चतरा के टंडवा स्थित आम्रपाली प्रोजेक्ट में व्यापारियों से की जा रही प्रति टन 254 रुपये की वसूली में उग्रवादी संगठन तृतीय प्रस्तुति कमेटी (टीपीसी), सीसीएल के अधिकारी, पुलिस और पत्रकारों के अलावा दूसरों को भी हिस्सा मिलता है. लेवी के हिस्सेदारों में सीसीएल के तत्कालीन जीएम अजीत कुमार ठाकुर का नाम भी शामिल है. नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआइए) ने विनीत कुमार द्वारा दायर डिस्चार्ज पिटीशन पर सुनवाई के दौरान विशेष न्यायाधीश की अदालत में टीपीसी उग्रवादी संगठन द्वारा वसूली और बंटवारे का यह ब्योरा पेश किया है.
साथ ही बीकेबी ट्रांसपोर्ट कंपनी के उपाध्यक्ष द्वारा लेवी के रूप में उग्रवादी संगठन टीपीसी को 30 लाख रुपये देने के पर्याप्त सबूत होने की बात कही है. एनआइए के विशेष न्यायाधीश की अदालत ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद विनीत कुमार के डिस्चार्ज पिटीशन की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अभियुक्त के खिलाफ पहली नजर में काफी सबूत हैं.
विनीत कुमार की ओर से एनआइए द्वारा दायर पूरक आरोप पत्र में वर्णित तथ्यों का हवाला देते हुए दलील दी गयी कि उग्रवादी संगठन टीपीसी द्वारा कोयला व्यापारियों और ट्रांसपोर्टरों से रंगदारी वसूली की गयी थी. विनीत कुमार भी इसी रंगदारी वसूली की व्यवस्था का शिकार हुआ. उसने अपनी व्यापारिक गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने के लिए मजबूरी में उग्रवादी संगठन को पैसे दिये. इसलिए याचिकादाता की इस मजबूरी को टेरर फंडिंग करने में शामिल होने के रूप में नहीं देखा जा सकता है. उसकी इस मजबूरी की वजह से उसे टेरर फंडिंग में अभियुक्त बनाया जाना गलत है. याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों को बतौर उदाहरण भी पेश किया और आरोप मुक्त करने का अनुरोध किया.
एनआइए की ओर से डिस्चार्ज पिटीशन का विरोध करते हुए यह कहा गया कि अभियुक्त ने उग्रवादी संगठन टीपीसी को तीन किस्तों में लेवी के रूप में 30 लाख रुपये दिये थे. अभियुक्त मेसर्स विकास कंपनी के साथ साजिश में शामिल था. इस कंपनी का उग्रवादी संगठन टीपीसी के साथ मधुर संबंध है. विनीत ने लेवी की रकम का भुगतान केबीके ट्रांसपोर्ट कंपनी के कर्मचारी गोविंद खंडेलवाल के माध्यम से किया था.
खंडेलवाल ने सीआरपीसी की धारा-164 के तहत कोर्ट में दिये गये बयान में इसकी पुष्टि की है. एनआइए की जांच-पड़ताल के दौरान विनीत कुमार ने कभी इस सच को स्वीकार नहीं किया. एनआइए की ओर से लेवी वसूली की चर्चा करते हुए कोर्ट को यह जानकारी दी गयी कि आम्रपाली प्रोजेक्ट शुरू होते वक्त ओवर बर्डन (ओबी) हटाने और कोयला निकालने का काम मेसर्स बीआरजी ग्रुप को मिला था. स्थानीय विरोध की वजह से कंपनी अपना काम शुरू नहीं कर पा रही थी.
इसके बाद कंपनी के प्रतिनिधि रघुराम रेड्डी ने टीपीसी नेता अकरम जी से संपर्क कर मामले का हल निकालने का अनुरोध किया. इसके बाद अकरम जी ने टीपीसी के अन्य सदस्यों के साथ मिल कर समस्या का हल निकालने के लिए हुंबी गांव में बैठक बुलायी. इसमें समस्या का समाधान निकालने और ग्रामीणों के हितों की रक्षा के नाम पर समिति बनायी गयी. टीपीसी ने समिति का नाम शांति सह संचालन समिति रखा.
समिति में हर गांव के सात-सात लोगों को शामिल किया गया. बैठक में किये गये फैसले के आलोक में विंगलाट, सेन्हा, कुमरांग खुर्द, कुमरांग कला और उदसू में शांति सह संचालन समिति का गठन किया गया. समिति के माध्यम से कोयला व्यापारियों और ट्रांसपोर्टरों से प्रति टन 254 रुपये की दर से लेवी वसूली का फैसला किया गया. साथ ही इसके बंटवारे का फार्मूला भी तय किया गया. बंटवारे की रकम में मजदूरों, पुलिस, प्रेस, जमीन मालिक, बेरोजगार मजदूर और सीसीएल के अधिकारी का भी हिस्सा तय किया गया. टीपीसी द्वारा वसूली गयी राशि में सीसीएल के तत्कालीन जीएम अजीत कुमार ठाकुर और कर्मचारी सुभान मियां की हिस्सेदारी भी निर्धारित की गयी.