World Book Fair 2024: मेले में साम्य के नंद चतुर्वेदी विशेषांक का लोकार्पण

world Book Fair 2024 : नंद बाबू की कविता 'शरीर' को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि देह के लिए जैसा राग और स्वीकृति नंद बाबू के मन में है वह भी कम कवियों में देखने को मिलता है.

By Rajneesh Anand | February 16, 2024 12:40 PM

World Book Fair 2024: नंद चतुर्वेदी बड़े अंत:करण वाले मनुष्य और कवि थे. वे उन कवियों में से थे जो सबको साथ लेकर चले. अच्छा है कि अब हिंदी कविता आलोचना की दृष्टि बदली है और हमारी भाषा के बड़े कवि के रूप में उनकी प्रतिष्ठा हो रही है. सुपरिचित आलोचक ओम निश्चल ने कवि नंद चतुर्वेदी की जन्म शताब्दी के अवसर पर विख्यात लघु पत्रिका ‘साम्य’ का लोकार्पण करते हुए कहा कि नंद बाबू केवल कवि ही नहीं कविता के सक्रिय कार्यकर्ता भी थे.

सादगी भरे शिल्प में भी विडंबनाओं को देखा


विश्व पुस्तक मेले में गार्गी प्रकाशन के स्टाल पर आयोजित लोकार्पण में निश्चल ने कहा कि अपने सादगी भरे शिल्प में भी नंद बाबू ने हमारी विडंबनाओं को देखा -परखा. उद्भावना के संपादक अजय कुमार ने कहा कि विस्मृति के इस दौर में साम्य का यह अंक सचमुच उत्साहवर्धक घटना है. उन्होंने हाल में आए उद्भावना के अंक में प्रकाशित नंद चतुर्वेदी की कविताओं का जिक्र भी किया. जाने माने आलोचक प्रो हितेंद्र पटेल ने नंद चतुर्वेदी की कविताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि यह बाजार का दौर है और इस दौर में हमें अपनी स्मृतियों को बचाए रखने की चुनौती है.

नॉस्टेल्जिया का रचनात्मक उपयोग नंद बाबू ने कविताओं में किया

साम्य के इस विशेषांक का प्रकाशन बाजारवादी समय में कविता और संस्कृति का प्रतिकार है. उदयपुर से आए आलोचक माधव हाड़ा ने कहा कि मैं नंद बाबू का स्नेहभाजन रहा हूं और उन्हें याद करना मेरे लिए प्रीतिकर अनुभव है. हाड़ा ने कहा कि नॉस्टेल्जिया का जैसा रचनात्मक उपयोग नंद बाबू ने अपनी कविताओं में किया है वैसा हिंदी के किसी दूसरे समकालीन कवि के यहां नहीं मिलता. उनकी कविता के कई आयाम है और वे हर बार अपना मुहावरा तोड़कर नया स्वर बनाते हैं.

देह के लिए अनोखा राग


नंद बाबू की कविता ‘शरीर’ को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि देह के लिए जैसा राग और स्वीकृति नंद बाबू के मन में है वह भी कम कवियों में देखने को मिलता है. गार्गी प्रकाशन के अतुल कुमार ने बताया कि खराब स्वास्थ्य के बावजूद साम्य के कंजकों का प्रकाशन संपादक विजय गुप्त की निष्ठा और समर्पण को दर्शाता है. संयोजन कर रहे युवा आलोचक पल्लव ने नंद चतुर्वेदी के गद्य लेखन को भी महत्त्वपूर्ण बताते हुए कहा कि पिछली सदी के अनेक भुला दिए दिए लोग नंद बाबू की गद्य कृतियों में सुरक्षित हैं.

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