Basant Panchami 2022: झारखंड में पांच फरवरी को सरस्वती पूजा है. इसकी तैयारी अंतिम चरण में है. चौक-चौराहों और मोहल्ले-टोलों में मंडप बनाये जा रहे हैं. कई बड़े क्लब गुरुवार से ही मंडप में मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित करते दिखे. कोरोना के कारण इस वर्ष भी पहले की तुलना में मंडप नहीं बन रहे. मूर्तिकारों का कहना है कि इस वर्ष सरस्वती पूजा का बाजार बिलकुल ठप है. यही कारण है कि मूर्तिकार, कारीगर और साज-सज्जा के काम से जुड़े कर्मियों को रोजगार के दूसरे विकल्पों को अपनाना पड़ रहा है.
कोरोना काल से पहले एक मूर्तिकार को मां सरस्वती की 350-400 प्रतिमा का ऑर्डर मिलता था. इस वर्ष प्रतिमाओं का ऑर्डर आधा है. साथ ही कोई गाइडलाइन जारी नहीं होने से कई आयोजन समितियों ने तैयारी नहीं की. मूर्तिकारों का कहना है कि सरस्वती पूजा वर्ष की शुरुआत का ऐसा अवसर होता है, जिससे दो-तीन माह तक परिवार का भरण-पोषण करने के लिए कमाई हो जाती थी. पिछले वर्ष इससे अच्छी स्थिति थी.
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मूर्तिकार अजय पाल कहते हैं कि कोरोना काल की वजह से मूर्तिकला का काम ठप हो गया है. पहले सरस्वती पूजा में 300 बड़ी और 200 से अधिक छोटी प्रतिमाएं गढ़ी जाती थी़ इन्हें तैयार करने में 12-14 कारीगर की जरूरत पड़ती थी़ स्वरोजगार के साथ दूसरों को भी रोजगार मिलता था, लेकिन कोरोना ने सबकुछ बदल दिया है़ इस वर्ष छोटी-बड़ी मिलकार सिर्फ 164 प्रतिमाएं ही बन सकी हैं. आयोजन समिति के सदस्य देर से ऑर्डर देने पहुंच रहे हैं. इतना कम समय में प्रतिमा निर्माण संभव नहीं है़ कई लोग दुर्गा पूजा के समय बनी सरस्वती प्रतिमा को ही ले जा रहे हैं.
कोरोना काल की वजह से बाजार महंगा हो गया है. बांस, पुआल, गंगा मिट्टी, स्थानीय मिट्टी, पेंट, सज्जा की सामग्रियों की कीमत 30-35 फीसदी तक बढ़ गयी है. पहले कई चीजों पर जीएसटी नहीं लगता था, लेकिन अब देना पड़ रहा. इससे पांच फीट की एक प्रतिमा को पूरी तरह तैयार करने पर 10-12 हजार रुपये तक खर्च हो जाते हैं. वहीं छात्र समूह के लिए प्रतिमा की कीमत कम रखी जाती है.
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मूर्तिकारों का कहना है कि सरस्वती पूजा के लिए प्रतिमा निर्माण छठ पूजा के बाद ही शुरू हो जाता था. इससे दो-ढाई महीने में ऑर्डर का काम पूरा हो जाता था. इस वर्ष प्रतिमा निर्माण का काम दिसंबर के अंतिम सप्ताह में शुरू हुआ. वह भी दर्जनभर प्रतिमा की बुकिंग के साथ. इधर, जनवरी में कोरोना की तीसरी लहर के कारण कई कारीगर रांची नहीं लौट सके. इस कारण शहर के मूर्तिकारों ने भी उम्मीद से कम ऑर्डर की बुकिंग की.
मूर्तिकार स्थायी मिट्टी से मूर्ति बनाते हैं. वहीं अंतिम रूप देने के लिए गंगा मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है. अभी एक ट्रैक्टर मिट्टी मंगाने का खर्च 3000 से बढ़कर 5000 रुपये हो गया है. वहीं, गंगा मिट्टी की प्रत्येक बोरी पर 400 रुपये कीमत बढ़ गयी है. कोलकाता से गंगा मिट्टी मंगाने पर छह प्रतिशत जीएसटी देना पड़ रहा है. इससे एक बोरी गंगा मिट्टी पर 500 रुपये अधिक की कीमत लग रही है़ साथ ही पेंट, प्रतिमा सज्जा की सामग्री भी पहले की तुलना में 20-25 फीसदी महंगी हो गयी है.
कोरोना काल ने मूर्तिकला से जुड़े कारीगरों के रोजगार का काफी प्रभावित किया है़ वर्षों से प्रतिमा निर्माण में जुटे कारीगर बेरोजगार हो गये. यही कारण है कि परिवार का पेट पालने के लिए किसी ने सब्जी बेची, तो किसी ने समोसा-आलू चॉप का ठेला लगाया़ कई कारीगरों को राजमिस्त्री का काम सीखना पड़ा. कइयों ने दूसरे के खेत में मजदूरी की़ समीर पाल कहते हैं कि कोरोना काल में मूर्ति निर्माण का काम बंद हो गया था. विवश होकर अपने घर कोलकाता लौटना पड़ा. परिवार का पेट पालने के लिए ठेला पर समोसा-आलू चॉप बेचने लगा था़
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रांची के आर्य पुरी शिव पंच मंदिर हिमालय परिवार बसंत पंचमी के अवसर पर सरकारी गाइडलाइन के अनुरूप पहाड़ी बाबा की भव्य तिलक शोभायात्रा निकालेगा. शोभायात्रा मंदिर परिसर से दोपहर 2:30 बजे निकाली जायेगी. शोभायात्रा मंदिर परिसर से निकलकर रातू रोड दुर्गा मंदिर, पहाड़ी मंदिर रोड होते हुए पहाड़ी मंदिर पहुंचेगी. यहां वर पक्ष का स्वागत किया जायेगा. इससे पहले पहाड़ी मंदिर में सुबह पहाड़ी बाबा का महा रुद्राभिषेक का अनुष्ठान होगा़ इस अवसर पर पहाड़ी बाबा का फूल पत्तियों से विशेष शृंगार किया जायेगा. शाम 7:30 बजे पहाड़ी मंदिर विकास समिति पहाड़ी बाबा की महाआरती, शयन आरती व महाप्रसाद का वितरण करेगी. मंदिर के पुजारी नंदकिशोर पाठक व नितेश पाठक ने कहा कि बाबा को तिलक में चढ़ायी जानेवाली सभी सामग्री श्रद्धालु देंगे.
Posted By : Guru Swarup Mishra