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आदिवासी सेंगेल अभियान का राजभवन के समक्ष सत्याग्रह, रखी मांग, सीएनटी एक्ट में संशोधन को निरस्त करें राज्यपाल
रांची: आदिवासी सेंगेल अभियान, सेंगेल छात्र मोरचा, झारखंड मूलवासी मंच, अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद, दलित युवा मंच, केंद्रीय सरना समिति, अखिल भारतीय माझी परगना मांडवा और अन्य जनसंगठनों के सदस्य राजभवन के समक्ष सत्याग्रह पर बैठे व राज्यपाल द्रौपदी मुरमू से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन भी सौंपा़ राज्यपाल से मांग की गयी कि वे […]
रांची: आदिवासी सेंगेल अभियान, सेंगेल छात्र मोरचा, झारखंड मूलवासी मंच, अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद, दलित युवा मंच, केंद्रीय सरना समिति, अखिल भारतीय माझी परगना मांडवा और अन्य जनसंगठनों के सदस्य राजभवन के समक्ष सत्याग्रह पर बैठे व राज्यपाल द्रौपदी मुरमू से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन भी सौंपा़ राज्यपाल से मांग की गयी कि वे वर्तमान सरकार की जनविरोधी सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधित कानून को अविलंब रद्द करे़ं संविधान की पांचवीं अनुसूची की शक्तियां 244(1), 5(1)(2) का प्रयोग करते हुए सीएनटी-एसपीटी कानून में हुए गलत संशोधन, गलत स्थानीयता नीति और अन्यायपूर्ण विकास नीति को निरस्त कर आदिवासियों व मूलवासियों की रक्षा करे़ं.
सत्याग्रह में आदिवासी सेंगेेल अभियान के अध्यक्ष पूर्व सांसद सालखन मुरमू, कुशवाहा राकेश महतो, विदेशी महतो, डॉ बिरसा उरांव, सुमित्रा मुरमू, मीरा कुमारी मेहता, दिगंबर कुमार मेहता, महेंद्र प्रसाद वर्मा, मनोज तिर्की, मार्शल बारला, दीपनारायण गागराई, रंजीत बाउरी, हराधन महतो व अन्य मौजूद थे़.
सात अप्रैल को मोरहाबादी मैदान में जुटेंगे देश भर से आदिवासी : सालखन मुरमू ने बताया कि सात अप्रैल को सरकार गिराओ, झारखंड बचाओ के मुद्दे पर पूरे देश से आदिवासी मोरहाबादी मैदान में जुटेंगे़ आदिवासी विधायकों के साथ मूलवासी विधायकों को कुछ करने या इस्तीफा देने के लिए बाध्य किया जायेगा़ पेरिस ग्लोबल समिट में शामिल सभी 195 देशों को झारखंड में प्रकृति-पर्यावरण के खिलाफ चल रही गतिविधियों की जानकारी देंगे़.
निशाने पर रहे विधायक और टीएसी के सदस्य
हम सभी 28 आदिवासी विधायकों को दोषी मानते हुए उनकी बरखास्तगी की मांग करते हैं क्योंकि इन्होंने सरकारी षडयंत्र में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग कर हमारे जीने के अधिकार (अनुच्छेद 21) पर हमला बोला है़ इसलिए हम आत्मरक्षा के अधिकार और राइट टू रिकॉल के नैतिक अधिकारों को अमल कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट भी जाने के लिए मजबूर है़ं यदि टीएसी में यह डेथ वारंट पारित नहीं होता, तो इसका प्रस्ताव विधानसभा में भी नहीं आ सकता था़ सीएनटी एक्ट की धारा 21 और एसपीटी एक्ट की धारा 13 में किये संशोधनों से कृषि भूमि का स्वरूप बदल कर गैर कृषि (व्यवसायिक) हो गया है, जिससे धारा छह के तहत उपलब्ध सुरक्षा कवच समाप्त हो गया है़ संशोधन के बाद अब गांवों में बची आदिवासी जमीन की भी लूट होगी़
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