स्थानीयता का मुद्दा राज्य में एक बार फिर गरमाया है. 1932 के खतियान को लेकर सियासत में घमसान मचा है. राज्यपाल रमेश बैस ने 1932 के खतियान के आधार पर झारखंडी पहचान से संबंधित बिल वापस कर दिया है. राज्यपाल ने इसके कुछ प्रावधान को लेकर सवाल उठाये हैं. इधर राज्यपाल द्वारा बिल वापस किये जाने के बाद सत्ता पक्ष ने हमला किया है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से लेकर झामुमो ने राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाये और भाजपा पर निशाना साधा है. सत्ता पक्ष के नेताओं ने कहा है कि भाजपा को आदिवासी-मूलवासी से लेना-देना नहीं है़ इनको संवैधानिक अधिकार नहीं देना चाहती है, उधर विपक्षी भाजपा के नेता सत्ता पक्ष पर भ्रम फैलाने और गलत तरीके से नीति लाने की बात कह रहे हैं. विपक्ष का कहना है कि सरकार की मंशा यहां के लोगों को अधिकार देने की है ही नहीं.
भाजपा को प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने कहा है कि इस सरकार को आदिवासी-मूलवासी की चिंता नहीं है़ इनको कोई लेना-देना नहीं है़ केवल नीतियों को उलझाने का काम किया जा रहा है़ इनको झारखंडियों की चिंता होती, तो यहां की सरजमीं पर फैसला होता. लेकिन मामला टालने के लिए असंवैधानिक तरीके से काम किया जा रहा है. इनकी पूरी नीति ही संवैधानिक नहीं है. श्री प्रकाश ने कहा कि सरकार राजनीतिक स्टंट कर रही है़ वर्ष 2001 में अदालत ने इस नीति को असंवैधानिक बताया था, इसके बावजूद यह सरकार इसमें कोई सुधार नहीं की़ हेमंत सोरेन की सरकार यहां के नौजवानों की पीड़ा नहीं समझ रही है़ नौजवान रोजगार के लिए भटक रहे है़ं
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने कहा है कि 1932 खतियान का मामला झारखंडी भावना से जुड़ा हुआ है. राज्यपाल ने बिल वापस कर दिया है. यह उनका संवैधानिक अधिकार है. सरकार राज्यपाल की रिपोर्ट का अध्ययन करेगी़ इसके बाद फैसला होगा. राज्यपाल ने जिन प्रावधानों में त्रुटियां बतायी है, उसको सुधारा जायेगा. श्री ठाकुर ने कहा कि राज्य के लोगों को उनका अधिकार मिलेगा. सरकार इस नीति को लागू करने के लिए वचनबद्ध है. हम किसी कीमत पर समझौता नहीं करनेवाले हैं. भाजपा राजनीति से प्रेरित होकर काम कर रही है. ये लोग शुरू से ही 32 खतियान के विरोधी रहे हैं, जिससे राज्य के आदिवासी युवकों का भविष्य प्रभावित हो रहा है.
भाजपा की राष्ट्रीय मंत्री सह रांची की मेयर डॉ आशा लकड़ा ने कहा कि स्थानीयता के लिए वर्तमान सरकार ने 1932 के खतियान को आधार बनाया है. इस मामले को लेकर विधानसभा से विधेयक पारित किया जा चुका है. राज्य सरकार स्वयं इस कानून को लागू करने के लिए सक्षम है. इस कानून को संविधान के नौवीं अनुसूची में शामिल करने की कोई आवश्यकता नहीं है. भाजपा 1932 के खतियान का समर्थन करती है. मुख्यमंत्री से आग्रह है कि झारखंड राज्य में जल्द से जल्द 1932 का खतियान आधारित स्थानीय नीति लागू किया जाये.
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने बीजेपी पर जम कर प्रहार किया. उन्होंने कहा कि बीजेपी की चाल को जनता समझ चुकी है. झारखंड शहीदों की भूमि है. यहां के लोग सीधे-साधे सरल हैं. कैबिनेट की बैठक होती है, तो विपक्ष के पेट में दर्द होने लगता है कि नया क्या निर्णय लेनेवाले हैं. उन्होंने सीएम हेमंत सोरेन के नेतृत्व में राज्य के आगे बढ़ने की बात कही.
कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने कहा है कि राज्यपाल को वापस करने का अधिकार है. अगर खामियां हैं, तो दूर किया जायेगा. सरकार को तत्काल इस पर पहल करनी चाहिए. 1932 खतियान आदिवासी-मूलवासी की आत्मा है. झारखंडी अपनी पहचान से समझौता नहीं कर सकते हैं. झारखंड में कुछ लोग इस नीति को कानूनी दांव-पेच में फंसाना चाहते हैं.
राज्यपाल द्वारा 1932 आधारित स्थानीय नीति विधेयक से जुड़े प्रस्ताव को वापस करने को लेकर झामुमो राजनीति कर रही है. यह आरोप आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने लगाया है. उन्होंने कहा कि आजसू खतियान आधारित स्थानीय नीति के साथ नियोजन नीति लागू करने की पक्षधर रही है. राज्य सरकार इस मुद्दे को लेकर कभी भी गंभीर नहीं रही है और ना ही विधानसभा में इस विषय पर कोई गंभीर चर्चा ही करायी गयी. आजसू पार्टी शुरू से ही कहती रही है कि झामुमो स्थानीय नीति को लेकर यहां के लोगों के साथ राजनीति कर रही है. जनता के साथ खिलवाड़ कर रही है.
टीएसी के पूर्व सदस्य रतन तिर्की ने कहा कि राज्यपाल को पांचवीं अनुसूची के अनुपालन पर ही आपत्ति है, इसलिए उन्होंने स्थानीय नीति को लौटाया है. पार्टियों को इस पर राजनीति नहीं करनी चाहिए. 2002 में झारखंड हाइकोर्ट ने कहा था कि झारखंड सरकार चाहे तो अपनी स्थानीय नीति बना सकती है, लेकिन राज्यपाल ने इसे वापस कर दिया है. यह राज्य के आदिवासियों और खतियानी झारखंडियों के संवैधानिक अधिकारों का हनन है. झारखंड सरकार को स्थानीय नीति पर जल्द अध्यादेश लाना चाहिए. भाजपा, कांग्रेस, आजसू, राजद व वामपंथी दलों को भी अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए.
राजद के प्रदेश अध्यक्ष संजय सिंह यादव ने कहा है कि पूरे मामले में भाजपा राजनीति कर रही है. यहां की जनता को उसका हक-अधिकार नहीं देना चाहती है. नौवीं अनुसूची में शामिल करने का मामला है, राज्यपाल को तो इसे सीधे केंद्र को भेजना चाहिए. कोई खामी होती, तो वहां से बात आती, लेकिन भाजपा खेल करने में लगी है. भाजपा के 12 सांसद हैं, उनको यहां के लोगों के हक के लिए संसद में आवाज उठाना चाहिए. भाजपा इस राज्य में जनता के लिए कोई नीति नहीं बनने देना चाहती है.
भाकपा माले के राज्य सचिव मनोज भक्त ने कहा कि विधानसभा से पारित विधेयक को लौटाना राज्यपाल का अधिकार है, लेकिन इसे वापस भेजे जाने से झारखंड के युवाओं को आघात लगा है. उन्होंने कहा कि राज्यपाल को झारखंड की विशिष्टताओं पर गौर करना चाहिए. भक्त ने कहा कि भाजपा झारखंडी युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है.
झारखंड प्रदेश आदिवासी कांग्रेस के उपाध्यक्ष प्रभाकर तिर्की ने कहा कि राज्यपाल फाइल लौटाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण और राजनीति से प्रेरित है. राज्य की स्थानीय जनता के साथ फिर धोखा है. पांचवीं अनुसूची का क्षेत्र होने के नाते राज्यपाल की जिम्मेवारी है कि यहां के आदिवासियों और अन्य स्थानीय लोगों के विकास की नीति तय करें. यह शर्म की बात है कि राज्य सरकार और राजभवन की राजनीति का शिकार आम जनता हो रही है. झारखंड की आदिवासी और स्थानीय जनता के विकास के लिए ठोस नीति आवश्यक जरूरी है. यह कैसे होगा, इसे राजभवन और राज्य सरकार को तय करना है.
आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने बयान जारी कर कहा है कि वही हुआ, जो होना था. पहले नियोजन नीति फुस्स हुई और अब 1932 खतियान वाली स्थानीयता नीति लटक गयी. हमने पहले ही कहा था कि 1932 का खतियान कभी लागू नहीं हो सकता, इसलिए वैकल्पिक व्यवस्था अर्थात प्रखंडवार नियोजन नीति अविलंब लागू की जाये.
आदिवासी समन्वय समिति के संयोजक लक्ष्मी नारायण मुंडा ने बयान जारी कर कहा है कि हेमंत सरकार की स्थानीय नीति विधेयक को राज्यपाल द्वारा लौटाया जाना अप्रत्याशित नहीं है. हेमंत सोरेन ने भी विधानसभा में कहा था कि 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति नहीं बनायी जा सकती है, उसी को उन्होंने अपनी राजनीति चमकाने के लिए इस्तेमाल किया. यदि सरकार गंभीर है, तो जिन बिंदुओं पर आपत्ति की जाती है, उन्हें दूर कर स्थानीय नीति पर विधेयक लाना चाहिए था.