Allahabad High Court News: उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यूपी के कार्यकारी अधिकारी अपनी सनक और मनमर्जी से गुंडा एक्ट की असाधारण शक्तियों का दुरुपयोग कर रहे हैं. वे एक मुकदमे या कुछ बीट रिपोर्ट पर ही नोटिस जारी कर रहे हैं. यह निवारक अधिनियम को कुंद बनाने जैसा है. कोर्ट ने यूपी सरकार को 31 अक्तूबर तक एक गाइडलाइन जारी करने का निर्देश दिया है, ताकि कार्रवाई में एकरूपता आ सके. कोर्ट ने अलीगढ़ के एडीएम वित्त एवं राजस्व की ओर से 15 जून-23 को जारी कारण बताओ नोटिस भी रद्द कर दिया है.
न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी और न्यायमूर्ति मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने बुधवार को अलीगढ़ के गावेर्धन की तरफ से दायर रिट याचिका को स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया. पीठ ने कहा कि इस गाइडलाइन का अधिकारियों द्वारा गंभीरता से पालन किया जाए, ताकि इसके अनुपालन में एकरूपता रहे. कोर्ट ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को भी निर्देश दिया है कि वह आदेश की कॉपी प्रदेश के सभी कार्यकारी अधिकारियों को भेजकर प्रसारित कराएं, जिससे आदेश का सख्ती से अनुपालन हो सके.
कोर्ट ने कार्यकारी अधिकारियों से यह उम्मीद भी जताई कि प्रस्तावित गुंडा एक्ट की कार्रवाई से पहले जनता के बीच उनकी छवि, सामाजिक व पारिवारिक पृष्ठभूमि भी बताएंगे. इसके बाद निर्धारित प्रोफार्मा के बजाय सुविचारित आदेश पारित करेंगे. शहर से निष्कासन का आदेश भी तर्कसंगत होना चाहिए. कोर्ट ने सभी जिला मजिस्ट्रेटों और उनके अधीनस्थ कार्यकारी अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे उसी के खिलाफ कार्रवाई करें, जिसके विरुद्ध ठोस आधार हो कि वह आदतन बार-बार अपराध करता हो और उसका शहर से निष्कासन जरूरी है.
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इस मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ यूपी गुंडा नियंत्रण अधिनियम-1970 की धारा तीन के तहत 15 जून 2023 को दो मामलों के आधार पर गुंडा एक्ट की कार्रवाई करने के इरादे से एडीएम वित्त एवं राजस्व ने नोटिस जारी किया था. याचिकाकर्ता के खिलाफ दोनों मुकदमे अलीगढ़ के छर्रा थाने में दर्ज हैं. इसे हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कार्रवाई को रद्द करने की मांग की गई थी. कोर्ट ने कहा कि आमतौर केवल नोटिस जारी करने को लेकर दाखिल याचिकाओं पर वह सुनवाई नहीं करती है, लेकिन यह गंभीर मामला है.
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने दलील दी कि आदतन अपराधी के खिलाफ गुंडा एक्ट में कार्रवाई की जाती है. यह एक केस के आधार पर नहीं हो सकती है. जिसमें उसे मुकदमे के समापन तक अग्रिम जमानत दी गई है.
इस पर कोर्ट ने कहा कि कार्यकारी अधिकारी अपनी सनक और मनमर्जी से गुंडा एक्ट की असाधारण शक्तियों का प्रयोग कर रहे हैं. वे एक मामले या कुछ बीट रिपोर्ट पर ही नोटिस जारी कर रहे हैं. यह निवारक अधिनियम को कुंद बनाने जैसा है. गुंडा अधिनियम के प्रावधानों का अविवेकपूर्ण प्रयोग और व्यक्तियों को नोटिस भेजना कार्यकारी अधिकारियों की इच्छा या पसंद पर आधारित नहीं है.
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कोर्ट ने कहा कि जिला मजिस्ट्रेट को असामान्य शक्तियों का प्रयोग करने से पहले पूरी सावधानी बरतनी चाहिए, लेकिन पाया जा रहा है कि इसके प्रावधानों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है. एक ही मामले में नोटिस जारी करना काफी परेशान करने वाला है. इससे अनावश्यक मुकदमेबाजी का अंबार लगता है. कोई कार्यकारी प्राधिकारी सिर्फ इस आधार पर नोटिस को उचित नहीं ठहरा सकता कि याची एक आदतन अपराधी है.
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा कैलाश जायसवाल के मामले में दिए आदेश का हवाला देते हुए कड़ी नाराजगी भी जाहिर की है. इसके अलावा, कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि शांति से रहना और अपना व्यवसाय करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है, हालांकि, न्यायालय ने कहा, यदि कार्यकारी अधिकारी इस निवारक कानून के तहत किसी को नोटिस जारी कर रहे हैं, तो उन्हें उस व्यक्ति की अतीत की छवि, पिछली साख, परिवार, सामाजिक शैक्षिक पृष्ठभूमि के बारे में आश्वस्त होना चाहिए.