19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

…और इस तरह दिसंबर 1691 में बनकर तैयार हुआ रांची का जगन्नाथपुर मंदिर, इतना ही पुराना है रथ यात्रा का इतिहास

Ranchi, Rath Yatra, Jagannathpur : रांची : बात 17वीं शताब्दी की है. बड़कागढ़ में नागवंशी राजा हुआ करते थे ठाकुर एनीनाथ शाहदेव. एक बार वह अपने नौकर के साथ भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए जगन्नाथपुरी (आज का पुरी) गये थे. यात्रा के दौरान ठाकुर एनीनाथ शाहदेव के चाकर में ऐसी भक्ति जागी कि वह भगवान जगन्नाथ का परम भक्त बन गया. कई दिनों तक वह भगवान जगन्नाथ की उपासना करता रहा.

रांची : बात 17वीं शताब्दी की है. बड़कागढ़ में नागवंशी राजा हुआ करते थे ठाकुर एनीनाथ शाहदेव. एक बार वह अपने नौकर के साथ भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए जगन्नाथपुरी (आज का पुरी) गये थे. यात्रा के दौरान ठाकुर एनीनाथ शाहदेव के चाकर में ऐसी भक्ति जागी कि वह भगवान जगन्नाथ का परम भक्त बन गया. कई दिनों तक वह भगवान जगन्नाथ की उपासना करता रहा.

उपासना में लीन राजा का नौकर एक रात भूख से व्याकुल हो उठा. उसने ईश्वर से प्रार्थना की कि वह उसकी भूख मिटायें. भगवान जगन्नाथ ने अपने भक्त की पुकार सुनी और अपनी भोग की थाली उसके सामने लाकर रख दी. नौकर भगवान को पहचान नहीं पाया. उसने थाली से भोग उठाकर खाया. अपनी भूख मिटाकर वह फिर से सो गया.

सुबह उठा, तो नौकर ने अपने राजा को रात की पूरी कहानी सुनायी. कहते हैं कि उसी रात भगवान जगन्नाथ ठाकुर एनीनाथ शाहदेव के सपने में आये. भगवान ने राजा से कहा कि अपने घर लौटने के बाद वह उनके (भगवान जगन्नाथ के) विग्रह की स्थापना करे और उसकी पूजा-अर्चना शुरू करे. ठाकुर एनीनाथ जब वहां से लौटे, तो मंदिर के निर्माण की शुरुआत करवायी.

Undefined
...और इस तरह दिसंबर 1691 में बनकर तैयार हुआ रांची का जगन्नाथपुर मंदिर, इतना ही पुराना है रथ यात्रा का इतिहास 4

कहते हैं कि ठाकुर एनीनाथ शाहदेव ने पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर ही रांची में भी मंदिर के निर्माण के आदेश दिये. शिल्पकारों ने उनके कहे अनुसार रांची के धुर्वा में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण किया. 25 दिसंबर, 1691 को मंदिर बनकर तैयार हो गया. मुख्य शहर रांची से करीब 10 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर ठीक वैसा ही मंदिर बना, जैसा पुरी में था. मंदिर की बनवाट बिल्कुल वैसी ही थी, लेकिन आकार थोड़ा छोटा था.

मंदिर का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद यहां पूजा-अर्चना के लिए बाकायदा एक व्यवस्था बनायी गयी. एनीनाथ शाहदेव के उत्तराधिकारी लाल प्रवीर नाथ शाहदेव की मानें, तो मंदिर की स्थापना के साथ ही मानवीय मूल्यों की भी यहां स्थापना की गयी. हर वर्ग के लोगों को इस मंदिर से जोड़ा गया. अलग-अलग काम का जिम्मा अलग-अलग जाति के लोगों को सौंपा गया.

इसके पीछे ठाकुर एनीनाथ शाहदेव की मंशा समाज को जोड़ने की थी. इसलिए उन्होंने हर वर्ग के लोगों को पूजा की कोई न कोई जिम्मेदारी दी. उरांव परिवार को मंदिर की घंटी देने की जिम्मेदारी मिली, तो तेल व भोग की सामग्री का इंतजाम भी उन्हें ही करने के लिए कहा गया. बंधन उरांव और बिमल उरांव आज भी इस जिम्मेदारी को निभा रहे हैं.

Undefined
...और इस तरह दिसंबर 1691 में बनकर तैयार हुआ रांची का जगन्नाथपुर मंदिर, इतना ही पुराना है रथ यात्रा का इतिहास 5

धुर्वा के जगन्नाथपुर स्थित मंदिर पर झंडा फहराने, पगड़ी देने और वार्षिक पूजा की व्यवस्था करने के लिए मुंडा परिवार को कहा गया. रजवार और अहिर जाति के लोगों को भगवान जगन्नाथ को मुख्य मंदिर से गर्भगृह तक ले जाने की जिम्मेवारी दी गयी. बढ़ई परिवार को रंग-रोगन की जिम्मेवारी सौंपी गयी. लोहरा परिवार से कहा गया कि वह रथ की मरम्मत का जिम्मा संभाले. कुम्हार परिवार को मिट्टी के बरतन उपलब्ध कराने के लिए कहा गया.

ठाकुर एनीनाथ शाहदेव के राज में जो व्यवस्था बनी थी, उसी के अनुरूप आज भी सभी जाति के लोग अपनी-अपनी जिम्मेवारियों का निर्वहन कर रहे हैं. झारखंड की राजधानी रांची के धुर्वा स्थित जगन्नाथपुर में जो भगवान जगन्नाथ का मंदिर है, वहां से हर साल आषाढ़ माह में रथ यात्रा निकलती है. इसमें भारी संख्या आदिवासी एवं गैर-आदिवासी भक्त शामिल होते हैं.

यहां का आयोजन ओड़िशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर की रथ यात्रा से किसी भी मायने में कम नहीं है. यहां विशाल मेला भी लगता है. इसमें आसपास के इलाकों के श्रद्धालु आते हैं, तो आसपास के जिलों ही नहीं, राज्यों से भी कारोबारी अपना सामान बेचने यहां आते हैं. कई ऐसी चीजें सिर्फ जगन्नाथपुर के मेला में ही मिलती है, जो आम दिनों में बाजार में उपलब्ध नहीं होता.

Undefined
...और इस तरह दिसंबर 1691 में बनकर तैयार हुआ रांची का जगन्नाथपुर मंदिर, इतना ही पुराना है रथ यात्रा का इतिहास 6

इस वर्ष यानी वर्ष 2020 में व्यापारियों से लेकर मेला घूमने आने वालों तक में निराशा है. कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से इस वर्ष मेला लगाने की इजाजत प्रशासन ने नहीं दी. रथ यात्रा भी इस बार धूमधाम से नहीं निकलेगी. सिर्फ परंपरा का निर्वहन किया जायेगा. 1692 से अब तक यह पहला मौका है, जब रांची में भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा का आयोजन नहीं हो रहा है.

Posted By : Mithilesh Jha

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें