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बैंक वाली दीदी: झारखंड में घर बैठे बैंकिंग सेवाएं दे रहीं बीसी सखियां, बैंकों का चक्कर लगाने से मिली मुक्ति

झारखंड में 4950 से अधिक महिलाएं बैंकिंग सेवाओं से जुड़कर न सिर्फ आत्मनिर्भर बन रही हैं, बल्कि ग्रामीणों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरकर अपनी अलग पहचान भी बना रही हैं. अब गांव वाले इन्हें बैंक वाली दीदी कहते हैं. ग्रामीणों को अब उनकी चौखट पर ही बैंकिंग सेवाएं मिल रही हैं.

रांची: झारखंड के 24 जिलों में ऐसे कई गांव हैं, जहां अभी भी बैंकों की पहुंच नहीं है. लिहाजा बैंकिंग सेवाओं के लिए सुदूरवर्ती क्षेत्रों के लोगों को बैंकों का चक्कर लगाना पड़ता है. इससे ग्रामीणों को मुक्ति दिलाने के लिए झारखंड सरकार की ओर से ग्रामीण महिलाओं को बैंकिंग सेवाओं को लेकर प्रशिक्षित किया गया. प्रशिक्षण के बाद अब ये महिलाएं बीसी सखी बनकर गांवों में ही बैंकिंग सेवाएं दे रही हैं. इससे न सिर्फ उनकी जिंदगी संवर गयी, बल्कि नयी पहचान भी मिली. इसके साथ ही गांव के लोगों की परेशानी भी दूर हो गयी. इन्हीं बीसी सखियों में से एक हैं चिंतामणि देवी. रांची की चिंतामणि के चेहरे पर बिखरी मुस्कान उनकी कामयाबी की कहानी कह रही है.

झारखंड में 4950 से अधिक महिलाएं दे रही हैं सेवा

झारखंड में 4950 से अधिक महिलाएं बैंकिंग सेवाओं से जुड़कर न सिर्फ आत्मनिर्भर बन रही हैं, बल्कि ग्रामीणों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरकर अपनी अलग पहचान भी बना रही हैं. अब गांव वाले इन्हें बैंक वाली दीदी कहते हैं. ग्रामीणों को अब उनकी चौखट पर ही बैंकिंग सेवाएं मिल रही हैं. पेंशनधारकों को इसका सर्वाधिक लाभ मिल रहा है. खासकर दिव्यांगों व बुजुर्गों को काफी राहत मिली है. पेंशन के लिए उन्हें दूर नहीं जाना पड़ रहा है. गांव में ही घर बैठे सुविधा मिल जा रही है. सखी मंडल की दीदियां बैंक वाली दीदी बनकर इलाके में सेवा दे रही हैं.

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बैंक वाली दीदी चिंतामणि देवी

बीसी सखी चिंतामणि देवी ने अपने गांव-पंचायत में एक गृहिणी के साथ-साथ एक कुशल बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट सखी के रूप में पहचान बनायी है. रांची जिले के बुढ़मू प्रखंड के कटंगदिरी गांव की चिंतामणि को आज लोग बैंक वाली दीदी कहकर बुलाते हैं. अब कटंगदिरी गांव के ग्रामीणों को बैंक के चक्कर नहीं लगाने पड़ते. उनका बैंक अब चिंतामणि बन चुकी हैं. पहले बैंक के कार्यों को लेकर ग्रामीण परेशान रहते थे. अब इनकी परेशानी दूर हो गयी है. घर की देहरी से बाहर निकलकर चिंतामणि भी बीसी सखी के रूप में अच्छी आमदनी कर परिवार का सहयोग कर रही हैं.


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लाभार्थियों को घर बैठे मिल रहा पैसा

चिंतामणि की आत्मनिर्भरता की कहानी गुलाब जल स्वयं सहायता समूह से जुड़ने के साथ शुरू हो गयी. इसके बाद चिंतामणि जेएसएलपीएस (झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रोमोशन सोसाइटी), ग्रामीण विकास विभाग (झारखंड) से मिले सहयोग एवं प्रशिक्षण की बदौलत आज बैंक ऑफ इंडिया में बीसी सखी के रूप में कार्य करने लगीं. अब वह गांव-गांव घूमकर लोगों को बैंकिंग सेवाएं दे रही हैं. पैसे जमा करना हो या निकासी, समूह का ट्रांज़ेक्शन हो, खाता खोलना हो, पेंशन एवं बीमा सेवाओं का लाभ लेना हो. इसके लिए अब ग्रामीणों को बैंक का चक्कर नहीं लगाना पड़ता है. चिंतामणि ये सेवाएं गांव में ही दे दे रही हैं. इससे उनकी सामाजिक प्रति‍ष्ठा भी बढ़ी है. आज उन्हें लोग उनके नाम से जानते हैं. बैंक वाली दीदी चिंतामणि के रूप में इलाके में प्रसिद्ध हो गयी हैं. पहले की तरह पहचान की मोहताज नहीं रह गयी हैं.

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बैंकों का चक्कर लगाने से मुक्ति

बैंकिंग सेवाओं से जहां चिंतामणि ने अपनी आजीविका सुनिश्चित की, वहीं बीसी सखी की सेवाओं से सबसे ज्यादा फायदा पेंशन धारकों को हुआ है. चाहे वह वृद्धावस्था पेंशन हो या दिव्यांग पेंशन. अब लाभार्थियों को उनका पैसा घर बैठे मिल रहा है. पहले की तरह उन्हें बैंक की लंबी लाइन से मुक्ति मिल गयी. बैंकों का चक्कर लगाने से भी राहत मिल गयी है.

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बीमा के प्रति जागरूक हुए ग्रामीण

चिंतामणि जैसी करीब 4950 से ज्यादा झारखंड की ग्रामीण महिलाओं को जेएसएलपीएस द्वारा प्रशिक्षित कर बीसी सखी के रूप तैयार किया गया है, जो गांव-गांव, पंचायत-पंचायत बैंकिंग एवं बीमा सेवाएं पहुंचा रही हैं. बीसी सखी की वजह से अब ग्रामीणों में बैंकिंग एवं बीमा के प्रति जागरूकता बढ़ी है.

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