादी का निर्णय लिया था. उसे वे सही सिद्ध कर ही बताएँगे. अब चाहे जो हो, वह उन लोगों के पास वापिस नहीं लौटेगी. वह वेदान्त को धीरे-धीरे सुधार देगी.

‘वेदान्त ! यदि तुम सुधर गए होते तो !’ रत्ना सूखी हुई लौकी जैसे बिस्तर में पड़े वेदांत को देखकर जोरों से बोली, ‘मैं जहाँ रही, वहा से मीलों पीछे आ गई हूँ और तुम दो कदम भी आगे नहीं बढ़ सके. तुमने मेरी जिन्दगी को नर्क बना दिया है.’

वेदान्त गोल-गोल मंजरी आँखों से रत्ना की ओर एकटक देखता रहा.

वेदान्त की जिंदगी में, रत्ना आकाश से परी की तरह उतर कर आई थी और वेदान्त उसे झेलने के लिए एक ऊँची कूद लगाने के लिए भी तैयार नहीं था. बल्कि मानो वह उसे पकड़कर अपने भार से जमीन में और अधिक गहरे उतरता जा रहा था. उसने रत्ना का आधुनिक लिबास पहनना बंद किया, उसके परफ्यूम बंद किए और साथ ही उसने उसे ऊँची एड़ी के सेंडिल पहनने के लिए भी इंकार किया. उसने उसके मित्रों से मिलना भी कम करा दिया. किसी को घर बुलाने से पहले रत्ना को उससे मंजूरी लेना पड़ती. यदि वेदान्त का चलता तो वह तो यह भी नियम बना देता कि उसकी पत्नी श्वास भी उससे पूछ कर ही ले.

उस दिन तो रत्ना को वास्तव में उसकी मनपसंद आँखों को फोड़ने का मन भी हो गया. वे लोग एक मूवी देखने के लिए जा रहे थे. रत्ना तैयार हो कर जैसे ही बेडरूम के बाहर निकली कि वेदान्त से उसकी आँखें टकराईं.

‘यह क्या ? इतनी डार्क लिपस्टिक ! देखो तो, तुम वास्तव में कैसी लग रही हो ?’

‘वेदान्त ! आज तुम साथ में हो, इसलिए मैंने…’

‘मैं साथ में हूँ, इसलिए क्या हो गया ? अन्य लोग क्या तुम्हें देखनेवाले नहीं हैं ? मुझे ऐसा नहीं लगना चाहिए कि मैं किसी बाजारू स्त्री के साथ जा रहा हूँ.’ फिर जिसे पलटा ना जा सके, उस आवाज में बोला, ‘चुपचाप टिश्यू लो और लिपस्टिक पोंछ लो.’

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वेदांत के शब्दों से आहत रत्ना की नजर वेदान्त की आँखों के सामने पड़ी और उसने टिश्यू लेकर पहले अपने आँसुओं और फिर लिपस्टिक को पोंछ डाला. तथा साथ ही उसने अपने जीवन से ‘सुख’ व ‘स्वतंत्रता’ नामक शब्दों की अनुभूति को भी पोंछ डाला.

रत्ना कई बार सोचती कि वह पूरी स्वतंत्रता से बड़ी हुई, लेकिन वह इस तरह किसी की गुलाम कैसे हो गई ? किन अदृश्य जंजीरों ने उसे जकड़ लिया ? स्त्री तो प्रेम के लिए सब कुछ करने को तत्पर हो जाती हैं, लेकिन पुरुष के प्रेम का क्या ? क्या यह सब वेदान्त का प्रेम था ! ऐसा अधिकारभरा प्रेम कि उसकी पत्नी सुंदर दिखाई दे, सब उसकी ओर देखें, उसकी तारीफ़ करें, वह यह भी सहन नहीं कर सके ? क्या वह अपना मालिक था ?

ऐसे वाकये जब होते, तब उसे उसके मम्मी-डेडी याद नहीं आते थे, बल्कि उसे याद आती रिंग मास्टर की चाबुक की फटकार की मात्र आवाज, जिसे सुनकर, सर्कस की बाघन अपना सिर नीचे किए पिंजरे में चली जाती है !

रत्ना जब अकेली होती, तब उसके दिमाग में इन सबके समक्ष विद्रोह करने और अपने अधिकारों को वापिस प्राप्त करने के विचार आते, लेकिन जब वेदान्त सामने होता, तब उसकी आँखों से जादुई साँकलें जैसी कुछ निकलतीं, जो रत्ना के विचारों को बंदी बना लेतीं.

एक बार रत्ना ने इस अदृश्य बंधन से मुक्त होने की कोशिश की थी. वेदान्त दो दिन के लिए अपने व्यवसाय के काम से बाहर गया, तब रत्ना ने दृढ़ निश्चय कर उसने उसके द्वारा पहली बार खरीदी बेकलेस ड्रेस को पहना था, पार्टी मेकअप कर डार्क लिपस्टिक लगाईं थी और वेदान्त को जो बिल्कुल पसंद नहीं था, वह स्ट्रांग परफ्यूम भी छिड़का था. लेकिन वह जैसे ही बेडरूम से बाहर आई कि सामने ही वेदान्त की आँखें दिखाईं दीं. उसने नजर घुमा ली और दूसरी ओर देखा. वहाँ भी उस रानी बिल्ले जैसी आँखें उसे देख रही थीं. रत्ना को अब चारों ओर वेदान्त की आँखें ही दिखाई देती थीं- दीवारों पर, छत पर, गोल-गोल घूम रही पंखें की ब्लेड्स पर, कार्पेट की डिजाइन में, यहाँ तक कि रोशनी के बल्ब में भी उसे वे आँखें ही दिखाई देती थीं. वह मुँह धोने के लिए सीधे वाशरूम की ओर दौड़ गई. वहाँ दर्पण में देखा तो उसके स्वयं के चेहरे पर वेदान्त की आँखों को ही लगे हुए देखा. रत्ना ने नल चालू किया. फिर हाथ में पानी की धार के स्थान पर ऐसा लगा मानो वेदान्त की आँखें ही गिर रही हैं.

रत्ना को लगा कि अब वह अपनी जिन्दगी को अपने अनुसार कभी भी नहीं जी सकती है| अब वह पूर्ण रूप से उस जादूगर के वश में थी. उसके द्वारा रचे मायाजाल से अब वह कभी मुक्त नहीं हो सकती. उसकी शादी के दो वर्ष बाद ही उसके मम्मी- डैडी एक कार दुर्घटना में गुजर चुके थे. उसकी अब वहाँ की वीजा भी निरस्त हो चुकी थी. इसलिए वह दरवाजा तो अब हमेशा के लिए बंद हो चुका था. इसलिए अब उसे हमेशा इसी प्रकार रहना होगा.

लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पिछले कुछ वक्त से वेदान्त उसे होनेवाले पेटदर्द को ‘बिजनेस का टेंशन’ व ‘भोजन में अनियमितता’ जैसे कारण समझकर उसकी अवगणना कर रहा था. लेकिन एक दिन वह दर्द असह्य हो गया. अस्पताल में बहुत सूक्ष्म जाँच हुई और उसके बाद रत्ना को कह दिया गया कि, ‘अंतिम स्टेज का आँतों का कैंसर है और वह अब सब ओर फ़ैल गया है. कई मामलों में ऐसा होता है कि अंतिम चरण तक भी मरीज को इसका अहसास ही नहीं होता है या फिर वे लोग शरीर की चेतावनी की अवगणना करते रहते हैं. अब ऑपरेशन भी संभव नहीं है. केमोथेरापी भी अब अर्थहीन रहेगी. जितने दिन है, उतने दिन अब घर में साथ रह लो’.

रत्ना वेदान्त को घर ले आई थी. सेहत के बारे में मिलने वाले आगंतुक मित्रों से वह जब बात करती, तब भी वेदान्त की चौकीदार आँखें उसके आगे-पीछे ही घूमती रहतीं.

बगैर कुछ बोले रत्ना को सतत डरानेवाली, धमकानेवाली वे आँखें सदैव के लिए एक दिन बंद हो गई. रत्ना ने ‘नेत्र दान’ से संबंधित समस्त जानकारी डॉ. संकेत कोठारी के पास से प्राप्त कर ली. इसलिए बगैर कुछ समय गँवाए उसने कुछ आर्द्र आवाज में पहला फोन उन्हें ही किया, ‘संकेत, नाऊ आय हेव लास्ट हिम फार एवर’.

‘ओह ! आय एम सो सॉरी !’

‘लेकिन मुझे उसकी आँखें नहीं गँवाना है. आप जल्दी से अपने साधनों को लेकर आ जाएँ’.

***

डॉ. संकेत का फोन आ गया. इसलिए रत्ना जगदीप की राह देखते हुए बैठी थी. डोरबेल बजी और वह दरवाजे तक पहुँचे, उसके पहले तो उसके द्वारा लगाए स्ट्रांग परफ्यूम की गंध जगदीप की नाक तक पहुँच गई थी. रत्ना ने दरवाजा खोला और जगदीप के चेहरे पर लगी वेदान्त की आँख रत्ना के मेकअप किए व डार्क लिपस्टिकवाले चेहरे से सरक कर उसके ऑफ शोल्डर, छोटे फ्राक से होते हुए नेल पेंट लगाए पैर के नाखूनों पर स्थिर हो गईं. रत्ना ने उसे सोफे पर बैठने के लिए कहा. ऐश ट्रे में रखी जलती हुई सिगरेट का कश लेकर, उसका धुआँ जगदीप की आँख की ओर फेंकते हुए रत्ना ने उससे पूछा, ‘जगदीप, क्या तुम मेरे ऑफिस में मेरे पर्सनल प्यून यानी निजी नौकर के रूप में काम करना पसंद करोगे?’

पता : 10, ईशान बंगलो, सुरधारा- सताधार मार्ग, थलतेज, अहमदाबाद- 380054, मो. – 8980205909

गुजराती से हिंदी अनुवाद- राजेन्द्र निगम, 10-11, श्री नारायण पैलेस, शेल पेट्रोल पंप के पास, थलतेज, अहमदाबाद- 380059, मो. – 9374978556.

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