Prayagraj News: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad HIgh Court) ने ‘लिव इन रिलेशन’ के बढ़ते प्रचलन को लेकर अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि ये देखने और सुनने में बहुत आकर्षित लगते हैं, लेकिन समय गुजरने के साथ महसूस होता है कि इस रिश्ते की कोई सामाजिक मान्यता नहीं है और ये जीवन भर नहीं चल सकता. एक मामले के आरोपी को जमानत देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी की.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि भारत में विवाह की संस्था को नष्ट करने के लिए में फिल्में और टीवी धारावाहिक योगदान दे रहे हैं. कोर्ट ने यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश में अपनी लिव-इन पार्टनर से दुष्कर्म के आरोपी व्यक्ति को जमानत देते हुए की. कोर्ट ने यह मानते हुए कि ‘हर मौसम में साथी बदलने” की क्रूर अवधारणा को “स्थिर और स्वस्थ’ समाज की पहचान नहीं माना जा सकता है, जोर देकर कहा कि विवाह संस्था किसी व्यक्ति को जो सुरक्षा और स्थिरता प्रदान करती है, उसकी उम्मीद लिव-इन-रिलेशनशिप से नहीं की जा सकती है.
प्रकरण में जस्टिस सिद्धार्थ ने कहा कि लिव-इन-रिलेशनशिप को इस देश में विवाह की संस्था के अप्रचलित होने के बाद ही सामान्य माना जाएगा, जैसा कि कई तथाकथित विकसित देशों में होता है, जहां विवाह की संस्था की रक्षा करना उनके लिए एक बड़ी समस्या बन गई है. उन्होंने कहा कि क्या भविष्य में हमारे लिए एक बड़ी समस्या खड़ी करने की कार्यवाही की जा रही है?
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जस्टिस सिद्धार्थ ने कहा कि विवाहित रिश्ते में साथी से बेवफाई और फ्री लिव-इन-रिलेशनशिप को एक प्रगतिशील समाज के लक्षण के रूप में दिखाया जा रहा है. युवा ऐसे दर्शन के प्रति आकर्षित होते हैं, जो एडवांस होता है, जबकि वे उसके दीर्घकालिक परिणामों से अनजान होते हैं.
खास बात है कि न्यायालय का यह भी मानना था कि जिस व्यक्ति के पारिवारिक रिश्ते मधुर नहीं हैं, वह राष्ट्र की प्रगति में योगदान नहीं दे सकता. लिव-इन-रिलेशनशिप का जिक्र करते हुए जस्टिस सिद्धार्थ ने यह भी कहा कि एक रिश्ते से दूसरे रिश्ते में जाने से कोई संतुष्टिदायक अस्तित्व नहीं मिलता है और ऐसे रिश्तों से पैदा होने वाले बच्चों को बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
कोर्ट ने कहा कि जब उनके माता-पिता अलग हो जाते हैं तो वे समाज पर बोझ बन जाते हैं. वे गलत संगत में पड़ जाते हैं और राष्ट्र संभावित अच्छे नागरिकों को खो देता है. लिव-इन-रिलेशनशिप से पैदा हुई लड़की के मामले में अन्य दुष्प्रभाव भी हैं. ये इतने स्पष्ट हैं कि इन्हें विस्तार से नहीं बताया जा सकता. अदालतों को रोजाना ऐसे मामले देखने को मिलते हैं.
पीठ ने अपने विचार व्यक्त करते हुए माना कि ऐसे रिश्ते बहुत आकर्षक लगते हैं और युवाओं को लुभाते हैं, हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता है, मध्यवर्गीय सामाजिक नैतिकता, मानदंड नजर आने लगते हैं और उसके बाद, ऐसे जोड़ों को एहसास होता है कि उनका रिश्ता अब खत्म हो चुका है.
कोर्ट ने कहा कि कोई सामाजिक स्वीकृति नहीं और यह जीवन भर जारी नहीं रह सकता. अदालत ने प्रकरण में अभियुक्त अदनान को जमानत देते हुए मामले में ये टिप्पणियां कीं, जिसे 18 अप्रैल, 2023 को अपने लिव-इन पार्टनर से शादी करने के वादे से मुकरने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
इस प्रकरण में 19 वर्षीय पीड़िता ने आरोप लगाया कि अदनान ने उससे दोस्ती की. उनके बीच एक साल तक लिव-इन रिलेशनशिप रहा और उन्होंने आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाए. जब वह गर्भवती हो गई, तो उसने उससे शादी करने का अपना वादा पूरा करने से इनकार कर दिया. इस पर पीड़िता ने आरोप लगाया कि लड़के ने शादी के झूठे वादे पर बलात्कार किया था.
प्रकरण में दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने पाया कि यह एक और मामला था जहां “लिव-इन रिलेशनशिप का आनंद लेने के बाद” युवा जोड़े अलग हो गए थे. अदालत ने कहा कि अधिकांश मामलों की तरह पीड़ित लड़की ने आवेदक के साथ विवाह के सुरक्षित रिश्ते में प्रवेश करने और सामाजिक रूप से स्वीकृत मानदंडों और विवाह के रिश्ते के दायरे में आने के लिए व्यर्थ प्रयास के रूप में एफआईआर दर्ज की.
कोर्ट ने आगे कहा कि ब्रेकअप के बाद महिला साथी के लिए समाज का सामना करना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि मध्यमवर्गीय समाज ऐसी अलग महिलाओं को सामान्य नहीं मानता है. कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि हमारे जैसे देश में मध्यम वर्ग की नैतिकता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि हमारे देश में ज्यादातर मध्यम वर्ग ही रहता है.
कोर्ट ने कहा कि किसी राष्ट्र की स्थिरता, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति केवल मध्यम वर्ग के आकार पर निर्भर करती है. प्रकरण में अदालत ने अदनान को व्यक्तिगत बांड और संबंधित अदालत की संतुष्टि के लिए समान राशि की दो जमानत राशि प्रस्तुत करने पर जमानत दे दी.