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उमेश पाल अपहरण केस अतीक और अशरफ के गले की बन सकता है फांस, 17 साल बाद आज सजा पर आएगा फैसला, फांसी तक संभव

अतीक अहमद, उसकी पत्नी शाइस्ता परवीन और बेटा असद जहां उमेश पाल हत्याकांड में नामजद है और इसके बाद से ही उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं. वहीं वर्ष 2006 में उमेश अपहरण केस दोनों भाइयों के गले की फांस बन सकता है. अगर अदालत उन्हें दोषी करार देती है तो एफआईआर की धाराओं के मुताबिक उन्हें कड़ी सजा मिल सकती है.

Prayagraj: उमेश पाल अपहरण कांड में अतीक अहमद, उसके भाई अशरफ सहित अन्य आरोपियों की मुश्किलें मंगलवार को बढ़ सकती हैं. इस मामले में एमपी-एमएलए कोर्ट अपना फैसला सुनाएगी. केस को लेकर अतीक को गुजरात के साबरमती और अशरफ को बरेली जेल से प्रयागराज लाया गया है. दोनों को नैनी जेल में रखा गया है, जहां से उन्हें कोर्ट में पेश किया जाएगा.

दोषी करार देने पर मिलेगी कड़ी सजा

अतीक अहमद, उसकी पत्नी शाइस्ता परवीन और बेटा असद जहां उमेश पाल हत्याकांड में नामजद है और इसके बाद से ही उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं. वहीं वर्ष 2006 में उमेश अपहरण केस दोनों भाइयों के गले की फांस बन सकता है. अगर अदालत उन्हें दोषी करार देती है तो एफआईआर की धाराओं के मुताबिक उन्हें कड़ी सजा मिल सकती है.

17 साल बाद अदालत सुनाएगी फैसला

इस केस में 17 साल बाद अदालत अपना फैसला सुनाएगी. इसमें अतीक और अशरफ सहित 11 लोग आरोपी थे, जिनमें से एक आरोपी अंसार बाबा की पहले ही मौत हो चुकी है. अतीक और अशरफ को कड़ी सुरक्षा के बीच कोर्ट में पेश किया जाएगा, साथ में अन्य आरोपी भी होंगे. इसके लिए कचहरी परिसर में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं.

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28 फरवरी 2006 को हुआ था उमेश पाल का अपहरण

राजू पाल हत्याकांड के अगले साल 28 फरवरी 2006 को उमेश पाल का अपहरण कर अतीक अहमद के कर्बला स्थित कार्यालय ले जाया गया था. आरोप है कि अतीक और उसके भाई अशरफ ने राजू पाल मर्डर केस में गवाही बदलने के लिए उमेश पाल पर खूब दबाव डाला. इसके दूसरे दिन एक मार्च 2006 को अदालत में ले जाकर अपने पक्ष में गवाही दर्ज करा ली थी. तब प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी. आरोप है कि उमेश पाल की शिकायत पर पुलिस ने एफआईआर नहीं लिखी.

एक साल बाद ​2007 में एफआईआर हुई दर्ज

इसके बाद उमेश पाल ने 5 जुलाई 2007 को धूमनगंज थाने में तत्कालीन सांसद अतीक अहमद, उसके भाई अशरफ, दिनेश पासी, खान सौकत हनीफ, अंसार बाबा के खिलाफ अपहरण कर विधायक राजू पाल हत्याकांड मामले में अपने पक्ष में बयान करने का आरोप लगाया था. इस मामले में धूमनगंज पुलिस ने आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 364, 323, 341, 342, 504, 506, 34, 120बी और सेवन सीएल अमेंडमेंट एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज की. खास बात है कि अपहरण करने वालों पर ही हत्या का आरोप लगा है. दोष सिद्ध होने पर धारा 364ए में दस साल कैद की सजा से लेकर फांसी की सजा का प्रावधान है. सुनवाई के दौरान गवाह व वादी उमेश पाल की हत्या भी अधिकतम सजा की वजह बन सकती है. उमेश पाल ने जीवित रहते अपनी गवाही पूरी कर ली थी. इसलिए वह सजा के लिहाज से बड़ा आधार बन सकती है.

अतीक और अन्य ने बचाव में 54 गवाह किए पेश

विवेचना के दौरान जावेद उर्फ बज्जू, फरहान, आबिद, इसरार, आसिफ उर्फ मल्ली, एजाज अख्तर का नाम सामने आया. पुलिस की रिपोर्ट दाखिल होने के बाद कोर्ट ने 2009 में आरोप तय कर दिए. इसके बाद अभियोजन की ओर से कुल आठ गवाह पेश किए गए, जिसमें खुद उमेश पाल और उसके एक रिश्तेदार के अलावा दो जांच अधिकारियों के साथ छह पुलिस कर्मी शामिल थे. वहीं अतीक अहमद, अशरफ सहित अन्य आरोपियों ने अपने बचाव के लिए कुल 54 गवाह पेश किए गए.

हाई कोर्ट के आदेश के बाद सुनवाई में तेजी

मामले की सुनवाई में देरी होने पर उमेश पाल ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. इस पर कोर्ट ने तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए ट्रायल कोर्ट को दो महीने में सुनवाई पूरी करने का आदेश दिया था. इसके बाद से ही उमेश पाल अपहरण कांड में रोजाना सुनवाई होने लगी. 24 फरवरी, 2023 को जिस दिन उमेश पाल की हत्या हुई, उस दिन वह इसी केस के बाद कोर्ट से ही लौटे थे. इसी दौरान उनकी हत्या कर दी गई.

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