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झारखंड के 12 हजार स्कूलों में बेंच-डेस्क का अभाव, जमीन पर बैठकर पढ़ते हैं विद्यार्थी

जिलों द्वारा शिक्षा परियोजना को दी गयी जानकारी के अनुसार, 12 हजार स्कूलों में बेंच-डेस्क की आवश्यकता है. जिलों को भेजे गये पत्र में कहा गया था कि पदाधिकारियों के क्षेत्र भ्रमण के दौरान यह बात सामने आयी है कि कई विद्यालयों में अब भी विद्यार्थी जमीन पर बैठ कर पढ़ाई करते हैं.

झारखंड के 12 हजार सरकारी विद्यालयों में बेंच-डेस्क की आवश्यकता है. इनमें से लगभग एक हजार स्कूलों में बेंच-डेस्क नहीं है. शेष विद्यालयों के पास जो बेंच-डेस्क है वह पर्याप्त नहीं है. राज्य के प्राथमिक से लेकर हाइस्कूल तक में बेंच-डेस्क की कमी है. विद्यार्थी जमीन पर बैठ कर पढ़ाई करते हैं. बरसात में जब जमीन भी भीग जाती है, तब नीचे बैठने में विद्यार्थियों को परेशानी होती है. प्राथमिक व मध्य विद्यालयों के पास इतनी राशि भी नहीं है कि वे अपने स्तर से बेंच-डेस्क क्रय कर सके. बेंच-डेस्क क्रय को लेकर विभाग के स्तर पर भी कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं है.

झारखंड शिक्षा परियोजना ने जिलों से मांगी जानकारी

झारखंड शिक्षा परियोजना ने जिलों से बेंच-डेस्क की आवश्यकता के संबंध में जानकारी मांगी थी. जिलों द्वारा शिक्षा परियोजना को दी गयी जानकारी के अनुसार, 12 हजार स्कूलों में बेंच-डेस्क की आवश्यकता है. जिलों को भेजे गये पत्र में कहा गया था कि पदाधिकारियों के क्षेत्र भ्रमण के दौरान यह बात सामने आयी है कि कई विद्यालयों में अब भी विद्यार्थी जमीन पर बैठ कर पढ़ाई करते हैं. प्राथमिक से लेकर प्लस टू स्कूल तक से बेंच डेस्क की जानकारी देने को कहा गया था.

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पांच वर्ष से स्कूलों को नहीं मिली है राशि

राज्य के सरकारी स्कूलों को पिछले पांच वर्ष से बेंच-डेस्क के लिए राशि नहीं मिली है. स्कूलों को वर्ष 2016-2017 में बेंच-डेस्क के लिए झारखंड शिक्षा परियोजना की ओर से राशि दी गयी थी. इसके बाद से विद्यालयों को राशि नहीं दी गयी है. पांच वर्ष पूर्व विद्यालयों को जो बेंच-डेस्क उपलब्ध कराये गये थे, उनमें से अधिकतर की स्थिति खराब है.

स्कूल हो गया मॉडल, पर बैठने तक की सुविधा नहीं

राज्य में केंद्रीय विद्यालयों की तर्ज पर खुले 89 मॉडल स्कूल में से अधिकतर स्कूलों में बेंच-डेस्क नहीं है. विद्यार्थी छठी से 12वीं कक्षा में पहुंच गये, पर बेंच-डेस्क नहीं मिला. बच्चे जमीन पर बैठ कर पढ़ाई कर रहे हैं. प्रथम चरण में वर्ष 2011 में 40 तथा 2013 में 49 मॉडल स्कूल खोले गये. स्कूलों का भवन तो बन गया, पर बेंच-डेस्क नहीं दिये गये.

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क्लास बन गया स्मार्ट, लेकिन जमीन पर ही बैठते है सिल्ली के बंताहजाम गांव के विद्यार्थी

स्कूल में सुविधा स्मार्ट क्लास की है परंतु आज भी सिल्ली के उच्च विद्यालय बंता हजाम में कक्षा नौवीं के 87 विद्यार्थी जमीन पर बैठ के पढ़ाई करते हैं. स्कूल में डेस्क बचे भी है लेकिन जगह के अभाव में स्कूल के पुराने भवन में धूल फांक रहे है. इस भवन को विभाग ने दो साल पहले ही बेकार और जर्जर घोषित कर दिया है. अभी जो भवन है उसकी क्षमता से ज्यादा विद्यार्थी स्कूल में हैं, जिसके चलते बेंच-डेस्क की जगह बच्चों को जमीन पर ही बैठना पड़ता है. सिल्ली प्रखंड का बंताहजाम गांव आदर्श गांव घोषित किया गया है. इसके बाद यहां के विद्यालय का यह हाल है.

दूसरी कक्षा तक के बच्चों के लिए बेंच-डेस्क नहीं

सिमडेगा के बानो प्रखंड स्थित राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय में एलकेजी से दूसरी क्लास तक के बच्चे जमीन पर दरी बिछा कर पढ़ाई करते हैं. स्कूल में 2005-06 में 11 बेंच-डेस्क और 2016-17 में 22 डेस्क बेंच की खरीदारी की गयी थी. इसके बाद लगभग पांच साल में डेस्क बेंच की खरीदारी नहीं की गयी है. विद्यालय में 80 बच्चे नामांकित है.

एक ही कमरे में 5वीं कक्षा तक की पढ़ाई

गुमला जिला के चैनपुर प्रखंड स्थित प्राथमिक विद्यालय तिलवारी में बेंच डेस्क नहीं है. इस कारण पहली से लेकर पांचवीं कक्षा तक के 30 छात्र एक ही कमरे में बैठकर पढ़ते हैं. सभी छात्र जमीन पर बैठते हैं और एक ही शिक्षक इन्हें पढ़ाते हैं. पूर्व में कभी भी यहां बेंच डेस्क की खरीद नहीं हुई है.

वर्ष 2010 में खरीदी गयी थी दरी, वह भी फट गयी

इटकी प्रखंड के कुंदी गांव स्थित नव सृजित प्राथमिक विद्यालय के बच्चे दरी पर बैठ कर पढ़ाई करते हैं. विद्यालय की स्थापना वर्ष 2009-10 में की गयी. विद्यालय में 46 विद्यार्थी नामांकित हैं. वर्ष 2016 में प्रखंड संसाधन केंद्र द्वारा मात्र तीन डेस्क-बेंच की आपूर्ति की गयी, लेकिन वर्तमान में एक डेस्क-बेंच ठीक है. ऐसी स्थिति में अधिकतर बच्चे दरी पर बैठ कर ककहरा सीखते हैं.

रिपोर्ट- सुनील कुमार झा, रांची

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