रजरप्पा (सुरेंद्र कुमार/शंकर पोद्दार) : दोस्ती की आड़ में पाकिस्तान ने जब कारगिल में भारत की पीठ में छुरा घोंपा था, तब भारतीय सेना के जवानों ने शौर्य की गाथा लिखी थी. कई देशों के हस्तक्षेप के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के कायर सैनिकों को सेफ पैसेज दिया था. इसके पहले घुसपैठियों की वेश में आये उसके हजारों सैनिकों को भारत की सेना ने मौत के घाट उतार दिया. एक सैन्य टुकड़ी का हिस्सा झारखंड के रामगढ़ जिला के जीवन प्रजापति भी थे.
कारगिल में लड़े गये इस युद्ध में गोला प्रखंड के सुदूरवर्ती क्षेत्र कोरांबे गांव के जीवन प्रजापति ने भी अपनी वीरता दिखायी थी. पीठ में दो और जांघ में एक गोली लगने के बावजूद इन्होंने दुश्मन सेना को एक इंच आगे नहीं बढ़ने दिया. पाकिस्तानी सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया. दुश्मन के कई जवानों को उन्होंने मार गिराया. अंतत: 26 जुलाई, 1999 को भारत ने विजय पताका लहरा दिया. इस विजय को याद करते हुए देश में हर साल ‘कारगिल विजय दिवस’ मनाया जाता है. इस दिन देश भर में अपने वीर शहीद जवानों को याद किया जाता है.
कारगिल युद्ध की चर्चा मात्र से जीवन प्रजापति का चेहरा चमक उठता है. जीवन प्रजापति कहते हैं कि जब वे लड़ाई लड़ रहे थे, सुबह लगभग चार बजे थे. इन्हें तीन गोलियां लगीं. खून से लथपथ हो गये. फिर भी अपनी जगह से नहीं हिले. घायल होने के बावजूद लगातार फायरिंग करते रहे. पाकिस्तान के कई सैनिकों को इन्होंने मौत के घाट उतार दिया. इसके बाद साथी जवान घायल अवस्था में इन्हें हेलीकॉप्टर से अस्पताल ले गये.
जीवन प्रजापति ने बताया कि इस युद्ध में उनकी बटालियन के सकतर सिंह शहीद हो गये थे. महेंद्र सिंह, निर्भय सिंह सहित कई जवान घायल हो गये. जब जीवन को गोली लगी थी, उसके कुछ महीने पहले ही उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी. युद्ध छिड़ जाने की वजह से वह अपने बेटे को देखने के लिए घर नहीं आ पाये थे. दो साल बाद जाकर अपने बेटे का मुंह देख पाये.
जीवन प्रजापति वर्ष 1984 में सेना में भर्ती हुए. कई जगह इनकी पोस्टिंग हुई. वर्ष 1988 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लिट्टे के खिलाफ लड़ाई के लिए अपनी सेना श्रीलंका भेजने का फैसला किया, तो उस टुकड़ी में जीवन प्रजापति भी थे. वहां इन्होंने लिट्टे से भी लोहा लिया था. 18 महीने तक श्रीलंका में ठहरे थे. इसके बाद उन्होंने कमांडों का कोर्स किया. फिर श्रीनगर में पोस्टिंग हो गयी. कारगिल के युद्ध में शामिल हुए और एक सैनिक का सपना साकार हो गया. वर्ष 2010 में वे हवलदार बने थे.
जीवन प्रजापति ने बताया कि वर्ष 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान ने कारगिल की एक चौकी पर कब्जा कर लिया था. कारगिल युद्ध में भारत की सेना ने पाकिस्तान के कब्जे से उस चौकी को मुक्त करा लिया. पाकिस्तान से वह चौकी एक बार फिर से छीन ली.
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जीवन प्रजापति को गोल्ड मेडल के अलावे नौ साल, 21 साल, समुद्री पार, कमांडो कोर्स एवं कारगिल युद्ध की लड़ाई के लिए उन्हें अलग-अलग मेडल मिले. श्री प्रजापति की पत्नी, तीन पुत्री व एक पुत्र हैं. फिलहाल वे सेवानिवृत्त होने के बाद बरही के एक बैंक में सुरक्षा गार्ड की नौकरी कर रहे हैं.
Posted By : Mithilesh Jha