Jharkhand News: मंजुरूल हसन खां, जिन्होंने अपना जीवन गरीबों, पीड़ितों व शोषितों की उत्थान के लिए लगा दिया था, लेकिन विधानसभा चुनाव जीतने के बाद जब वे शपथ लेने पटना पहुंचे, तो शपथ लेने से एक दिन पहले ही गोली मार कर इनकी हत्या कर दी गयी थी. मंजुरूल हसन खां अपने खेत में उपजे अनाज को गरीबों में बांट दिया करते थे. अकाल में इन्होंने सस्ती रोटी की दुकान खोली थी. इन्होंने महाजनी प्रथा व सूदखोरी का विरोध किया था.
जब कर रहे थे एमए
चितरपुर जैसे छोटे कस्बे में मंजुरूल हसन खां का जन्म 12 नवंबर 1927 को जमीनदार परिवार में हुआ था. इनकी प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक उर्दू मध्य विद्यालय चितरपुर से हुई थी. इसके बाद संत कोलंबस कॉलेज से मैट्रिक और उच्च शिक्षा प्राप्त की. इसके बाद वे अलीगढ़ यूनिवर्सिटी चले गये, जहां उन्होंने अर्थशास्त्र विषय से स्नातक किया. यहां वे कम्युनिष्ट पार्टी से प्रभावित होकर ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के सक्रिय सदस्य बन गये. 1947 में जब वे एमए की पढ़ाई कर रहे थे, तो उस समय एएमयू ने कम्युनिष्ट होने के आरोप में मंजुरूल, फिल्म अभिनेता बलराज सहानी, उर्दू के मशहूर कहानीकार अनवर अजीन, लंदन के मशहूर व्यापारी सहित पांच साथियों को निष्कासित कर दिया गया था.
अकाल में खोली थी सस्ती रोटी की दुकान
फिर वे कोलकाता गये, यहां भी उन्होंने गरीबों, दलितों के लिए लड़ाई लड़ी. एक दिन बंगाल विधानसभा में सरकार के खिलाफ पर्चा भी फेंका. पुलिस जब यहां इन्हें खोजने लगी, तो वे भाग कर चितरपुर आ गये. 1964 में उन्होंने अरबावे मिल्लत संस्था का गठन कर गरीबों की उत्थान के लिए कार्य करना शुरू किया. वे किसानों के साथ मिलकर खाली जमीन पर फसल लगा कर उपज के अधिकांश भाग को बांट दिया करते थे. 1967 में अकाल पड़ा, तो वे गरीबों का दु:ख नहीं देख पाये. वे बाजार से चावल, आटा, गेंहू आदि की खरीदारी कर लोगों को कम कीमत में देते थे. उन्होंने कई जगहों पर सस्ती रोटी की दुकान खुलवायी थी. मंजुरूल हसन खां अपने खेत में उपजे अनाज को गरीबों में बांट दिया करते थे. यहां तक अपने परिजनों को देने वाले अनाज भी वे गरीब राहगीरों को दे दिया करते थे. जिस कारण कई बार उन्हें अपने पिता से डांट सुननी पड़ती थी.
महाजनी प्रथा व सूदखोरी का किया विरोध
रामगढ़, बोकारो व हजारीबाग में कई जगहों पर महाजनी प्रथा व सूदखोरी चरम पर था. उन्होंने 1967-68 में इस प्रथा के विरोध में आंदोलन शुरू किया. इस बीच बोंगई के महाजन रामफल साव के जुल्म के खिलाफ लोग आंदोलन के लिए तैयार हुए और 14 जुलाई 1968 की रात में रामफल के घर में आग लगा दी गयी. जिसमें सात लोगों की मृत्यु हुई थी. इस घटना के मुख्य आरोपी मंजुरूल को बनाया गया था, लेकिन वे घटना स्थल पर मौजूद नहीं थे. इनके घर की कुर्की जब्ती की गयी. इसके बाद उन्होंने आत्मसमर्पण किया था.
जब शपथ लेने से पहले मार दी गयी गोली
मंजुरूल 1969 में सीपीआई के टिकट से रामगढ़ विधानसभा चुनाव लड़े, लेकिन हार गये. पुन: 1972 में जेल से ही जरीडीह व रामगढ़ विधासभा सीट के लिए अपना नामांकन कराया. चुनाव से दो दिन पूर्व उन्हें पेरोल पर छोड़ा गया. 12 मार्च 1972 को चुनाव परिणाम आया. जिसमें जरीडीह से मात्र 300 वोट से हार गये, जबकि रामगढ़ में उन्होंने बोदूलाल अग्रवाल को भारी मतों से हराया. इनकी जीत पर पूरे विधानसभा क्षेत्र में जश्न मनाया गया. 17 मार्च को वे पटना गये. जहां शपथ ग्रहण समारोह से एक दिन पहले 19 मार्च की रात इनके एमएलए क्वार्टर 102 में गोली मार कर इनकी हत्या कर दी गयी. इनकी हत्या की खबर से पूरे क्षेत्र में मातम पसर गया. इनका शव चितरपुर पहुंचने के बाद सुपुर्द-ए-खाक किया गया. जहां बड़ी संख्या में लोगों ने शामिल होकर नम आंखों से उन्हें विदाई दी. इसके बाद उपचुनाव में इनकी पत्नी सइदुन निशा को चुनाव लड़ाया गया, जहां वे चुनाव जीत गयी. इसके बाद इनके परिवार ने राजनीति से दूरी बना ली. इस संदर्भ में इनके भाई जफरुल हसन खां ने बताया कि भैया की हत्या से पूरा परिवार टूट गया था. जिस कारण हमारे परिवार के लोग राजनीति से दूर हो गये.
रिपोर्ट: सुरेंद्र कुमार/शंकर पोद्दार