यूपी के चंदौली में हुए चर्चित सिकरौरा नरसंहार मामले की हाईकोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई. कोर्ट बुधवार यानि आज भी इस मामले की सुनवाई करेगा. पीड़िता हीरावती की तरफ से हाईकोर्ट में दायर अपील पर चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर तथा जस्टिस अजय भनोट की खंडपीठ सुनवाई कर रही है. याची हीरावती देवी की ओर से सीआरपीसी की धारा 391 के तहत अर्जी दाखिल कर विवेचक का बयान रिकॉर्ड पर लेने की मांग की गई. कोर्ट ने उसे रिकॉर्ड पर लेते हुए विपक्षी से जवाब मांगा है. याचिकाकर्ता के वकील उपेंद्र उपाध्याय ने कोर्ट में कहा कि घटना का ट्रायल कई सालों बाद हुआ है. ट्रायल कोर्ट ने पहले विवेचक का बयान रिकॉर्ड पर लिया ही नहीं है. जबकि, ये बेहद अहम सबूत हैं. क्योंकि, एक गवाह ने घटना के दिन माफिया बृजेश सिंह को देखा था. उसका विवेचक द्वारा दर्ज बयान ट्रायल कोर्ट में पढ़ा ही नहीं गया. इस पर कोर्ट ने उसे रिकॉर्ड पर लेते हुए प्रतिवादी वकील से आपत्ति मांगी है.
गौरतलब है कि यूपी के चंदौली जिले के बलुआ थाना अंतर्गत सिकरौरा गांव में सात लोगों की नृशंस हत्या के अहम आरोपी माफिया बृजेश सिंह को वाराणसी कोर्ट ने दोषमुक्त कर दिया था. सिकरौरा गांव के प्रधान रामचंद्र यादव, उसके दो भाई रामजन्म व सियाराम और चार मासूम बच्चों मदन, उमेश, टुनटुन व प्रमोद की 9 अप्रैल 1986 की रात नृशंस तरीके से हत्या कर दी गई थी. वारदात की वजह जमीन संबंधी विवाद और ग्राम प्रधान चुनाव की रंजिश बताई गई थी. रामचंद्र की पत्नी हीरावती देवी की तहरीर पर मुकदमा दर्ज किया गया था. इस मामले में माफिया बृजेश सिंह समेत कुल 13 लोगों को आरोपी बनाते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी. प्राथमिकी दर्ज कराने के समय और बयान में अदालत ने भिन्नता पाई थी. अदालत में डॉक्टर ने बयान दिया था कि जिस हथियार गड़ासा की बात कही गई है उससे हत्या नहीं हो सकती बल्कि बल्लमनुमा हथियार की चोट मृतकों के शरीर पर पाई गई थी.
वादिनी ने पूर्व के बयान में कहा था कि उसने सीढ़ी से उतरते हुए पंचम और देवेंद्र को देखा था. जबकि, बाद के बयान में कहा कि सीढ़ी से पंचम और बृजेश को उतरते देखा था. इस वजह से अदालत ने वादिनी के बयान को अविश्वसनीय माना था. बता दें कि इस प्रकरण के छह आरोपी पहले ही बरी किए जा चुके हैं. 2008 में बृजेश की ओडिशा के भुवनेश्वर से गिरफ्तारी के बाद हाईकोर्ट इलाहाबाद के निर्देश पर मामले की त्वरित सुनवाई जिले की अदालत में शुरू हुई. शुरुआत में मामला वारदात के समय बृजेश के बालिग और नाबालिग होने को लेकर अटका रहा. वारदात के दौरान बृजेश के बालिग घोषित होने पर ट्रायल शुरू हुआ था. वाराणसी कोर्ट में सुनवाई के बाद सभी आरोपियों को बरी कर दिया. जिसके बाद पीड़ित हीरावती देवी और सरकार ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी. उस पर कई दिनों से सुनवाई चल रही है.