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UP News: एमएनएनआईटी परिसर में देश की पहली मानव रहित कार सड़क पर सरपट दौड़ी, खुद लगा ब्रेक, जानें खासियत

मानव रहित कार का अब तीसरा और आखिरी चरण आरंभ होगा, जो छह महीने चलेगा. एमएनएनआईटी के प्रोफेसर समीर और प्रो. जितेंद्र गंगवार निर्देशन में बीटेक छात्रों की टीम ने मिलकर इस कार को तैयार किया है. कार्ट-95 के नाम से इस मानव रहित कार परियोजना पर 15 लाख रुपए लागत आई है.

Prayagraj: देश की पहली मानव रहित कार ने अपने ताजा परिक्षण में एक और उपलब्धि हासिल की है. प्रयागराज के मोती लाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनएनआईटी) परिसर में इसका सफल परीक्षण किया गया. परिसर की सड़कों पर 30 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से इस कार ने दो सौ मीटर से अधिक दूरी बिना किसी दिक्कत के तय की. इस दौरान अवरोधक मिलने पर न सिर्फ ये मानव रहित कार अपने आप रुकी यानी इसके ब्रेक लगे बल्कि जरूरत पड़ने पर ये अपना रास्ता भी बदलती रही और मोड़ वाली जगहों पर खुद मुड़कर निर्धारित स्थल पर पहुंची. इसे कार को एमएनएनआईटी के बीटेक के छात्रों ने बनाया है. अभी तक विभिन्न चरणों में यह मानकों पर पूरी तरह खरी उतरी है. हालांकि इस प्रोजेक्ट को अंतिम चरण तक पहुंचने के लिए अभी कुछ समय और इंतजार करना होगा. माना जा रहा है कि अगले छह महीने में यह मानव रहित कार सड़कों पर दौड़ती नजर आएगी. मानव रहित पांच सीटों वाली कार के दूसरे चरण के सफल परीक्षण को लेकर एमएनएनआईटी के टेक्नोक्रेट बेहद उत्साहित हैं और उन्हें उम्मीद है कि उनका ये प्रोजेक्ट पूरी तरह सफल होगा.

इस तरह काम करती है मानव रहित कार

बिना ड्राइवर के चलने वाली पहली मानव रहित कार प्रयागराज के एमएनएनआईटी के छात्रों ने कई सालों की अथक मेहनत के बाद तैयार की है. कोडिंग और प्रोग्रामिंग सफल होने के बाद इस कार को किसी भी सड़क पर चलने के लिए उतारा जा चुका है. इस कार के आगे और पीछे कैमरा लगाया गया है. इससे यह कार बिना किसी मानव चालक के ही रास्ता देख कर स्वत: चलती है. कार को सामने से आने वाली कोई भी गाड़ी, आदमी, भीड़, जानवर या फिर गड्डा, कटान सब कुछ दिख जाता और किसी तरह का अवरोध होने पर वह अपने आप ब्रेक लेकर रुक जाती है. इतना ही नहीं अवरोधक के हटने के साथ ही यह मानव रहित कार अपने गंतव्य के लिए रवाना भी हो जाती है. यह सड़क दुर्घटना के हर कारणों को भांप सकती है.

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अमेरिका की यूनिवर्सिटी से मिली मदद

करीब साल भर पहले यह कार प्रयागराज के एमएनएनआईटी परिसर में सिर्फ 30 मीटर ही चल सकी थी. स्टीयरिंग चेन सिस्टम पर आधारित थी. कोडिंग और प्रोग्रामिंग के बाद अब अमेरिका की कार्निगी मेलॉन यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर विजन विभाग के शोध छात्र भुवन जाम की मदद से इसकी दूसरी बाधाओं को पार कर लिया गया है.

19 युवाओं की टीम प्रोजेक्ट पर कर रही काम

प्रोजेक्ट से जुड़े छात्रों के मुताबिक मैकेनिकल डिजाइन, इलेक्ट्रिकल, कंप्यूटर कोडिंग और विजन पर 19 युवाओं की टीम ने काम किया. स्टीयरिंग अब चेन रहित बनाने में सफलता मिल गई है. इस टीम के मैकेनिकल हेड आयुष गौर हैं. इलेक्ट्रिकल के प्रभारी शशांक सिंह और कंप्यूटर विजन के हेड अनादि गर्ग हैं. एमएनएनआईटी परिसर में दो सौ मीटर तक फर्राटा भरने के बाद इस मानव रहित कार को पूरी तरह सड़कों पर चलने के लिए फिट पाया गया.

तीसरा और अंतिम चरण होगा शुरू

अनादि गर्ग के मुताबिक इस कार का अब तीसरा और आखिरी चरण आरंभ होगा, जो छह महीने चलेगा. एमएनएनआईटी के प्रोफेसर समीर और प्रो. जितेंद्र गंगवार निर्देशन में बीटेक छात्रों की टीम ने मिलकर इस कार को तैयार किया है. इस कार के लिए फंडिंग और मार्गदर्शन एमएनएनआईटी के ही साल 1995 बैच के छात्र रहे आरआरडी गो क्रिएटिव के वाइस प्रेसीडेंट रोहित गर्ग और सड़क एवं परिवहन मंत्रालय नई दिल्ली में अधीक्षण अभियंता के पद पर तैनात राजेश कुमार ने किया है. कार्ट-95 के नाम से इस मानव रहित कार परियोजना पर 15 लाख रुपए लागत आई है.

अनादि गर्ग के मुताबिक अमेरिका की कार्निगी मेलॉन यूनिवर्सिटी की मदद से माव रहित कार की स्टीयरिंग और विजन की बाधाओं को दूर करने में कामयाबी मिल गई है. इस कार को अब जहां भी जाने के लिए कोडिंग के माध्यम से कहा जाएगा, वहां वह अपने आप रास्ता ढूंढते हुए पहुंच जाएगी.

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